वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार के लिए संतुलन साधना कठिन कार्य

नई दिल्ली

वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार के लिए संतुलन साधना कठिन कार्य है। एक ओर उसे जीएसटी से संबं​धित 50,000 करोड़ रुपये से अ​धिक के फर्जीवाड़ों से निपटने के उपाय करने पड़ रहे हैं। दूसरी ओर फर्जीवाड़े रोकने के लिए सख्त उपाय करने पर आलोचना झेलनी पड़ रही है क्योंकि इससे ईमानदार करदाताओं पर अनुपालन का बोझ बढ़ सकता है।

शुरुआती वर्षों में थोड़ी रियायत बरतने के बाद केंद्र सरकार ने नवंबर 2020 में कर चोरी और फर्जीवाड़े पर रोक के लिए राज्यों के साथ मिलकर अ​भियान शुरू किया। बीते 18 महीनों में 50,000 करोड़ रुपये से अ​धिक के फर्जी इनपुट कर क्रेडिट के मामलों का पता चला है।

यह रकम काफी अ​धिक है। हितधारकों और कर विशेषज्ञों ने सरकार के इस प्रयास की सराहना भी की। लेकिन वसूली अनुमानित स्तर से काफी कम रही। अब तक सरकार को इस तरह के अ​भियान से 2,500 करोड़ रुपये ही मिल पाए हैं जबकि 6,700 से अ​धिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 600 से अ​धिक लोगों से पूछताछ की जा चुकी है। सरकार ने जीएसटी नियमों को सख्त बना दिया है। लेकिन कुछ बदलाव से करदाताओं को असुविधा भी हो रही है।

अच्छी बात यह रही कि लगातार 11 महीने जीएसटी संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये से अ​धिक रहा और इसमें कर चोरी करने वालों के ​खिलाफ कार्रवाई का अहम योगदान रहा।

कर चोरी रोकने के उपाय : इस साल की शुरुआत में सरकार ने ऊंचे दाम वाले जूते-चप्पलों पर जीएसटी लगाया और ​स्विगी तथा जोमैटो जैसे ऑनलाइन रेस्टोरेंट एग्रीगेटरों को उनके जरिये मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं पर जीएसटी लगा दिया। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने आपूर्ति पर जीएसटी नियमों को सख्त बना दिया और जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-3बी का मिलान जरूरी कर दिया है।

आगे ऐसे उपाय और किए जा सकते हैं। जीएसटी परिषद ने मंत्री-स्तरीय समिति गठित की है जिसके सिफारिशों के आधार पर जीएसटी व्यवस्था में व्यापक बदलाव देखे जा सकते हैं। इसने कर चोरी रोकने और कर संग्रह बढ़ाने के लिए डेटा-विश्लेषण आधारित प्रवर्तन और पंजीकरण संबं​धित उपायों का प्रस्ताव किया है। समझा जाता है कि महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता वाली आठ सदस्यीय समिति ने रिपोर्ट तैयार की है जिस पर जीएसटी परिषद की अगली बैठक में विचार किया जा सकता है। माना जाता है कि समिति ने फर्जी बिलों, संदिग्ध लेनदेन और उच्च-जो​खिम वाले करदाताओं का पता लगाने के लिए डेटा-विश्लेषण और मशीन लर्निंग का उपयोग करने का सुझाव दिया है। प्रस्तावित उपायों में बायोमेटि्क  सत्यापन और उच्च-जो​खिम वाले कारोबार के परिसरों में जाकर भौतिक सत्यापन करने का प्रस्ताव है।

समिति का मानना है कि सरकारी डेटाबेस का एकीकरण करना कर चोरी करने वालों पर रोक लगाने के लिए आवश्यक है। इसने संभवत: भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के जरिये बैंक खाते के सत्यापन का भी प्रस्ताव है।

अनुपालन का बढ़ा बोझ : सरकार जाली/फर्जी लेनदेन पर रोक लगाने के लिए बिजनेस इंटेलिजेंस और धोखाधड़ी विश्लेषण जैसी तकनीक का उपयोग कर रही है। इसके ज​रिये फील्ड अ​धिकारी असामान्य प्रवृ​त्ति का पता लगा सकते हैं। इसके अलावा अगर पिछले महीने का जीएसटीआर-3बी रिटर्न नहीं भरा गया है तो जीएसटीआर-1 को ब्लॉक किया जा सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कुछ सफलता मिली है लेकिन कारोबारी सुगमता में सुधार लाने की भी जरूरत है। पीडब्ल्यूसी में पार्टनर (अप्रत्यक्ष कर) कुणाल वाधवा ने कहा, ‘हाल के समय में कई प्रावधान लागू किए गए हैं जिससे ईमानदार करदाताओं पर अनुपालन का बोझ बढ़ा है लेकिन करचोरी करने वालों पर संभवत: कम असर पड़ सकता है। इसलिए दोषी को पकड़ने के लिए त्वरित उपाय करने चाहिए, जिसमें हल्की-फुल्की गड़बड़ी करने वालों पर ज्यादा असर न पड़े।’ उन्होंने सुझाव दिया कि माल की आवाजाही पर नजर रखने के लिए एचएसएन कोड के विश्लेषण की व्यवस्था अपनाई जानी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि जांच के मामले काफी बढ़े हैं और कई मामलों में केंद्र तथा राज्य जीएसटी दोनों की जांच का दोहराव होता है।

ऑडिटिंग कारोबार : कर रिटर्न भरने में सुधार लाने के लिए कर प्राधिकरणों को ऑडिट फर्मों पर ध्यान देना चाहिए। सीबीआईसी के चेयरमैन विवेक जौहरी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इस तरह की कवायद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे अनियमितता का पता लगाने और कारोबारी मसलों को दूर करने में मदद मिलती है। इसमें अंकेक्षित वित्तीय विवरण, आयकर रिटर्न, ग्राहक और आपूर्तिकर्ता के विवरण के दस्तावेज की जांच शामिल है। अगर ऑडिट में खरीद की वस्तुओं में कोई विसंगति का पता चलता है तो कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सकता है। लेकिन यह नोटिस संबंधित इकाई को सूचित करने के बाद निर्धारित अवधि में जारी किया जाएगा।’ उद्योग के हितधारकों के अनुसार सरकार की मंशा कर-अनुकूल माहौल बनाने की है लेकिन क्रियान्वयन को तार्किक नहीं रखने से नुकसान हो सकता है। नियमित समन्वय से करदाताओं के बीच विश्वास बहाल हो सकता है। बीते पांच साल में जीएसटी व्यवस्था में कई बदलाव हो चुके हैं और कई बदलाव करदाताओं के हित में किए गए हैं। लेकिन विभिन्न न्यायिक फोरम में कानूनी मामले चुनौती बने हुए हैं।

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