कुलदीप शुक्ला
महंगाई को लेकर मध्यम वर्ग क्या महशूस करते है, महंगाई को लेकर सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों राजनीति के तवे पर अपनी रोटी सेंकते है। ना तो इनको किसी गरीब के घर में चूल्हा जला है की नहीं उसकी इनको फ़िकर नहीं , न तो किसी गरीबों की रोजगार की फ़िकर है, इनको तो सिर्फ कुर्सी की फिकर है।
महंगाई की मार को इस पंक्ति से समझ सकते हैं,
कमातें है बहुत कुछ पर महंगाई में डूब जाती है।
कुछ इन्कम टैक्स ले जाता है कुछ पेट्रोल में उड़ जाती है।
कुछ गैस में जल जाता ,कुछ मंहगी राशन और तेल में चला जाता।
कुछ तो तरकारी और आलु प्याज की महंगाई रुला जाती
कमाई है बहुत कुछ पर महंगाई ने कंगला कर दिया ।
कुछ दवाई में लग जाता, तो कुछ ईएमआई में लग जाता।
ना सरकार सुध लेती ना महंगाई कम होने का नाम लेता ।
अगर मोर्चा निकाले तो सरकार आँखे दिखती हैं।
कमातें हैं बहुत कुछ पर महंगाई कंगला बना देता।
कंगला हो या बेरोजगार सरकार को सुनाई नहीं देता।
कमातें है बहुत कुछ पर महंगाई में डूब जाती है।
अब पुराने दिन याद आते जब साइकल पर यू ही चल देता।
ना थी पेट्रोल की मारा मारी ना महंगाई में डूब पाते
अब भी समय है जाग जाओ ! हंटर की मार हो या प्रजा की मार दोनों में दर्द बा
एकरा के दरद अबड़ दिन ले रहल बा
मार्ग में आजाओ नहीं तो मार्ग पर ला देगी जनता