God’s play : भगवान के द्वारा किया गया प्रत्येक कर्म को लीला के रूप में देखे चरित्रं के रूप में नहीं

God's play
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अध्यात्म | God’s play : भागवत कथा के दौरान परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने कथा में बताए भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है, हे ! अर्जुन मेरे जन्म और कर्म दोनों ही अलौकिक है कर्म को भी अलौकिक बताए और जन्म को भी , अर्थात इस लोक में दूसरा कोई ना हो इस  अलौकिक संसार से अलग हो , जन्म और कर्म दोनों अलौकिक है आगे भगवान कहते हैं कि जितने भी इस संसार में लोग हैं ।

भगवान के  वास्तविक रूप को नहीं जानते

God’s play : वह मेरे इस वास्तविक रूप को नहीं जानते जो मुझे वास्तविक रूप से जानता है ,वह मुझे प्राप्त होता है, और वास्तविक रूप से ना जानने की वजह से ही मेरे द्वारा कही गई बातों का अलग अर्थ लगा लेते हैं जिस दिन मेरे वास्तविक रूप को जान लेते हैं । उस दिन मेरे द्वारा किया गया कर्म और मेरे द्वारा कही गई बात को लीला के रूप में देखना शुरू कर देंगे, अभी चरित्र के रूप में  देखते है,भगवान भी इस बात से सहमत हैं कि मनुष्य ना समझने के कारण हमारे वास्तविक रूप को दर्शन नहीं कर पाते हैं अज्ञानता के कारण ।
जिस स्वरूप का दर्शन करते हुए भगवान का नहीं होता है क्योंकि भगवान को तत्व से जानना चाहिए हम लोग नहीं जानते जैसे हमारा मन है जैसे हमारी बुद्धि है वैसे ही समझ लेते हैं। वह लीला करते और हम चरित्र समझते हैं अपने वास्तविक प्रेम नहीं हो पाता ।

God’s play : क्रोध भय और आसक्ति तीनों से मुक्ति मिल जाए

भय तथा क्रोध से सर्वथा मुक्त होकर के आसक्ति से मुक्त होने के बात भगवान ने कही है और क्रोध से मुक्त होने के बात भगवान ने कही है भगवान कहते हैं कि शुद्ध भक्ति भाव से अर्थात जब तक आसक्ति रहेगी जब तक क्रोध रहेगा और जब तक क्रोध रहेगा तब तक शुद्ध भक्ति भाव नहीं हो सकती जब इन सब से मुक्ति मिल जाए आसक्ति से मुक्ति मिल जाए क्रोध से मुक्ति मिल जाए और भय से मुक्ति मिल जाए
जब इन तीनों से मुक्ति मिल जाए आसक्ति से मुक्ति मिलेगी तो हम उसी की तरह नहीं रहेंगे,क्योंकि भगवान देखते हैं व्यक्ति और आसक्ति में कोई अंतर नहीं होता उसको अनासक्ति में होना है ।

God’s play : वीतराग में होना है संतुलन में होना है ना तो राग में होना है ना विराग में होना है

वीतराग में होना है संतुलन में होना है ना तो राग में होना है ना विराग में होना है ना रखना है ना दूरी बनाना है दोनों के बीच में संतुलन में रहना है इसलिए भगवान ने कहा वितराग भयंकर,  जहां पर आशक्ति होगी राग होगा भय  होगा, भय   भी दो तरह का होता है एक बाहर की एक आंतरिक ।
God’s play : आंतरिक भय से मुक्ति होने की आवश्यकता
चोरों से, बदमाशों से, कीड़े मकोड़ों से यह सब बाहरी भय होता है और जब अंदर में हम लोग कर्म करते हैं छल, कपट, झूठ बोलते हैं, पाप करते हैं तो आंतरिक भय हो जाता है भगवान बाहरी भय को फिर भी स्वीकार करने लायक है ताकि हम सावधान होकर के समाज में रह सके लेकिन आंतरिक भय से मुक्ति होने की आवश्यकता है
हम ऐसा कुछ करें कि हमारे पास  यह सब न आने पाए हम अपनी तरफ से हमेशा उचित कार्य करें तो आंतरिक भय से मुक्ति होगी क्रोध से मुक्ति मिल जाए ,भाव हो जाए तो भगवान कहते हैं ।
God’s play : मेरी शरणागत होकर के बहुत से मनुष्य मेरे ज्ञान प्राप्त करते हैं 
मेरी शरणागत होकर के बहुत से मनुष्य मेरे ज्ञान से पवित्र हो करके तप द्वारा तपस्या करके उसे अपने भाव से मेरे भाव को प्राप्त कर ते हैं आसक्ति से भय से क्रोध से मुक्त होकर के अनन्य भाव से जब कोई और ना होता है एक ही भाव से करते हैं स्वभाव से करते हैं मेरी हो कर के बहुत से मनुष्य मेरे ज्ञान से पवित्र होकर के जो वास्तविक स्वरूप के ज्ञान से पवित्र होकर के तपस्या करके मुझे अपने भाव से मेरे भाव को प्राप्त करते हैं ।
God’s play : भगवान के प्रति भाव की कमी रहेगी तो फल भी कम ही मिलेगा
दोनों का बहुत गहरा सम्बन्ध  हो चुका होता है आपस में सम्बन्ध  से हो जाता है आगे कहते हैं ,जो मनुष्य जिस भाव से मेरी तरह शरण ग्रहण करता है मैं भी उसे उसी भाव से फल देता हूं। मनुष्य सभी प्रकार से मेरी बात का अनुसरण करते हैं हर प्रकार से भाव बहुत बड़ा होना चाहिए भीम की तरह विशाल  होना चाहिए भाव में शक्ति होनी चाहिए ताकत होनी चाहिए
लेकिन परमात्मा की शरण में जाने के लिए भगवान के प्रति भाव की कमी रहेगी तो फल भी कम ही मिलेगा फल की कमी हो जाएगी भाव में अभाव नहीं होना चाहिए भगवान कहते हैं ।
God’s play : गीता के माध्यम से जीवन जीने की कला बताई
पूजा नहीं करते पूजा टाइप करते हैं जब वास्तव में नहीं करते हैं तो फल नहीं मिलता है टाइप मिल जाता है इसी बात को कहते हैं, जिसके जीवन में कोई मार्गदर्शक होता है तो बता देते हैं जिसके जीवन में मार्गदर्शक नहीं होते वह भटक जाते हैं भाव की प्रधानता बताया गया है भगवान ने हर जगह, भगवान भाव से मिलते है,इस तरह गुरुजी द्वारा गीता के माध्यम से जीवन जीने की कला बताई गई।