आरी तुतारी;15 जून by कुलदीप शुक्ला । Aari Tuutari Satire Now : छत्तीसगढ़ में इन दिनों रेत के नाम पर खून बह रहा है — और सरकार है कि मीटिंगों और फाइलों में उलझी हुई है। जिस अवैध रेत खनन को रोकने के लिए उच्च स्तर पर रणनीतियाँ बनाई गई थीं, वही खनन आज जानलेवा बन चुका है। माफिया बेलगाम हैं ।
बलरामपुर में आरक्षक की कुचलकर हत्या,
गरियाबंद में पत्रकारों की सरेआम पिटाई,
अब राजनांदगांव के मोहड़ गांव में ग्रामीणों पर गोलीबारी…
ये कोई फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत है।
Aari Tuutari Satire Now : इन वारदातों से एक बात स्पष्ट है — माफिया को डर नहीं, भरोसा है कि ऊपर से संरक्षण है। और यही सबसे बड़ा सवाल बन गया है — आखिर ये माफिया इतने बेखौफ क्यों हैं?
राज्य सरकार भले ही दावा करे कि वह सुशासन की मिसाल कायम कर रही है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि रेत के कारोबार ने सिस्टम को खोखला कर दिया है। पुलिस अफसर हों या पत्रकार, कोई सुरक्षित नहीं है। और अब तो आम जनता भी गोलियों की जद में आ चुकी है।
हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान
Aari Tuutari Satire Now : हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लिया है, सीएस और सचिव से जवाब तलब किया है, लेकिन सरकार अब भी “मंथन” की मुद्रा में है। मंथन तब होता है जब अमृत की उम्मीद हो — यहाँ तो जहर फैल चुका है!
प्रश्न यह नहीं कि खनन कैसे हो रहा है — प्रश्न यह है कि शासन इसमें कितना शामिल है?
Aari Tuutari Satire Now : स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत इस पूरे रैकेट को संरक्षण दे रही है? अब वक्त आ गया है कि सिर्फ निचले अफसरों की नहीं, बल्कि राजनीतिक जिम्मेदारियों की भी समीक्षा हो। क्या सिर्फ बैठकें और बयानबाज़ी काफी हैं?
Aari Tuutari Satire Now : सरकार को समझना होगा
रेत सिर्फ नदी से नहीं निकाली जा रही, सरकार की साख भी धीरे-धीरे घिस रही है। अब अगर सरकार नहीं चेती, तो अवैध रेत कारोबार एक दिन पूरे प्रशासनिक ढांचे को रौंद डालेगा। वक्त है, अब भी जाग जाएं — वरना यह किरकिरी, जल्द ही कलंक बन जाएगी।
Aari Tuutari Satire Now : रेत का राज (व्यंग्य कविता)
रेत बहती है दिन-दुपहरी,
कानून खड़ा है आंखें गीली।
ट्रैक्टर दौड़े, बंदूकें बोलें,
कुर्सी बैठी अब भी ढीली।
जनता मरे, पत्रकार रोए,
पुलिस करे अब मातम भारी।
माफिया के जयकारे हों,
राज चला “रेत अधिकारी”!
हो रहा है हर सप्ताह बैठक यहाँ,
चाय पिएँ और बात करें
जब-जब जनता पूछे सवाल,
फाइलें उठा, आघात करें।
कहते हैं — होगी “कड़ी कार्रवाई”
पर मिलती है केवल चेतावनी
रेत लदे ट्रक फर्राटे से दौड़ रहे हैं दो पाटे से
सिस्टम बना है खानदानी
ऊपर-नीचे दो पाटों में पिसती जनता सारी
मौन खड़ी है प्रशासन की खुद्दारी
नदी तो अब बस बहाना है,
असल कमाई ‘सूत्रधार’ है।
कागज़ पर नीयत सच्ची है,
जमीं पे माफिया असरदार है
न्याय अगर पूछे कुछ बातें,
तो अफसर बनें अचानक ज्ञानी।
कहें — “जाँच चल रही साहब,
बाकी है बस आख़िरी कहानी !”
बोलो शासन ! बोलो नेता !
कब तक चलेगा ये तमाशा ?
कभी जनता थी लोकतंत्र की जान,
अब वो बन गई चार लाइन की जानकरी
कागज़ बोले, नेता बोले,
पर खामोश हैं जिम्मेदारी।
तो पूछता है आज हर गाँव,शहर
क्या सचमुच ‘रेत’ है इतनी भारी ?
या सच ये है कि इस खनन में,
भीतर से सबकी भागीदारी ?
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