नई दिल्ली,
कोविड19 का डेल्टा वेरिएंट दुनिया के लिए 2022 तक महामारी खत्म हो जाने को मुश्किल बनाएगा। यह बात माइक्रोसॉफ्ट के कोफाउंडर बिल गेट्स (Bill Gates) ने कही है। गेट्स ने टाइम्स ऑफ इंडिया के सुरोजीत गुप्ता के साथ टेलिफोन पर एक इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के कुछ अंश…
पिछले साल आपने साल 2022 तक कोविड19 महामारी खत्म हो जाने की बात कही थी। क्या आपको अभी भी यह संभव लगता है?
हर कोई डेल्टा वेरिएंट और इसके ट्रांसमिशन से आश्चर्यचकित है। सबसे पहले यह भारत में पाया गया और वहां दुर्भाग्य से कोविड19 मामलों में बेहद तेजी रही। अब मामले घट रहे हैं। लेकिन हमें और बड़े पैमाने पर वैक्सिनेशन करना होगा। बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन को इस बात का गर्व है कि 2020 में हमने 30 करोड़ डॉलर सीरम इंस्टीट्यूट को दिए। कंपनी ने वैक्सीन प्रॉडक्शन बढ़ाने और रिकॉर्ड संख्या में वैक्सीन बनाने में इसका काफी अच्छे से इस्तेमाल किया। अब हम और ज्यादा सहायता करने के इच्छुक हैं। हमारे पास जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन होगी। हम तय करेंगे कि इसके साथ क्या किया जाए। डेल्टा वेरिएंट, कोविड का सबसे बुरा वेरिएंट है और शायद इसके मामले 2022 में भी होंगे। डेल्टा की वजह से हम 2022 तक कोरोना मुक्त दुनिया का लक्ष्य चूक जाएंगे।
कोविड19 की वजह से सामने आईं किन इनोवेशंस में दम है?
दुनिया महामारी की संवेदनशीलता को समझ चुकी है। इसलिए बड़ी संख्या में नए टूल्स की रिसर्च और इन्वेंशन होगा। डायग्नोस्टिक्स और थेरेपेटिक्स को बेहतर बनाने की दिशा में काम किया जा सकता है। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हमारे पास इतनी फैक्ट्री कैपेसिटी हो कि केवल 200 दिन के अंदर भी हम पूरी दुनिया के लिए पर्याप्त वैक्सीन बना सकें। अगर यह पूछा जाए कि क्या यह अगली महामारी के लिए तैयारी है और इस तैयारी के इतर भी इसके फायदे होंगे तो जवाब है हां। हम जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक के साथ मिलकर एक एमआरएनए प्लेटफॉर्म विकसित कर रहे हैं ताकि उनकी एमआरएनए टेक्नोलॉजी की मदद से एक एचआईवी वैक्सीन बनाई जा सके। हमारे पास मलेरिया वैक्सीन है। हमारा मानना है कि हम एक बेहद कम कॉस्ट वाली फ्लू वैक्सीन बना सकते हैं और पूरी दुनिया में फ्लू का लेवल काफी हद तक नीचे ला सकते हैं। मुझे आशा है कि सभी देश इन क्षेत्रों में अपनी रिसर्च बढ़ाएंगे। हम अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन के साथ उनके रिसर्च बजट बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। आशा करता हूं कि भारत भी हमें इसमें जॉइन करेगा।
भारत में वैक्सीन बनाने में प्रगति को लेकर आपके क्या विचार हैं?
दुनिया की ज्यादातर लो कॉस्ट वैक्सीन भारत में बनी हुई हैं। इन वैक्सीन्स ने लाखों जिंदगियों को बचाया है, जिसकी वजह सीरम, बायोई, भारत बायोटेक के साथ हमारी पार्टनरशिप है। पिछले साल हमने सीरम से एस्ट्राजेनेका और नोवावैक्स वैक्सीन दोनों को लेकर बात की थी और उम्मीद जताई थी कि कंपनी एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को बनाने की दिशा में बढ़िया काम करेगी। इसी तरह बायोई और जॉनसन एंड जॉनसन के बीच बातचीत कराई गई। अब जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के प्रॉडक्शन पर नजर है, जो या तो इस साल के आखिर में या अगले साल की शुरुआत में शुरू होगा। भारतबायोटेक ने आईसीएमआर के साथ मिलकर वैक्सीन बनाई और न केवल भारत को बल्कि पूरी दुनिया को एक लो कॉस्ट वैक्सीन मिली।
पिछले कई सालों से गेट्स फाउंडेशन और भारत सरकार के बीच साझेदारी है। साथ ही भारत और बाकी दुनिया को सस्ती, हाई क्वालिटी वैक्सीन्स मुहैया कराने के लिए गेट्स फाउंडेशन ने भारतीय वैक्सीन मैन्युफैक्चरर्स के साथ भी साझेदारी की हुई है। कोविड19 के खिलाफ जंग में भारत को आगे बढ़ते हुए देखना और लाखों लोगों की जिंदगी बचाने वाली सुरक्षित व सस्ती वैक्सीन विकसित करते हुए देखना एनकरेजिंग है।
शॉर्ट टर्म में भारत के हेल्थकयर सिस्टम की समस्या को फिक्स करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, लॉन्ग टर्म को लेकर क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
भारत को अपने प्राइमरी हेल्थकेयर सिस्टम में और ज्यादा इन्वेस्ट करना चाहिए ताकि प्राइमरी हेल्थकेयर सेंटर्स पर अच्छा स्टाफ और अच्छी तरह से ट्रेंड लोग हों। हालांकि पिछले 10 सालों में भारत में स्वास्थ्य हालात सुधरे हैं। वैक्सीन का कवरेज बढ़ा है। बर्थ अटेंडेंट क्वालिटी है, स्वास्थ्य केन्द्र में डिलीवरी की संख्या बढ़ी है, इसलिए नवजात शिशुओं की मौत की संख्या घटी है। आम लोगों के स्वास्थ्य को लेकर हमारी फाउंडेशन विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश पर ध्यान दे रही है। भले ही महामारी दुखदायी है लेकिन इसने प्राइमरी हेल्थकेयर के महत्व पर रोशनी डाली है। साथ ही यह भी जताया है कि प्राइमरी हेल्थकेयर की क्वालिटी के साथ-साथ इसमें फाइनेंशियली भी और ज्यादा इन्वेस्ट करने की जरूरत है।
कई एडवांस्ड इकनॉमीज में काफी वैक्सीन बर्बाद हुई हैं। इसे रोकने और वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करने के लिए क्या करना चाहिए?
हमें एक स्प्रेडशीट रखनी चाहिए कि दुनिया की सारी वैक्सीन डोज कहां-कहां हैं और उन्हें कहां दिया जाना चाहिए। इस महामारी के लिए पूरी दुनिया तैयार नहीं थी। इसलिए हम कोवैक्स को देखें तो कुछ सबक हैं, जो मिले हैं। हमें कुछ चीजों में सुधार करना है लेकिन प्रमुख है सप्लाई। हमें वेस्टर्न इन्वेंटर्स और भारतीय मैन्युफैक्चरर्स से पूरा सहयोग मिला है। दुखद है कि एमआरएनए वैक्सीन के लिए अमीर देशों के बाहर कोई कैपेसिटी नहीं है। अगली महामारी तक हम सुनिश्चित करेंगे कि भारत में विशाल एमआरएनए फैक्ट्रियां हों। साथ ही बाकी विकासशील देश हर किसी के लिए वैक्सीन बनाने में सक्षम होने के लिए हमारे 100 डे गोल को हासिल कर सकें।
महामारी ने डिजिटल डिवाइड को और बढ़ा दिया है। इसके क्या समाधान हैं?
काफी छात्रों के साथ कम से कम एक मोबाइल फोन होना चाहिए। साथ ही गणित और कुछ पढ़ाई-लिखाई मोबाइल पर हो सकनी चाहिए। भारत में जब स्कूल बंद थे तो कई बच्चे पढ़ नहीं पाए और नुकसान हुआ। दुर्भाग्य से भारत में शिक्षा की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है, जितनी कि होनी चाहिए। अगर मैं यह कहूं कि हेल्थ के अलावा भारत में और ऐसा क्या है, जिसमें संसाधनों व गुणवत्ता पर फोकस व निवेश बढ़ाने की जरूरत है तो वह है भारत का भविष्य यानी बच्चों की शिक्षा।