भोपाल
बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान के सामने कैबिनेट विस्तार को लेकर लंबे समय से उलझन है। मुख्यमंत्री सहित कैबिनेट में कुल 31 सदस्य हैं, कुल चार पद खाली हैं, जिसके लिए टकटकी लगाने वालों में शिवराज के पूर्व मंत्रियों के अलावा वरिष्ठ नेता भी हैं। राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता निगम-मंडलों में ताजपोशी के लिए बेसब्र बताए जा रहे हैं। बीते दिनों संगठन और जिलों के प्रभार में सिंधिया के करीबियों को महत्व मिलने से उनकी उम्मीदें मजबूत हुई हैं।
2018 के चुनाव के बाद गठित हुई 15वीं विधानसभा का ढाई साल का कार्यकाल बीत चुका है। अगली चुनावी तैयारियों के लिहाज से दो साल शेष हैं। ऐसे में दावेदार कैबिनेट में दाखिल होने में देरी नहीं चाहते। आधे कार्यकाल के बाद मंत्री बनने में उनके सामने परफॉर्मेंस की चुनौती रहेगी। गत वर्ष मार्च में भाजपा सरकार बनने के बाद दो बार कैबिनेट विस्तार से लेकर नवंबर में हुए 28 विस सीटों के उपचुनाव तक में सिंधिया समर्थकों को भरपूर अवसर दिए गए।
मंत्री रहते हुए इमरती देवी, गिर्राज डंडौतिया और एंदल सिंह कंसाना हार गए। तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत ने बिना विधायक बने छह महीने का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। जनवरी में सिलावट और राजपूत की कैबिनेट में वापसी पुराने विभागों की जिम्मेदारी के साथ हो गई, जबकि पहले से रिक्त चल रहे एक पद के साथ तीन हारे हुए मंत्रियों के पद भी खाली हो गए।
अब इन चार पदों को लेकर गौरीशंकर बिसेन, रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला, सुरेंद्र पटवा, पारस जैन, करण सिंह वर्मा, महेंद्र हार्डिया, सीतासरन शर्मा और सबसे लंबे समय तक प्रोटेम स्पीकर रहे रामेश्वर शर्मा के नाम चर्चाओं में हैं। असंतोष की आशंका से बचने के चलते सत्ता-संगठन चार नामों पर अंतिम फैसले को लेकर विस्तार से ही कतरा रहा है।
भाजपा संगठन में निर्णयों में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों का ध्यान रखने की परिपाटी देखी जा रही है। संगठन में जिम्मेदारी से लेकर मंत्रियों को जिले के प्रभार देने तक उनका ध्यान रखा गया। चर्चा है कि सिंधिया को मोदी कैबिनेट में जगह मिल सकती है। ऐसे में संगठन नहीं चाहता कि पार्टी में सिंधिया के तुष्टिकरण का संदेश जाए।
सामने स्थानीय निकाय चुनाव हैं, ऐसे में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का जोखिम पार्टी मोल नहीं लेना चाहती। सिंधिया उन छह समर्थकों के समयोजन को लेकर सक्रिय हैं, जो विस उपचुनाव हार गए थे। इनमें डबरा से इमरती देवी, दिमनी से गिर्रा ज डंडौतिया, ग्वालियर पूर्व से मुन्न्ालाल गोयल, गोहद से रणवीर जाटव, करैरा से जसवंत जाटव और मुरैना से रघुराज सिंह कंषाना शामिल हैं।