दुर्गा द्वारा असुर विनाश-आत्मा के दिव्य गुणों की विजय

Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities Mother
Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities
साहित्य/संपादकीय: Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities : हिन्दू पुराणों में एक कथा आती है कि प्राचीनकाल में देवों व दानवों, सुर व असुरों में परस्पर बार-बार युद्ध होता रहता था। देवासुर-संग्राम की कुछ चर्चा भगवतीसूत्र में भी आती है। किन्तु वहीं पर इन्द्रदेव मध्यस्थता करता है। हिन्दू पुराणों में इन्द्र देवताओं का पक्ष लेता है। अस्तु, पुराणों में बताया है असुरी के साथ जब भी देवताओं का युद्ध होता ती देवता हार जाते, असुर जीत जाते।
इसका एक कारण था सभी देवगण एकजुट नहीं हो पाते थे, जबकि असुर एक साथ मिल जाते थे। दूसरी बात देवगण सुखप्रिय ज्यादा थे जबकि असुररगण कष्ट-सहिष्णु। इस कारण बार-बार असुरी से मात खा जाते थे। देवगण अपनी पराजय से खिन्न होकर प्रजापति ब्रह्मा के पास गये। अपनी हार का कारण पूछने पर प्रजापति ने कहा – देवत्व कभी नहीं हारता, किन्तु हारती है विश्रृंखलता।

Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities: एक संघीय घनीभूत शक्ति बनो, तभी तुम राक्षसों पर विजय प्राप्त कर सकते हो 

तुम सब देवगण शक्ति-सम्पन्न तो हो, परन्तु परस्पर संगठित नहीं हो। फूट या विशृंखलता ही तुम्हारी हार का कारण है। अगर असुरों को जीतना है तो संगठित बनो। एक संघीय घनीभूत शक्ति बनो, तभी तुम शक्ति-सम्पन्न राक्षसों पर विजय प्राप्त कर सकते हो। देवताओं ने प्रजापति से प्रार्थना की, आप हमारी शक्ति को संगठित कीजिये।प्रजापति ने सभी देवताओं की थोड़ी-थोड़ी शक्ति ली। सब दिव्य शक्तियों को केन्द्रित करके फिर उसे अभिमंत्रित किया तो वह दुर्गा के रूप में प्रकट हुई। Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities
हिन्दू पुराणों में दुर्गा के अवतरण की यह कहानी मिलती है।दुर्ग का अर्थ है किला। एक संगठित और केन्द्रित शक्ति। उस केन्द्रित शक्ति का रूप है दुर्गा। फिर दुर्गा पराक्रम एवं साहस के प्रतीक सिंह पर आरूढ़ होती है। अर्थात् दिव्य शक्तियाँ संगठित होकर साहस और पुरुषार्थ पराक्रम के बल पर असुरों (बुराइयों) पर विजय प्राप्त कर लेती हैं। दुर्गा की अष्ट भुजाएँ आत्मा के आठ दिव्य गुणों की प्रतीक हैं। प्रत्येक आत्मा के भीतर आठ स्वाभाविक गुण विद्यमान होते हैं।
ज्ञान, दर्शन, आनन्द, अनन्त शक्ति, अनन्त सुख आदि। ये आठ गुण जब आत्मारूप दुर्गा में भुजा के रूप में प्रकट होकर शक्ति का स्फोट करते हैं तो उसकी शक्ति संसार में अजेय हो जाती है। स्मृति एवं पुराणकारों ने दुर्गा की आठ भुजाओं को आठ बलों के रूप में भी गिना है।
जैसे-विद्या बल, शरीर बल, बुद्धि बल, धन बल, मित्र बल, मनोबल, शस्त्र बल और धर्म बल। ये आठ बल संगठित होकर किसी भी दुर्जेय शत्रु को जीतने में समर्थ हो जाते हैं। दुर्गा अवतरण संगठन एवं पराक्रम का प्रतीक है।
दुर्गा ने सिंह पर बैठकर अपने त्रिशूल से सबसे बड़े तीन दैत्यों का संहार किया। उनके नाम थे-महिषासुर, मधुकैटम और शुभ-निशुंभ। इन तीनों का संहार करते ही असुरों का विनाश हो गया। असुरों की सेना हार गई। तो यह दैत्य विजय का  दिन था। इसलिए यह विजय दशमी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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कांतिलाल मांडोत

अब इस पौराणिक कथा को आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में समझें तो इसका स्पष्ट अर्थ है-देवता, आत्मा की दिव्य शक्ति का प्रतीक है। आत्मा की दिव्य शक्तियाँ अर्थात् आत्मा के सत्य, शील आदि सद्‌गुण जब संगठित और एकीकृत हो जाते हैं तो वे दुर्गा के रूप में एक अजेय शक्ति बन जाते हैं। Goddess Durga endowed

आत्मा जब तक प्रमाद व आलस्य से ग्रस्त रहता है, वह विकार रूप असुरों से हारता है। किंतु प्रमाद त्यागकर तप और साधना में लीन होता है तो उसकी शक्ति का स्कोर होता है। आत्मा की यह अजेय शक्ति सबसे पहले महिषासुर का विनाश करती है। महिष का अर्थ है पैसा।
भैंसा आलस्य का प्रतीक है। आलस्य अर्थात् प्रमाद। प्रमाद या आलस्य आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु है-“आलस्यो हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः।”-आलस्य शरीर के भीतर छुपा हुआ सबसे बड़ा शत्रु है। बुद्ध ने कहा है-पमादो मच्चुनो पदं ।-प्रमादमृत्यु का स्थान है।
भगवान महावीर कहते हैं “दुक्खं केण कड़े ? जीवेण कड़े पमादेण।” संसार में जितने भी दुःख हैं वे सब जीव-आत्मा प्रमाद के वश होकर करता है। जिस प्रकार राक्षस शुभ गुणरूप देवताओं का नाश करता है उसी प्रकार प्रमाद, शील, सन्तोष, संयम और साधना का नाश करने वाला दुष्ट राक्षस है। इस प्रमाद रूप महिषासुर का नाश करने वाली दिव्य आत्मा है दुर्गा। Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities
दुर्गा ने जिस दूसरे असुर का नाश किया उसका नाम है मधुकैटम । मधु नाम है-मद का और कैटभ का अर्थ है-कैतव-कपट । माया-दंभ ! मधुकैटभ असुर मद और कपट, अहंकार और दंभ का प्रतीक है। आत्मारूप दुर्गा दर्ष और दंभ नामक असुरों का नाश करके विजयी बनता है। Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities
मधुकैटभ का एक पुराणकार ने अर्थ किया है-असंयम। असंयम वह राक्षस है, जो आत्मा को पतित कर आत्म-गुणों का नाश करता है। अष्टभुजा दुर्गा ने जिस तीसरे राक्षस का संहार किया उसका नाम है शुभ-निशुंभ। यह मोह का प्रतीक है। मोह आत्मा का सबसे प्रबल शत्रु है। भगवान महावीर कहते हैं- मोहो हओ जस्स न किंचणाइ।” जिसने मोहरूपी
शत्रु का नाश कर दिया उसका संसार में दूसरा कोई शत्रु नहीं है। मौह को जीतने वाला अजातशत्रु संसार का पिता तुल्य परम वत्सल पुरुष होता है। उसे वीतराग कहते हैं। हिन्दू पुराणों में दुर्गा को माता माना है। माता परम वत्सला होती है। वह जीव मात्र का कल्याण करने वाली है। तो इस रूप में दुर्गा द्वारा शुंभ-निशुंभ का संहार करने का प्रतीक अर्थ है-आत्मा के केन्द्रीकृत दिव्य गुणों की शक्ति द्वारा मोहरूपी राक्षस पर विजय प्राप्त करना। Goddess Durga endowed
इस प्रकार अष्टभुजा दुर्गा आत्मा के आठ गुणों को प्रतीक मानकर तीन दुष्ट राक्षसों को-आलस्य, मद और मोह का प्रतीक मानने से विजय पर्व का अर्थ होता है-आत्मा द्वारा अशुभ शक्तियों पर विजय प्राप्त करना।

“अर्जुन ने की मां दुर्गा की स्तुति”

महाभारत युद्ध पारंभ होने से पूर्व जब कौरव और पांडवों की सेनाए कुरुक्षेत्र में पहुंच चुकी थी और दोनों सेनाओं के योद्धा एक दूसरे को आमने सामने देखकर युद्ध के लिए लालायित हो रहे थे उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्ति हेतु मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने को सलाह दी ।
भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने अपने रथ  से नीचे उतरकर मां दुर्गा की स्तुति की, उस समय अर्जुन ने अपने मुख से मां भगवती के प्रसनार्थ इस प्रकार प्रार्थना की मंदराचल पर निवास करने वाले सिद्धों को सेनानेत्री तुम्हें बारम्बार नमस्कार है तुम ही कुमारी काली, कापाली कपिला,कृष्णपिगला, भद्रकाली और महाकाली आदि नामों प्रचण्ड कोप करने के कारण तुम चंडी कहलाती हो । Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities
भक्तों को संकट से तारने के कारण तारिणी हो ।तुमः ही पूजनीया कात्यायनी हो ।तुम ही विजया और जया के नाम से विख्यात हो। मोरपंख की तुम्हारी ध्वजा है। तुम भंयकर त्रिशूल, खंड और खेटक आदि आयुधों को धारण करती हो। महिषासुर का रक्त बहाकर तुम्हें बड़ी प्रसत्रता हुई थी। तुम कोशिक गोत्र में अवतार लेने के कारण कौशिकी नाम से भी प्रसिद्ध हो। Goddess Durga endowed with divine spiritual qualities
तुम पीताम्बर धारण करती हो ।उमा शाकम्भरी, श्वेता कृष्णा, कैटभनाशिनी, हिरण्याक्षी, विरूपाक्षी और सुधुम्राक्षी आदि नाम धारण करने वाली हो। तुम ही वेदों को श्रुति हो ।तुम ही जातवेदा अधि की शक्ति हो जम्बू, कटक और चैत्य वृक्षों में तुम्हारा नित्य निवास है। सावित्री वेदमाता स्वधा कला काष्ठा ,सरस्वती वेदमाता वेदांत,ये सब तुम्हारे ही नाम है।
मैने विशुद्ध हृदय से तुम्हारा स्तवन किया है ।इस रणांगण में मेरी सदा ही जय हो। अर्जुन के इस भक्तिभाव का अनुभव करके सभी जीवों पर वात्सल्य भाव रखने वाली माता दुर्गा अंतरिक्ष में उसके सामने आकर खड़ी हो गई और बोली, “हे पार्थ। दुर्धष वीर। तुम तो साक्षात नर हो, साक्षात नारायण हो।  तुम्हारे सहायक हैं। Goddess Durga endowed
तुम रणक्षेत्र में शत्रुओं के लिए अजेय हो ऐसा वरदान देकर देवी दुर्गा वहां से अंतर्ध्यान हो गई। यह वर पाकर पांडु पुत्र अर्जुन को अपनी विजय का विश्वास हो गया। फिर वे अपने परम सुंदर रथ पर आरूढ़ होकर युद्ध के लिए उद्यत हुए।
“लेखक – कांतिलाल मांडोत”
(यह लेख, लेखक के अपने स्वतंत्र विचार हैं, संस्था के विचारों से इसका कोई संबंध नहीं है )