Literary life: गोसाईं दत्त से बदलकर अपना नाम “सुमित्रानंदन पंत” रख लिया स्मृति

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साहित्य/ Literary life: सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई 1900 को हुआ। जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। उनका नाम गोंसाई दत्त रखा गया। वह एक प्रकृति प्रेमी थे। वह गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे। 1910 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गये।

Literary life: गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया

  • तुलसीदास से प्रेरणा: गोसाईं दत्त, गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित थे। तुलसीदास जी का नाम भी “गोसाईं” था। इसलिए, उन्होंने “गोसाईं” नाम अपनाया था।
  • नया कवि व्यक्तित्व: 1918 में, जब उन्होंने “वीणा” नामक अपनी पहली कविता प्रकाशित की, तब उन्होंने “गोसाईं दत्त” नाम का प्रयोग किया।
  • लक्ष्मण से प्रभावित : 1923 में उन्होंने अपना नाम “सुमित्रानंदन पंत” रख लिया। यह नाम “सुमित्रा” (भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की माता ) और “नंद” (भगवान कृष्ण का पिता) से प्रेरित था।
  • नई शुरुआत: “सुमित्रानंदन पंत” नाम उनके लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक था। यह उनके साहित्यिक जीवन में बदलाव का भी प्रतिनिधित्व करता था।

Literary life: वैयक्तिक कारण

  • बचपन का अभाव: गोसाईं दत्त का बचपन गरीबी और अभाव में बीता था। “गोसाईं” नाम उन्हें उन कठिन परिस्थितियों की याद दिलाता था। गोसाईं दत्त को गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित थे। तुलसीदास जी का नाम भी “गोसाईं” था। गोस्वामी तुलसीदास का जीवन कठिन परिस्थितियों और अभाव में बीता था ।
  • आत्म-सम्मान: “सुमित्रानंदन पंत” नाम उन्हें अधिक आत्म-सम्मान और गरिमा का एहसास दिलाता था।
  • साहित्यिक पहचान: “सुमित्रानंदन पंत” नाम एक अद्वितीय साहित्यिक पहचान थी, जो उन्हें अन्य कवियों से अलग करती थी।

Literary life: 1918 में मँझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहाँ से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कालेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए। 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बँगला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे।


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इलाहाबाद में ही उनकी काव्यचेतना का विकास

Literary life: इलाहाबाद में ही उनकी काव्यचेतना का विकास हुआ। कुछ वर्षों के बाद उन्हें घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कर्ज से जूझते हुए पिता का निधन हो गया। कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी बेचना पड़ा। इन्हीं परिस्थितियों में वह मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हुऐ 1931 में कुँवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर, प्रतापगढ़ चले गये और अनेक वर्षों तक वहीं रहे। महात्मा गाँधी के सान्निध्य में उन्हें आत्मा के प्रकाश का अनुभव हुआ।

Literary life: गोसाईं दत्त से बदलकर अपना नाम "सुमित्रानंदन पंत" रख लिया
बाएं से: हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत और रामधारी सिंह ‘दिनकर’

Literary life: 1938 में प्रगतिशील मासिक पत्रिका ‘रूपाभ’ का सम्पादन किया। श्री अरविन्द आश्रम की यात्रा से आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ। 1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे। 1958 में ‘युगवाणी’ से ‘वाणी’ काव्य संग्रहों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन ‘चिदम्बरा’ प्रकाशित हुआ, जिस से में उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।

1961 में ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित हुये। 1964 में विशाल महाकाव्य ‘लोकायतन’ का प्रकाशन हुआ। कालान्तर में उनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। वह जीवन-पर्यन्त रचनारत रहे। अविवाहित पंत जी के अंतस्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भावना रही। उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर 1977 को हुई।

Literary life: साहित्यिक जीवन 7 वर्ष की उम्र

सात वर्ष की उम्र में जब वे चौथी कक्षा में ही पढ़ रहे थे, उन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था। 1918 के आसपास तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इस दौर की उनकी कविताएं वाणी में संकलित हैं।

Literary life: 1926 में उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित हुआ। कुछ समय पश्चात वे अपने भाई देवीदत्त के साथ अल्मोडा आ गये। इसी दौरान वे मार्क्स व फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आये। १९३८ में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला।

शमशेररघुपति सहाय आदि के साथ वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुडे रहे। वे १९५० से १९५७ तक आकाशवाणी से जुडे रहे और मुख्य-निर्माता के पद पर कार्य किया। उनकी विचारधारा योगी अरविन्द से प्रभावित भी हुई जो बाद की उनकी रचनाओं ‘स्वर्णकिरण’ और ‘स्वर्णधूलि’ में देखी जा सकती है।


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Literary life: “वाणी” तथा “पल्लव” में संकलित उनके छोटे गीत विराट व्यापक सौंदर्य तथा पवित्रता से साक्षात्कार कराते हैं। “युगांत” की रचनाओं के लेखन तक वे प्रगतिशील विचारधारा से जुडे प्रतीत होते हैं। “युगांत” से “ग्राम्या” तक उनकी काव्ययात्रा प्रगतिवाद के निश्चित व प्रखर स्वरों की उद्घोषणा करती है। उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पडाव हैं – प्रथम में वे छायावादी हैं, दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिवादी तथा तीसरे में अरविन्द दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी।

1907 से 1918 के काल को स्वयं उन्होंने अपने कवि-जीवन का प्रथम चरण माना है। इस काल की कविताएँ वाणी में संकलित हैं। सन् 1922 में उच्छ्वास और 1926 में पल्लव का प्रकाशन हुआ। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं – ग्रन्थिगुंजनग्राम्यायुगांतस्वर्णकिरणस्वर्णधूलि,कला और बूढ़ा चाँदलोकायतनचिदंबरासत्यकाम आदि।

उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं। पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं ‘पल्लव’ में संगृहीत हैं, जो 1918 से 1925 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है।

Literary life: इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता ‘परिवर्तन’ सम्मिलित है। ‘तारापथ’ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है। उन्होंने मधुज्वाल नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह निकाला और डाॅ हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से खादी के फूल नामक कविता संग्रह प्रकाशित करवाया। चिदम्बरा पर इन्हे 1968 मे ज्ञानपीठ पुरस्कार से ,काला और बूढ़ा चांद पर साहित्त्य अकादमी पुरस्कार (1960) से सम्मानित किया गया ।

Literary life: छायावाद की सूक्ष्म, प्रगतिवाद और विचारशीलता विचारधारा

उनका संपूर्ण साहित्य ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है। जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं वहीं दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के।

Literary life: उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत हैं। पंत परंपरावादी आलोचकों और प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी आलोचकों के सामने कभी नहीं झुके। उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्व मान्यताओं को नकारा नहीं। उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को ‘नम्र अवज्ञा’ कविता के माध्यम से खारिज किया। वह कहते थे ‘गा कोकिला संदेश सनातन, मानव का परिचय मानवपन।’

Literary life: हिंदी साहित्य सेवा के लिए पुरस्कार एवं सम्मान अलंकृत किया गया

हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया। सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को, जिसमें वह बचपन में रहा करते थे, ‘सुमित्रानंदन पंत वीथिका’ के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।

इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है।

पंत ने सदी के महानायक को अमिताभ नाम दिया

प्रकृति के एक कुशल चितेरे कवि के मुख से निकला यह नाम आज दुनियाभर में प्रसिद्ध है। पिता हरिवंश राय बच्चन भी छायावाद के एक बड़े स्तंभ ‌थे। नतीजतन उनके घर में कवियों का आना जाना लगा रहता था। सुमित्रानंदन पंत से हरिवंश राय बच्चन की गाढ़ी दोस्ती थी। सुमित्रानंदन पंत ने सदी के महानायक को अमिताभ नाम दिया।