खमरछठ : हलषष्ठी संतान की लंबी आयु की कामना के लिये मातायें यह व्रत रखती हैं…..

धर्म / ज्योतिष/व्रत

हलषष्ठी का योग 27 अगस्त की शाम से कृष्ण पक्ष की षष्ठी लग रही है, जो 28 अगस्त को शाम तक प्रभावी रहेगी। इस कारण माताओं में व्रत किस दिन रखें, इसे लेकर कशमकश है। हालांकि ज्योतिषियों की मानें तो पंचांग में गणना के अनुसार षष्ठी 27 को अस्ताचल से शुरू होने के कारण माताओं को खमरछठ का व्रत उदया तिथि से अर्थात 28 अगस्त को ही रखना उचित होगा, क्योंकि इस दिन कृष्ण पक्ष की षष्ठी रात को 8.55 बजे तक रहेगी।

छत्तीसगढ़ समेत अन्य प्रांतों में भी इस पर्व को अलग-अलग नाम से मनाया जाता है, लेकिन सभी का उद्देश्य संतान के दीर्घायु जीवन की कामना ही होती है। छत्तीसगढ़ में खमरछठ और हलषष्ठी के नाम से इस पर्व को माताएं मनाती हैं। इस पर्व को बलराम जयंती के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यता है कि खमरछठ का व्रत रखने से भगवान हलधर उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।

हलषष्ठी के पौराणिक व्रत कथा

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अत: मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए। ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुन: झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।

हल छठ व्रत का महत्व
हल छठ व्रत मातायें अपनी संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बलराम जी और हल की पूजा करने से संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है और वह जीवन भर सुखी रहता है। बलराम जी की अस्त्र हल है, इसलिए इस दिन हल की पूजा करने का विधान है। हल के कारण ही इसे हल छठ कहा जाता है।

पूजा विधि
इस दिन मातायें निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत में शाम के समय पूजा का विधान है। शाम को मातायें एक प्रतिकात्मक तालाब बनाती हैं। पूजा के लिए पलाश और कांस की टहनियों को एक साथ बांधा जाता है। फिर चना, गेहूं, धान, जौ, मूंग, मक्का, महुआ आदि को बांस के एक पात्र में रख लेते हैं। इसके बाद दूध और गंगा जल से षष्ठी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। वहां पर चौक बनाकर हल छठ को स्थापित करते हैं और उसे जनेऊ अर्पित करते हैं तथा विधि विधान से उसकी पूजा करते हैं। इस व्रत में महिलाओं को भैंस के दूध, दही और घी का प्रयोग करना होता है। इसमें गाय के दूध और दही का प्रयोग वर्जित है। इस व्रत के पारण में महिलाएं भैंस के दूध से बना दही और महुआ का सेवन करती हैं।

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