दुर्ग.
कुष्ठ की बीमारी ठीक हो सकती है। यह हर व्यक्ति की स्थिति और रोग के फैलाव पर निर्भर करता है कि उसे ठीक होने में कितना समय लगेगा या उसकी बीमारी लाइलाज होने के स्तर पर पहुंच चुकी है। कुष्ठ से प्रभावित मरीजों के शरीर में होने वाले विकृतियों से बचाव के लिए समय रहते जरुरी उपाय करने चाहिए और समय पर इलाज़ कराना चाहिए। जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ. अनिल कुमार शुक्ला के मार्गदर्शन में आज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निकुम में कुष्ठ पीओडी (प्रिवेंशन ऑफ डिसेबिलिटी) विकृति से बचाव एवं रोकथाम के लिए शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में विकासखंड निकुम के अंतर्गत आने वाले ग्राम अछोटी, निकुम, चिंगरी, विनायकपुर, जंजगिरी, चिरपोटी, चंद्रखुरी, हनौदा एवं खम्हरिया से 21 मरीज इलाज के लिए पहुंचे जिनका समुचित उपचार किया गया।
शिविर में जिला कुष्ठ सलाहकार डॉ. मोइत्री मजूमदार द्वारा कुष्ठ रोगियों को जल तेल उपचार विधि सिखाई गयी, ताकि कुष्ठ रोगी अपने घर में इस विधि का इस्तेमाल कर अपने शून्य हाथ पैरों एवं विकृति वाले अंगों की देखभाल और उपचार कर सके। इस दौरान डॉ. मजूमदार ने कुष्ठ प्रभावितों को बताया, “जल तेल उपचार विधि में नार्मल पानी में विकृत अंग या शून्यपन वाले अंग को पानी में बीटाडीन क्रीम घोल कर 30 मिनट तक हर दिन डुबो कर रखने और मसाज करने से मरीजों को काफी राहत मिलती है”।
शिविर में कई मरीजों की फिजियोथेरेपी टेक्निशियन केके स्वर्णकार के द्वारा जांच कर हाथ-पैर की देखभाल सहित विकलांगता से बचाव व रोकथाम के बारे में जानकारियां दी गई। इस दौरान मरीजों को सिखाया गया कि अपने घर में नियमित रुप से उपचार की विधि करने से विकलांगता से बचा जा सकता है। शिविर में 7 मरीजों को एमसीआर चप्पल का वितरण किया गया। साथ ही संबंधित लोगों को अपने घरों में परिवार के अन्य सदस्यों में कुष्ठ के लक्षण वाले मरीजों की पहचान कर शीघ्र ही नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र में जाकर जांच करवाने की भी सलाह दी गई।
शिविर में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निकुम के खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. देवेन्द्र बेलचंदन ने बताया, “हमारे समाज में लंबे समय तक कोढ़ की बीमारी को शाप या भगवान द्वारा दिया गया दंड माना जाता था। लेकिन ऐसा नहीं है, भले ही उस काल में ऐसा रहा हो लेकिन आज के समय में कुष्ठ रोग लाइफस्टाइल और पोषण की कमी से जुड़ी एक समस्या है। कोढ़ की बीमारी उन लोगों पर जल्दी हावी हो जाती है, जिनके शरीर में पोषण की कमी होती है। उन्होंने बताया, कुष्ठ यानी लेप्रोसी एक ऐसी बीमारी है जो हवा में मौजूद बैक्टीरिया के जरिए फैलती है। हवा में यह बैक्टीरिया किसी बीमार व्यक्ति से ही आते हैं। इसलिए इसे संक्रामक रोग भी कहते हैं। लेकिन यह छुआछूत की बीमारी बिल्कुल नहीं है। अगर आप इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाएंगे या उसे छू लेंगे तो आपको यह बीमारी बिल्कुल नहीं होगी”।
इस मौके पर जिला कुष्ठ सलाहकार डॉ. मोइत्री मजूमदार, डब्लूएचओ ब्लॉक लेप्रोसी कोऑर्डिनेटर डीएन कोसरे, ब्लॉक कुष्ठ सलाहकार सरस कुमार निर्मलकर, रिटायर्ड एनएमएस एसडी बंजारे, फिजियोथेरेपी टेक्निशियन केके स्वर्णकार, एनएमए श्रीमती शारदा साहू, जिला मुख्यालय एनएमए सीएल मैत्री सहित अस्पताल के अन्य स्टॉफ का विशेष योगदान रहा।