ईडी के सामने राहुल गांधी की पेशी ने कांग्रेसियों को एकजुट कर दिया ?

रवि शंकर दुबे.

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि जो काम लगातार कांग्रेस की हार नहीं कर सकी वो राहुल गांधी की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में पेशी ने कर दिया। लंबे अरसे बाद दिल्ली की सड़कों पर कांग्रेस के दिग्गज नेता एक साथ संघर्ष करते नज़र आए। बड़ी बात ये है कि जो नेता अक्सर एसी कमरों में बैठकर ट्वीट कर क्रांति रचने की फिराक में लगे थे वो भी सड़कों पर सुरकक्षाकर्मियों के सामने डटे नज़र आए।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत सचिन पायलट और दोनों राज्यों के बड़े कांग्रेसी नेता हाथ में ‘मैं भी राहुल गांधी’ की तख्ती लेकर नारे लगाते दिखे।

जिस तरह से अचानक दिल्ली में कांग्रेसियों की भीड़ इकट्ठा हुई, उसे देख ये ज़रूर कहा जा सकता है कि ये कांग्रेस की सोची—समझी रणनीति का एक हिस्सा ही होगा। कि एक ओर राहुल गांधी ईडी के दफ्तर में बैठ कर जवाब देंगे तो दूसरी ओर कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता दिल्ली की सड़कों पर हल्ला बोल करेंगे। हालांकि जिस तरह से कांग्रेसी नेताओं ने हल्ला बोल का मन बनाया था सुरक्षा बलों ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया।

दिल्ली पुलिस और सुरक्षाबलों ने जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाकर कांग्रेसियों को रोकने का पूरा इंतज़ाम कर लिया था, लेकिन राहुल गांधी जैसे ही कांग्रेस दफ्तर से बाहर निकले कार्यकर्ताओं में अलग ही जोश देखने को मिला। बहुत से कार्यकर्ता बैरिकेडिंग तोड़ते हुए राहुल के पीछ-पीछे ईडी दफ्तर पहुंच गए। और वहीं बैठकर रघुपति राघव राजा राम का पाठ करने लगे। दरअसल कांग्रेस ने इस हल्ला बोल को सत्याग्रह का नाम दिया था ताकि देश को एक शांति का संदेश दिया जा सके।

दिल्ली की सड़कों पर कई जगह कांग्रेसियों की झड़प हुई जिससे उन्हें हिरासत में लिया गया। इस दौरान कई प्रदर्शनकारियों के कपड़े फट गए और उन्हें चोट भी आई, जिसमें पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी शामिल थे। ख़बरें आईं कि पुलिस की बदसुलूकी में पी. चिदंबरम की पसलियों पर चोट आई है। वहीं दूसरी ओर तुगलक थाने में बंद कुछ नेताओं से प्रियंका गांधी ख़ुद मिलने पहुंची।

आपको बता दें कि राहुल गांधी के समर्थन में रणदीप सुरजेवाला, पवन खेड़ा, मल्लिकर्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी समेत तमाम दिग्गज नेता सड़कों पर उतर गए थे, जिन्हें हिरासत में लिया गया था।

सत्याग्रह के नाम पर जिस तरह से कांग्रेसी बाहर निकले हैं, और राहुल के समर्थन में पूरी कांग्रेस देश के हर कोने में प्रदर्शन कर रही है, उससे इतना तो साफ है कि आने वाले दिनों में कमान राहुल गांधी के हाथ में ही जाने वाली है।

आने वाले अगस्त महीने में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना है, जिसमें हमेशा की तरह राहुल गांधी का नाम सबसे आगे रहा। हालांकि एक ओर राहुल गांधी ख़ुद अध्यक्ष पद संभालने से मना करते रहे हैं, तो दूसरी ओर पार्टी के अंदर ही एक विरोधी खेमा जी-23 के नाम से तैयार हो गया जो ग़ैर गांधी परिवार के अध्यक्ष की मांग करता रहा। लेकिन पिछले दिनों जयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में सभी नेता इकट्ठा हुए और विरोध के सुर थोड़े कम होते दिखे। फिर राहुल गांधी ने जिस तरह से शिविर में भाषण दिया वो भी राहुल गांधी की दावेदारी को सबसे ज्यादा मज़बूत करता है। उसके बाद फिर ईडी के सामने राहुल की पेशी ने जिस तरह से कांग्रेस को एकजुट करने की कोशिश की है, उसने राहुल गांधी के नाम को और ज़्यादा मज़बूत कर दिया।

फिलहाल कांग्रेस के लिए अध्यक्ष पद की कमान सोनिया गांधी संभाल रही हैं। लेकिन उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती और आने वाले वक्त में गुजरात, हिमाचल समेत बड़े प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके बाद साल 2024 में लोकसभा चुनाव भी हैं। ऐसे में कांग्रेस को एक स्थाई अध्यक्ष की बेहद ज़रूरत है। क्योंकि पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी शिकस्त देखनी पड़ी है। यहां तक पंजाब की कमान भी कांग्रेस के हाथों से चली गई।

इन्हीें सब डैमेज से उभरने के लिए पिछले दिनों कांग्रेस ने जयपुर में चिंतन शिविर किया था, जिसमें युवाओं को तरजीह देने की योजना भी बनाई गई और एक बड़ी रणनीति के तहत देशभर में “भारत जोड़ो यात्रा’’ निकालने का निर्णय लिया गया, जिसमें मुख्य तौर पर कहा गया कि राहुल गांधी हर दिन कई किलोमीटर पैदल चलेंगे और पूरे भारत का भ्रमण करेंगे।

यानी कुल मिलाकर राहुल के ज़रिए कांग्रेस को फिर से इकट्ठा करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का एक साथ इकट्ठा होना और कार्यकर्ताओं का राहुल गांधी के प्रति इतना समर्थन कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी के लिए बेहतर भी साबित हो सकता है।

अगर हम पिछले गुजरात चुनावों को याद करें तो राहुल गांधी की अध्यक्षता में ही लड़े गए थे, हालांकि कांग्रेस जीत हासिल नहीं कर पाई थी, लेकिन भाजपा को 100 सीटों के अंदर ही रोकने में कामयाबी ज़रूर हासिल हुई थी। इसके अलावा राहुल गांधी की अध्यक्ष में कांग्रेस ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का चुनाव जीता था, जिसमें से मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा कांग्रेस को छोड़ भाजपा में शामिल हो जाने के बाद कांग्रेस की सरकार गिर गई थी, हालांकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सरकार अब भी चल रही है।

इन सबके बावजूद पिछले कुछ सालों में जिस तरह कांग्रेस के भीतर ही एक विरोधी तबका जी-23 के नाम से तैयार हुआ, फिर एक के बाद एक कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर चले गए, इसकी भरपाई करना कांग्रेस के लिए बेहद ज़रूरी हो जाता है।

एक लिहाज़ से देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को संभालना है, क्योंकि यही वो राज्य है जहां से पार्टी के पुराने दिग्गज नेता आते हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी उत्तर प्रदेश के ही अमेठी और रायबरेली से सांसद रहे हैं, हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने हरा दिया था। और फिर 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ दो विधानसभा सीटें मिलीं। ऐसे में देश की सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में कांग्रेस खुद के लिए क्या पैमाना तय करती है ये देखना बेहद दिलचस्प होगा।

इसके अलावा ये ज़रूर कहा जा सकता है कि अगर कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनावों से या विधासभा चुनावों की तुलना में भविष्य के चुनावों में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना है, तो कांग्रेस का ये प्रदर्शन और एकजुटता सिर्फ राहुल गांधी की ईडी में पेशी तक नहीं सीमित रहना चाहिए।

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