अंबुबाची मेला : जहां रजोधर्म की होती है पूजा, भक्तों को मिलता है दिव्य प्रसाद

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Ambubachi Mela Now
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नई दिल्ली, 2 जुलाई । Ambubachi Mela Now :  भारत के असंख्य तीर्थस्थलों में से एक अत्यंत रहस्यमय और शक्तिशाली स्थल है कामाख्या देवी मंदिर, जो असम के गुवाहाटी शहर के पास नीलकंठ पहाड़ी पर स्थित है। यह न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि तंत्र साधना और रहस्यमयी क्रियाओं के लिए भी जाना जाता है। इसे भारत का तांत्रिक पीठों का सबसे बड़ा और प्रमुख केंद्र माना जाता है।

कामाख्या मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक

Ambubachi Mela Now :  कामाख्या मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है और ऐसा माना जाता है कि यहां देवी सती का योनि गिरा था, जब भगवान शिव उनकी जली हुई देह को लेकर आकाश में भ्रमण कर रहे थे। यह मंदिर स्त्री शक्ति और सृजन की प्रतीक माना जाता है। इसलिए इस मंदिर को कामाख्या मंदिर नाम दिया गया है।

कामाख्या देवी मंदिर तांत्रिक साधना का विश्वप्रसिद्ध केंद्र है। यहाँ विशेष रूप से कामरूप तंत्र, कालिका तंत्र और अथर्ववेदिक तंत्र का प्रभाव देखने को मिलता है। तांत्रिकों के लिए यह मंदिर साधना, सिद्धि, और रहस्योद्घाटन का स्थान है।

कामरूप का कन्या मंदिर या आनंद का मंदिर भी कहा जाता

Ambubachi Mela Now :  कामाख्या का मतलब होता है, एक मातृ देवी , एक शाक्त तांत्रिक देवी; काम (इच्छा) का अवतार, उन्हें इच्छा की देवी भी माना जाता है। वैसे कामाख्या मंदिर, जिसे कामरूप का कन्या मंदिर या आनंद का मंदिर भी कहा जाता है।

Ambubachi Mela Now :  मां कामाख्या देवी मंदिर के गर्भ गृह के दरवाजे बंद

गुप्त नवरात्रि के दौरान मां कामाख्या देवी मंदिर के गर्भ गृह के दरवाजे बंद रहते हैं और यहां अंबुबाची मेला लगता है। अंबूबाची शब्द संस्कृत से आया है, जिसमें अंबू का अर्थ जल और बाची का मतलब बहना या प्रवाहित होना होता है। इस मेले के दौरान कई भक्त, तांत्रिक और अघोरी साधु दूर-दूर से कामाख्या मंदिर आते हैं।

Ambubachi Mela Now :  तीन दिनों में ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल रहता है

इन तीन दिनों में ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल रहता है, मान्यता के अनुसार, देवी के रजोधर्म (माहवारी) का ही प्रभाव है। इसे देवी की विश्राम अवधि माना जाता है। मंदिर के कपाट खुलने पर, भक्तों को अंगोदक (पवित्र जल) और अंगबस्त्र (लाल कपड़ा) प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, जिसे देवी के रजोधर्म (माहवारी) से जुड़े पवित्र कपड़े का टुकड़ा माना जाता है। इस प्रसाद को शुभ और सुरक्षा प्रदान करने वाला माना जाता है।

Ambubachi Mela Now :  रजस्वला होने के बाद कपड़ा लाल हो जाता

मेले के दौरान मंदिर के गर्भगृह में देवी के पिंडी को सफेद कपड़े से ढका जाता है, माता के रजस्वला होने के बाद यह कपड़ा लाल हो जाता है, जो भक्तों को प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है। फिर चौथे दिन मां भक्तों को दर्शन के लिए फिर से प्रकट होती हैं, जिसे महाभिषेक कहा जाता है।

Ambubachi Mela Now : कामाख्या मंदिर में 64 योगिनियों की साधना

योगिनी तंत्र के अनुसार कामाख्या मंदिर में 64 योगिनियों की साधना की जाती है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा धार्मिक उत्सव है जहां देवी के मासिक धर्म (रजस्वला) की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दौरान देवी कामाख्या अपने रजोधर्म (माहवारी) से गुजरती हैं, जो धरती की उर्वरता का प्रतीक है।

Ambubachi Mela Now : माता का प्रसाद ज्यादातर जरूरतमंद भक्तों

वहीं, यहां प्रसाद के रूप में गर्भगृह से निकला हुआ जल (रजस्वला जल) और लाल कपड़ा (कामाख्या वस्त्र) दिया जाता है। राजस्वला प्रसाद को लेकर यहां के नियम बेहद कड़े हैं। हर किसी को यह प्रसाद नहीं मिलता है। माता का प्रसाद ज्यादातर जरूरतमंद भक्तों, संतानहीन महिलाओं और कुमारी कन्याओं के बीच बांटा जाता है।

Ambubachi Mela Now :  शोधार्थियों को मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं

मेले के दौरान पर्यटकों और शोधार्थियों को मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं होती, जिससे इस पर्व का रहस्य और भी गहरा रहता है। गुप्त नवरात्रि के पहले दिन ही अंबुबाची व्रत रखा जाता है।

Ambubachi Mela Now : अंबूबाची मेला गहन तांत्रिक साधना और शक्ति की आराधना का पर्व

अंबूबाची कोई सामान्य मेला नहीं, बल्कि एक गहन तांत्रिक साधना और शक्ति की आराधना का पर्व है। यह नारी शक्ति, प्रकृति के चक्र और तंत्र की रहस्यमयी परंपराओं का अद्भुत संगम है। कामाख्या देवी की यह लीला शक्ति की आराधना में रहस्य, भक्ति और गहराई तीनों का समावेश है।


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