पांच राज्यों में चुनाव और क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व

पश्चिम बंगाल,असम,तमिलनाडु केरल और पुडुचेरी में एक साथ आम चुनावों ने भारतीय राजनीति मैं काफी उथल-पुथल मचा रखी है। और इन चुनावों में जीत के साथ वहां की क्षेत्रीय पार्टियों का आंकलन तथा भविष्य भी तय करेगा। यह पांचो राज्य क्षेत्रीय पार्टियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण चुनाव हैं।वहीं राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी तथा वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए जी काफी संवेदनशील है। 2011 में पश्चिम बंगाल में विगत वर्षों से काबिज कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस सरकार के वर्चस्व को खत्म कर तृणमूल कांग्रेस लगातार दस वर्षों से अपना शासन चला रही है। इस चुनाव में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के विपक्ष में भारतीय जनता पार्टी एक सशक्त विपक्ष का रोल अदा कर रही है।यह तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे कि तृणमूल कांग्रेस जीतेगी या भारतीय जनता पार्टी पर निश्चित तौर पर यह नतीजा ऐतिहासिक ही होगा। क्योंकि 2011 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।और अब महत्वपूर्ण विपक्ष पार्टी बनकर चुनावी मैदान में सत्ताधारी दल के सामने खड़ी है।
असम में भाजपा की सरकार शासन चला रही है, और वह इस बार अपनी सत्ता को बचाने के लिए पूरी तरह मैदान में डटी हुई है। यहां कांग्रेसी भी अपने विश्वास पात्र लोगों के साथ मैदान में लगे हुये है। असम का चुनाव भी मूलत कांग्रेस और भाजपा के मध्य होगा। केरल में कांग्रेस के आलाकमान तथा केंद्रीय नेतृत्व के राहुल गांधी के लिए प्रतिष्ठा वाला चुनाव होगा। क्योंकि केरल वायनाड जिले के सांसद के रूप में राहुल गांधी संसद तक पहुंचे हैं। वहां मुकाबला कांग्रेस तथा लेफ्ट से होगा,अभी वहां लेफ्ट की सरकार शासन कर रही है,पर केरल में हर 5 साल में सत्ता परिवर्तन होता है, इस हिसाब से कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि वह इस बार केरल में जीत कर सत्ता संभालेगी। भारतीय जनता पार्टी 2011 में मात्र एक सीट जीत पाई थी, पर इस बार उन्होंने मेट्रो मैन ई श्रीधरन को कमान सौंपी है। लेफ्ट और कांग्रेस इस चुनाव को काफी गंभीरता से लेकर रणनीति बनाकर चुनाव लड़ रही हैं।
पुडुचेरी में भाजपा का कोई नाम लेने वाला भी नहीं था। परंतु आज पुडुचेरी में भाजपा पूरे लाव लश्कर के साथ चुनावी मैदान में विपक्ष का रोल अदा कर रही हैं। पुदुचेरी का चुनाव भी भाजपा के लिए अहम है। तमिल नाडु मैं विगत कई वर्षों से जयललिता तथा करुणानिधि का राज रहा है, उसके बाद उनके चेले चपार्टियों ने राज करने की कोशिश भी की, जयललिता लगभग 6 बार चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनी और करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह कर दिल्ली को सदैव कड़ी टक्कर देते रहे थे।यहां द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम और अन्ना द्रविड़ मुंनेत्र कजगम चुनाव में एक दूसरे के सामने है। यहां में एआईडीएमके के साथ भाजपा नेपथ्य में खड़ी है। तथा डीएमके के साथ कांग्रेस गठबंधन में चुनावी मैदान में है। तमिलनाडु में बोलचाल की भाषाई ताकत काम आएगी क्योंकि तमिल भाषा यहां की बोलचाल की भाषा है,और वहां के निवासी इस भाषा के अलावा किसी भी अन्य बोलचाल को पसंद नहीं करते, ऐसे में पांचो राज्यों के मतदाता अपनी अपनी क्षेत्रीय पार्टी को महत्व देते हैं या केंद्र शासन को चला रही भाजपा अथवा कांग्रेस का साथ देने वाले हैं, यह तो वक्त ही बताएगा, पर यह तो तय है कि क्षेत्रीय पार्टियों के भविष्य को यह पांचो राज्यों के आम चुनाव बहुत ज्यादा प्रभावित करने वाले हैं। इसके अलावा कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी की अहमियत को भी स्पष्ट करने वाले हैं। क्योंकि पश्चिम बंगाल तथा आसाम में केंद्रीय सत्ता के गृह मंत्री तथा प्रधानमंत्री की शाख भी दांव पर लगी हुई है।असम में बाहरी लोगों से वहां की जनता खासी परेशान होकर एन,आर,सी कानून के लागू होने की प्रतीक्षा कर रही है, जबकि वहां भारतीय जनता पार्टी ही शासन कर रही है। पुडुचेरी मैं कई वर्षों से क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा था, पर अब वहां भारतीय जनता पार्टी की पकड़ बहुत मजबूत होने के कारण उसका भविष्य भी कभी उदीयमान दृष्टिगोचर होता है, ऐसे में क्षेत्रीय पार्टियां इन चुनावों में अपना पूरा जोर लगा कर चुनाव परिणामों को बदलने की कोशिश में राष्ट्रीय पार्टियों को इन राज्यों में प्रवेश को रोकने प्रयास कर रही है।

संजीव ठाकुर,
स्वतंत्र लेखक, रायपुर, छत्तीसगढ़

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