धर्मनगरी राजिम का माघ मेला

    Rajim
    Magh Mela of Dharmanagari Rajim

    Raipur | विजय मिश्रा ‘अमित’,   भारत के इतिहास में नवप्रदेश के रूप में नवम्बर 2000 से अंकित छत्तीसगढ़ प्रांत अति प्राचीन काल से मेला मड़ाई का गढ़ रहा है। प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा पर यहां के प्रतिष्ठित शिवालयों नदी,तालाबों के तट पर पारम्परिक मेले लगते रहे हैं।ऐसे मेलों में सर्वाधिक जनप्रिय मेला धर्म नगरी राजिम का माघी पुन्नी मेला है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित राजिम राजधानी रायपुर से करीब पचपन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।इसे “छत्तीसगढ़ का प्रयाग”तथा “शिव-वैष्णव धर्म संगम तीर्थ” के नाम से भी राष्ट्रीय पहिचान प्राप्त है।

    यहां पैरी,सोढ़ूर और महानदी का पवित्र संगम है। इस त्रिवेणी को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के गंगा- यमुना- सरस्वती संगम स्थल की तरह मान्यता प्राप्त है।इसका प्राचीन नाम कमल क्षेत्र रहा है।यहां प्रदेशवासी अपने परिजनों की मृत्युपरांत के अनुष्ठानों सहित अस्थि विसर्जन, पितृतर्पण भी करते हैं।

    सर्वाधिक दीपदान का विश्व कीर्तिमान 

    राजिम के त्रिवेणी तट पर प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक विशाल मेला भरता है। मेला में महाकाल की नगरी उज्जैन,प्रयाग, हरिद्वार जैसे धर्मधाम से संतजन- श्रद्धालुजन त्रिवेणी संगम में स्नान करने बड़ी संख्या में आते हैं।पविउ स्नान उपरांत महानदी की रेत से शिवलिंग तैयार करके बेलपत्र,धतूरा आदि से पूजा अर्चना करते है। महानदी की धार में श्रद्धालुजन दीपदान करते हैं। यहां पर एक ही दिन में तीन लाख इकसठ हजार दीपदान करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज है। यहां संध्या कालीन महाआरती के समय शंख,घंटी की गूंज से मन भक्ति भाव में डूब जाता है।

    माता सीता ने की रेत से शिव लिंग की स्थापना

    धार्मिक मान्यतानुसार भगवान श्रीराम ने वनवास काल के दस वर्ष छत्तीसगढ़ के वनांचल में बिताए थे।इसी दौरान माता सीता और श्रीराम ने अपने कुलदेव महादेव की पूजा अर्चना राजिम में महानदी के तट पर  की थी। महानदी की रेत से शिवलिंग निर्मित कर माता सीता ने जिस स्थल पर आराधना की थी।उसी स्थल पर निर्मित कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर महानदी में टापू की भांति ऊंचाई पर निर्मित है।विशाल पीपल बृक्ष तले यहां शिवभक्तों की मण्डली का जमावड़ा बना रहता है।

    उड़ीसा से राजिम आते हैं प्रभु जगन्नाथ

    महानदी के तट पर भगवान श्री राजीव लोचन का विशालकाय मंदिर निर्मित है। मंदिर में नक्काशीदार पत्थरों से निर्मित स्तंभ, आकर्षक मूर्तियां अद्भुत वास्तु कला को प्रदर्शित करते हैं। प्रभु श्री राजीव का जन्मोत्सव माघ पूर्णिमा को यहां धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है, इस दिन उड़ीसा से भगवान जगन्नाथ भी श्री राजीवलोचन का जन्मोत्सव मनाने राजिम आते हैं।यही वजह है इस दिन उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर का पट बंद रहता है।मेला में आए श्रद्धालुओं को निकट स्थित ग्राम चम्पारण में श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी प्रकाट्य स्थल,लोमश ऋषि आश्रम,भक्त माता कर्मा,और अन्य देवालयों का दर्शन लाभ  सहज मिल जाता है।

    महानदी के तट पर ही स्थित राजीव लोचन मंदिर से लगा स्थल सीताबाड़ी है। जहां कि मौर्यकालीन तथा सम्राट अशोक काल के मंदिर,सिक्के,मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।

    पंचकोशी परिक्रमा करते हैं श्रद्धालु

    माघी पुन्नी मेला स्थल से  श्रद्धालुगण पंचकोशी परिक्रमा की शुरुआत करते हैं।यहां के कुलेश्वर महादेव का दर्शन करके धर्मालुओं का जत्था हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए ग्राम पटेवा के पटेश्वर महादेव,चम्पारण के चम्पेश्वर महादेव,फिगेंश्वर के महादेव और कोपरा ग्राम के कोपेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन कर परिक्रमा पूरी करते हैं।

    धार्मिक -सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम

    ग्राम्य संस्कृति का संरक्षण और नव पीढ़ी तक परम्पराओं का संचार की दृष्टि से इस मेले की बड़ी उपादेयता है।पखवाड़े भर के मेला में दर्शनार्थियों को प्रत्येक शाम सांस्कृतिक धार्मिक कार्यक्रम देखने का भी आनंद भव्य मंच पर मिलता है। महानदी की पसरी रेत पर सरकारी विभागों की प्रदर्शनी,खेल तमाशे,एवं साज श्रृंगार,, खान-पान के स्टाल  का मजा लाखों दर्शकों के भीतर नवऊर्जा का संचार करता है।

    सैकड़ों साल से भरते आए राजिम माघी पुन्नी मेला स्थल पर बना लक्ष्मण झूला, लेज़र शो जनमन को मोहित करता है।आस्था,अध्यात्म और संस्कृति का त्रिवेणी संगम माघी पुन्नी मेला  धार्मिक, सांस्कृतिक दृष्टि के साथ ही सामाजिक समरसता को भी सार्थक करते आ रहा है।

     

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