भोपाल। Sangeet Manthan : रबीन्द्रनाथ टैगौर विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा मानविकी एवं उदार कला संकाय तथा टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के सौजन्य से दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का भव्य शुभारंभ हुआ।
“संगीत मंथन” विषय पर आयोजित इस कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि डॉ भरत शरण सिंह, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग भोपाल, विशिष्ट अतिथि मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष अशोक कड़ैल, वरिष्ठ संगीत मनीषी पं. किरण देशपांडे, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय हरियाणा के कुलगुरु प्रो. रमेश चंद्र भारद्वाज, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलगुरु प्रो. साहित्य कुमार नाहर, प्रसिद्ध गायक एवं संगीतकार पद्मश्री उमाकांत गुंदेचा उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने की।
संगीत भारत की पहचान है: डॉ. भरत शरण सिंह
Sangeet Manthan : वहीं विश्वविद्यालय की प्रो चांसलर डॉ अदिति चतुर्वेदी वत्स, प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रो. अमिताभ सक्सेना, कुलसचिव डॉ. विजय सिंह भी विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर संगीत पर एकाग्र कविताओं का संकलन अनुनाद, मारीशस में आयोजित होने वाले विश्वरंग 2024 के पोस्टर और विश्वविद्यालय के न्यूज लेटर का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। उदघाटन समारोह का गरिमामय संचालन
टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक एवं संगीत कार्यशाला के समन्वयक श्री विनय उपाध्याय ने किया। स्वागत उद्बोधन एवं कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ रुचि मिश्रा तिवारी, डीन मानविकी एवं उदार कला संकाय ने रखी।
Sangeet Manthan : इस अवसर पर डॉ. भारत शरण सिंह ने कहा कि आज भारत को भारतीय दृष्टि से देखना प्रारंभ कर दिया गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा को भारतीय ज्ञान संपदा कहना चाहिए। भारत का विकसित होना समूचे विश्व के लिए फायदेमंद होगा। संगीत मन मस्तिष्क को शांति देने वाला है।
संगीत के अनेकों प्रकार हैं। छोटे बच्चों को सुलाने के लिए लोरी के रूप में भी संगीत है। भारतीय संगीत की महिमा अपने आप में अनूठी है। संगीत तो अपने आप में सब कुछ समेटा हुआ है।
Sangeet Manthan : गांव-गांव में संगीत है। यही भारत की पहचान भी है। भारतीय ज्ञान परंपरा के इसी कॉम्पोनेंट को हमें बटोरना है ताकि आने वाली पीढ़ी को वह शिक्षा दी जा सके। संगीत को लिपिबद्ध करने का कार्य इस कार्यशाला के माध्यम से किया जाएगा और जल्द ही आने वाली पीढ़ी के समक्ष नए पाठ्यक्रम के रूप में उपलब्ध होगा।
Sangeet Manthan : संगीत ब्रह्मांडीय एकता को अनुभव करने का बड़ा आधार है: संतोष चौबे
वही संतोष चौबे ने कहा कि संगीत सबसे प्योर अनुभूति है। जो शब्दों से कविता से कम्युनिकेट नहीं कर पाए वह संगीत के माध्यम से आसानी से कर सकते हैं। संगीत ब्रह्मांडीय एकता को अनुभव करने का बड़ा आधार है। प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली ज्ञान, परंपराएं और प्रथाएं मान्यता को प्रोत्साहित करती थी।
पुराण में ज्ञान को अप्रतिम माना गया है। विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र पूर्व से ही संचालित होता रहा है। हमारा ध्येय यही है कि हम भावी पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़कर रखें। वर्तमान समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित है।
Sangeet Manthan : हमारी संस्कृति विश्व के कल्याण की रही है: अशोक कड़ैल
अशोक कड़ैल ने कहा कि हमारी प्राचीन विधाओं में संगीत को मुख्य स्थान प्राप्त है। संगीत के माध्यम से मानसिक समस्याओं का समाधान प्राचीन ज्ञान परंपरा में साफ झलकता है। मन की शांति तो भारतीय संगीत से ही मिलती है।
आधुनिक संगीत तो हमें अग्रेसित करता है वहीं प्राचीन संगीत मन को शांत करता है अब चुनाव हमें करना है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को किस संगीत की विधा से जोड़ें।
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हम ऐसे नागरिक बनना चाहते हैं जो वैश्विक रूप से काम कर सकें। भारतीय दर्शन में हम जाएंगे तो देखते हैं कि कोई दुखी ना रहे। हमारी संस्कृति विश्व के कल्याण की रही है। यह हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति की वजह से ही संभव होता आया है।
जिस प्रकार आज पूरा विश्व योग को अपना चुका है, हमारी चिकित्सा पद्धति को पश्चिमी देश आज अपने जीवन में अवतरित कर रखे हैं। मुझे खुशी है कि उच्च शिक्षा विभाग राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत संगीत विषय को शामिल किया है इस कार्यशाला के माध्यम से नई पीढ़ी तक बहुत अच्छा पाठ्यक्रम पहुंचेगा।
Sangeet Manthan : शिक्षा और संस्कृति से जुड़कर नई पीढ़ी तक ले जाना
कार्यशाला में पद्मश्री उमाकांत गुंदेचा ने कहा कि मुझे खुशी है कि इतनी महत्वपूर्ण गोष्ठी में आमंत्रित हूं। हमारी सनातनी परंपरा को फिर से कहीं ना कहीं अपनी शिक्षा में लाने का महत्वपूर्ण प्रयास है। हमारी परंपरा शिक्षा और संस्कृति से जुड़कर नई पीढ़ी तक ले जाना है। हमारी जड़ें जो कमजोर हो गई हैं उनको इस कार्यशाला से बल मिलेगा।
Sangeet Manthan : ज्ञान परंपरा सनातन वैदिक काल से चली आई
पं. किरण देशपांडे ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि हम इस कार्यशाला में दो स्तर पर विचार विमर्श करेंगे पहले थ्योरेटिकल और दूसरा प्रैक्टिकल। हमारी ज्ञान परंपरा सनातन वैदिक काल से चली आई है उसे हमें पाठ्यक्रमों में जोड़ना है। सामवेद से लेकर आज तक जो हमारे ज्ञान परंपरा में वृद्धि हुई है उसका संकलन कर पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा। मुझे यकीन है कि हम पूरे मनोयोग से इस कार्यशाला में हिस्सेदारी कर इसे सफल बनाएंगे।
कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए प्रो. रमेश चंद्र भारद्वाज ने कहा कि शिक्षक को बदलने की जरूरत है। इस पर बात होती रही है। वर्ष 2014-15 में यूजीसी ने सीबीसीएस लागू किया था। अन्य विषयों के विद्यार्थी भारत की आत्मा नहीं समझ पाते।
भारतीय ज्ञान परंपराओं से छात्र परिचित नहीं थे। उन विषयों को जेनेरिक इलेक्टिव के रूप में शामिल किया गया, परंतु भारतीय शिक्षकों ने भी अब तक विद्यार्थियों को उनसे रूबरू नहीं कराया है। पहले साहित्यिक आधार पर इतिहास लिखते थे, वर्ष 1964 से आर्कियोलॉजिकल तरीके से इतिहास लिखा जाने लगा।
वहीं प्रो. साहित्य कुमार नाहर ने कहा कि मैं संगीत के परंपरागत परिवार से हूं। संगीत सभी शास्त्रीयता के बाद भी मानव मन की अनुभूति से जुड़ा है। संगीत की अवधारणा तीन आयाम पहला आध्यात्मिक पक्ष व वैचारिक, दूसरा संगीत की शिक्षा दीक्षा कैसे हो और तीसरा सीखने के बाद क्या करें पर फोकस करना होगा।हमारे करिकुलम का आधार यही होना चाहिए।
कार्यशाला के शुभारंभ सत्र में डॉ अदिति चतुर्वेदी वत्स ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए यह विश्वास दिलाया कि रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रकल्प में उच्च शिक्षा विभाग मध्य प्रदेश के साथ निरंतर सहयोग करता रहेगा।
कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर नितेश मांगरोले के संयोजन में वेणु वृंद समूह द्वारा सुमधुर मंगलाचरण किया गया। साथ ही दीप प्रज्वलन तथा वाग्देवी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। देश के विभिन्न हिस्सों से आये प्राध्यापक तथा शोधार्थियों ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। जिसमें प्रथम स्थान डॉ अंजली तिवारी, द्वितीय स्थान डॉ सरिता आर्या, तृतीय स्थान डॉ नागेश कुमार त्रिपाठी ने प्राप्त किया।
उनके विषय संगीत संग्रहण और डाटा संग्रहण में पुस्तकालय की भूमिका एवं संगीत में रोजगार सृजन भारतीय संगीत उद्योग के अवसर और चुनौतियां रही जिस पर गंभीर चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन डॉ मौसमी परिहार ने किया। शोध सत्रों की अध्यक्षता डॉ रवि पंडोले, बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल और सहअध्यक्षता डॉ सुधा दीक्षित नूतन कॉलेज व डॉ नीरज श्रीवास्तव नूतन कॉलेज भोपाल ने की।