आरी तुतारी व्यंग; कुलदीप शुक्ला । kudrat ka saf sandesh dharti now : उत्तर भारत में कुदरत ने इस बार जैसे साफ़-साफ़ कह दिया हो कि “अबकी बार सिर्फ़ चेतावनी नहीं, सज़ा ही मिलेगी ।” हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। कहीं पहाड़ दरक रहे हैं, तो कहीं बादल फटने से आई बाढ़ ने घर-द्वार सब बहा दिए। हालात ऐसे हैं कि मानो धरती अपनी ही नसों से खून बहा रही हो।
कुदरत का कहर थमा नहीं
kudrat ka saf sandesh dharti now : पहले उत्तराखंड, फिर हिमाचल, उसके बाद जम्मू-कश्मीर और पंजाब फिर भी कुदरत का कहर थमा नहीं। राजस्थान, गुजरात, दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों तक मौत का पैग़ाम लेकर बादल टूट पड़े। मानो आसमान ने गुस्से में धरती पर पानी नहीं, बल्कि नाराज़गी उड़ेल दी हो।
गाँव जलमग्न हो गए और लोग पानी-पानी हो गए
kudrat ka saf sandesh dharti now : पंजाब भी अछूता नहीं रहा। सतलुज, ब्यास और रावी के जलग्रहण क्षेत्रों में हुई लगातार बारिश ने कई जिलों में बाढ़ का मंजर खड़ा कर दिया है। खेत डूब गए, गाँव जलमग्न हो गए और लोग हुए पानी-पानी और ज़िंदगी पानी में तैरती नज़र आई।
kudrat ka saf sandesh dharti now : देश की सभी बड़ी नदियाँ उफान पर हैं गंगा, यमुना, सतलज, रावी, नर्मदा, कावेरी इन सब का जलस्तर खतरों के निशान से ऊपर बह रहा है। खेत डूबे, घर बहे और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। घर बह गए, सड़कें गायब हो गईं, और लोग अपने ही गाँव में शरणार्थी बन गए। कुछ इलाकों में जान-माल का इतना भारी नुकसान हुआ कि लोग अब राहत नहीं, बल्कि चमत्कार की उम्मीद करने लगे हैं। “आसमान सिर पर उठा है, ज़मीन पैरों तले खिसक गई है।”
लोग अपने ही गाँव में शरणार्थी बन गए, फसलें बह गईं, सड़कें ग़ायब हो गईं। कुछ जगहों पर तो हालात इतने खराब हो गए कि लोग अब राहत नहीं, बल्कि चमत्कार की उम्मीद करने लगे।
सत्ता के गलियारों में एक ही चिंता कहीं कुर्सी ही न डूब जाए
kudrat ka saf sandesh dharti now : लेकिन यह “रेड अलर्ट” नेताओं के कानों में पड़ते ही जैसे ‘साइलेंट मोड’ हो जाता है। बस्तर में बाढ़ का पानी घरों तक घुस गया, सैकड़ों लोग शिविरों में जा पहुँचे। किसी की छत बही, तो किसी की किस्मत। लेकिन सत्ता के गलियारों में तो बस एक ही चिंता बह रही है“कहीं कुर्सी ही न डूब जाए।”
kudrat ka saf sandesh dharti now : मगर नेताजी के कानों में जैसे रुई पड़े हों
जनता चीख-चीखकर मदद माँग रही है, मगर नेताजी के कानों में जैसे रुई पड़े हों। उन्हें तो बस अपनी राजनीतिक ढपली बजानी है। एक ओर कोई नेता दिन-रात “चोर-चोर” का राग अलाप रहा है, तो दूसरी ओर कोई तख्ती थामे “सबका विनाश” की पटकथा लिख रहा है।
स्वदेशी की दुहाई देने वाले नेता खुद विदेशी विलासिता की चादर ओढ़े घूम रहे हैं। “ऊपर से राम नाम, भीतर में मालामाल।”
kudrat ka saf sandesh dharti now : जनता पानी में डूब रही है, लेकिन नेताजी की चिंता यह है कि “कहीं गद्दी पानी में डूब जाए।”
कुदरत का संदेश साफ़ है“अब भी सुधर जाओ, वरना कुदरत की मार; दूर तक ज़ोर से सुनाई पड़ती है।”
लेकिन नेता सुधरें? यह उम्मीद करना वैसा ही है जैसे “भैंस के आगे बीन बजाना।”
अब भी समय है जाग जाओ !
मार्ग में आजाओ नहीं तो मार्ग पर ला देगी कुदरत !
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