लापता हुई हवा तलाशिये ज़रा,
धूल राह में जमी बुहारिये ज़रा।
अब लपट पहुँच रही बड़े-बड़े नगर,
जागिये बहुत हुआ सम्हालिये ज़रा।
हो गये चुनाव भी तनाव है मगर,
राजनीति को कभी सुधारिये ज़रा।
कोशिशों के बाद भी वही अटक गये,
सीढ़ियाँ लगा उन्हें उतारिये ज़रा।
हो रही है आपकी सराहना बहुत,
इन गरीबों को अभी दुलारिये ज़रा।
आपके बड़े-बड़े बैनर लगे हुए,
हो सके तो मुल्क भी सँवारिये ज़रा।
पोटली ये मुफ्त की घरों में जा घुसे,
लोरियाँ सुना उन्हें सुलाइये ज़रा।
…राजेश जैन ‘राही’, रायपुर