साहित्य,
रे लाल नीला पीला हवे गुलाल,
अउ धरे आहू गोरी मैं पिचकारी।
निकलत नई हस तय मोर पिरोही,
घुसर जावव का बन मैं अधिकारी।।
ये माहुर रंग ला घलो घोरे हावव,
चिट सही बने हावय ये रंग कारी।
तय तो निकल रानी भीतरी ले वो
का नोटिस चटकाव मैं सरकारी।।
घर दुवारी म तोर मैं घेरी बेरी आहू,
जइसे घुमें हव मैं तो कोट कचहारी।
थोर थोर मा मय हर बांध के पेशी,
नाव ले ले के चिल्लाहू तोर दुवारी।।
लगा लेतव तोला मय रे चूक ले रंग,
के करतेव जइसे सुघ्हर चित्रकारी।
अब नेता हरष तय तो मोर वो पगली,
मैं तो हरव तोर पिछु के अधिकारी।।
अरे आघू पीछू मैं तो तोर घुमत हावव,
देबी बना पूजा करत बन प्रेम पुजारी।
अब मया के बोली तय बोल वो पगली,
होरी म तको आज मोला झन दे गारी।।
लगा ले न जोही मोला आज तय वो रंग,
रंग भर के मया तय मार वो पिचकारी।
चल भाँवर परा के तोला लेग चलथव,
शुरू करबो दूनो नवा जिनगी के पारी।।
– सोमेश देवांगन
पंडरिया कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)