रायपुर, विजय मिश्रा ‘अमित’ | 18 दिसम्बर गुरु घासीदास जन्म दिवस विशेष

सतनाम धरमधाम गिरौदपुरी – अमरटापू
छत्तीसगढ़ राज्य धर्म और पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण गढ़ है। यहां के धार्मिक और पर्यटक स्थलों को देश दुनिया में अभूतपूर्व पहचान मिली है। बाहरी पर्यटकों की बढ़ती संख्या के बीच यहां के रहवासियों को भी अपने राज्य भ्रमण को प्राथमिकता देना चाहिए।तो चलिए चलते हैं संत शिरोमणि गुरु घासीदास जयंती 18 दिसम्बर पर सतनाम धरमधाम गिरौदपुरी-अमरटापू के दर्शनार्थ।साथ ही प्रचारित करते हैं संदेश —–पहले घर के आंगन में लगे तुलसी की पूजा हो बाद में दूरदराज़ के बरगद की पूजा हो।

मनमोहक तपोभूमि गिरौदपुरी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर जिला बलौदा बाजार में स्थित है गिरौदपुरी ग्राम । गुरू घासीदास जी सतनामी सम्प्रदाय के प्रणेता गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसम्बर 1756 को यहीं हुआ था।
महानदी और जोंक नदी संगम स्थल से कुछ ही दूरी पर स्थित इस गांव की पहाड़ी पर उगे औंरा धौंरा बृक्ष के नीचे गुरु घासीदास ने तप किया था। इसीलिए गुरु की तपोभूमि के नाम से यह प्रसिद्धि है।फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक यहां आयोजित मेला में श्वेत वस्त्रधारी गुरूभक्त लाखों में आते हैं।
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चरण-अमृत-पंच कुण्ड
गुरु बाबा की तपस्थली निकट पहाड़ी जल से भरा ‘चरण कुण्ड’ हैं। सतनाम ज्ञानार्जनोंपरांत घासीदास जी ने इस कुण्ड में चरण धोए थे। ऐसी भी मान्यता है कि इसी के करीब’ बाबा ने जंगली जीवों की प्यास बुझाने, जीवनरक्षा हेतु इस ‘अमृत कुण्ड’ को अपनी चमत्कारी शक्ति से प्रकट किया था।इस कुंड के जलग्रहण से विविध व्याधियों-कष्टों से मुक्ति मिलती है।
तपोभूमि से कुछ दूरी पर एक विशाल चट्टान ‘ छाता पहाड़’ है।बाबा ने यहां समाधि लगाई थी।इसके निकट पांच कुण्ड बने हुए हैं।

श्रद्धा स्थल सफुरामठ स्मारक
गिरौदपुरी में गुरु घासीदास जी की जीवन संगिनी के नाम से सफुरा मठ निर्मित है।ऐसा कहा जाता है कि बड़े बेटे अमरदास खो जाने से आहत माता सफुरा ने मौन समाधि ले ली थी।तब उन्हें मृत समझकर बाबा की अनुपस्थिति में ग्रामीणजनों ने दफना दिया था। बाबा ने उन्हें नवजीवन दिया था।इस चमत्कारी घटना की स्मृति में सफुरा मठ बना हुआ है।सफुरा माई को पुनर्जीवित करने के पूर्व बाबा ने गाय की एक मृत बछिया को पुनर्जीवित किया था।आज भी वहां बछिया जीवनदान स्मारक बना हुआ है।
दुनिया का सबसे ऊंचा भव्य जैतखम्भ
श्वेत जैतखंभ को सतनाम पंथ के लोग सत्य के प्रति अटूट आस्था और सतनाम सम्रदाय की विजय कीर्ति का द्योतक मानते हैं। गिरौदपुरी में कुतुब मीनार से सात मीटर अधिक ऊंचा जैतखम्भ
(77मीटर ऊंचा) निर्मित है। 52 करोड़ रुपए से अधिक लागत में बने जैतखंभ को वर्ष 2015 में लोकार्पित किया गया था।जैतखंभ की छत पर जाने के लिए जयपुर के जंतर मंतर भवन की तरह दो छोर से सीढ़ियां बनाई गई हैं।दुनिया के सबसे ऊंचे जैत खम्भ के चित्ताकर्षक वास्तुशिल्प पर आंखें ठहर सी जाती है। पूर्णिमा की रात जैतखंभ की खूबसूरती और भी अधिक बढ़ जाती है।

मोतिमपुर का अमर टापू
छत्तीसगढ़ के सतनाम सम्रदाय के लोगों का एक और प्रमुख तीर्थ स्थल मुंगेली जिले का अमर टापू है।यह मुंगेली -पंडरिया मार्ग पर मोतिमपुर ग्राम में स्थित है।भुरकुंड पहाड़ से उद्गमित आगर नामक नदी के तट पर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण अमर टापू है।इसी टापू में तपस्यारत संत शिरोमणि गुरु घासीदास के बड़े पुत्र बाबा अमरदास ने सतनाम धर्म -संदेश को प्रचारित किया था। उन्हीं के नाम पर ही इसे अमर टापू के नाम से प्रसिद्ध मिली। यहां प्रत्येक वर्ष 18 दिसम्बर को महागुरू पर्व मेला लगता है।