दुर्ग
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं छ ग राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पँ दानेश्वर शर्मा का निधन आज दिनांक 3 फ़रवरी 2022 को रात्रि 8:10बजे 91 वर्ष की अवस्था में हो गया। अंतिम यात्रा कल 4 फ़रवरी को निवास एम आई जी-582 पद्मनाभपुर दुर्ग से सुबह 10 बजें शिवनाथ नदी मुक्तिधाम के लिये निकलेगी।
छत्तीसगढी साहित्य के लोकप्रिय कवि
दानेश्वर शर्मा छत्तीसगढ़ी एवं हिन्दी के लोकप्रिय कवि हैं। दानेश्वर शर्मा जी भिलाई में सामुदायिक विभाग का दायित्व संभालते हुए पाँच दिन तक (1976 ) लोककला महोत्सव की शुरुआत की। दानेश्वर जी कोदुराम दलित जी के प्रेरणा से छत्तीसगढ़ी कविता लिखना शुरु किया। पहली छत्तीसगढ़ी रचना थी ‘बेटी के बिदा’। ‘छत्तीसगढ़ की मूल आत्मा को सुरक्षित रखते हुये लिखे जा रहे है’ – डॉ. सत्यभामा आडिल का कहना है।
सुशील यदु से दानेश्वर जी ने कहा – ‘दूरदर्शन रायपुर में लोककला के नाम में टूरी-टूरा मन के नाच देखा देना, खेती किसानी देखा देना, बस्तर के लोकनृत्य में हारमोनियम के प्रयोग, सरस्वती वंदना ला माता सेवा धुन में देखाये जाना, विकृत करके दिखाये जावत हे ….. हमर संस्कृति के प्रतिनिधित्व तो पं. मुकुटधर पांडे, पं. सुन्दरलाल शर्मा, ठा. प्यारेलाल सिंह, खूबचंद बघेल, विप्रजी येखर मन के झलक देखाना चाही’ –
दानेश्वर शर्मा बहुत अच्छे गीतकार है – उनका लेखन –
मंड़ई
चल मोर जंवारा मंड़ई देखे जाबो,
संझकेरहा जाबो अउ संझकेरहा आबो।
रेसमाही लुगरा ला पहिर के निकर जा,
आंखी मां काजर रमा के निकर जा,
पुतरी जस लकलक सम्हर के निकर जा,
हंसा के टोली मां हंसा संधर जा,
रहा ला ठट्ठा मा नान्हे बनाबो।।
छोटे बाबू बर तुतरु लेइ लेतेन,
नोनी बर कान के तितरी बिसातेन
तोर भांटो बर सुग्धर बंडी बिसातेन
अपन बर चूरी अउ टिकली मोलासेन,
पाने ला खाबो अउ मुंह ल रचाबो।।