गंगा दशहरा में किए गए दान, पूजा -पाठ यज्ञ से इक्कीस पीढ़ियों तक तरण तारण होता है…

GangaDussehra: A big festival of worship of Maa Ganga
GangaDussehra: A big festival of worship of Maa Ganga

आध्यात्म। श्रीमती कल्पना शुक्ला।। परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने गंगा दशहरा (GangaDussehra)की कथा में यह बताएं कि गंगा दशहरा अत्यंत पवित्र व महापर्व के रूप में मनाया जाता है , गंगा जी का अनादि काल से अवतार है किंतु गंगा जी जिस दिन इस धरती पर आई उस दिन हम गंगा दशहरा के रूप में मनाते हैं ।

जिस दिन वामन अवतार के विराट स्वरूप का चरण प्रक्षालन अपने कमंडल से ब्रह्मा जी जल दिए वहीं से गंगा जी का ब्रह्मा जी के कमंडल में चलती रही किंतु कालांतर में राजा सगर के अवतार विष (गर) के प्रभाव से हुआ था ।

उनकी माँ को जहर दे दिया गया था लेकिन गुरु के द्वारा उनका बचाव किया गया और उस पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा जिसके कारण उसका नाम आगे चलकर सगर हुआ जो बहुत ही दिव्यमान और यशस्वी हुए ।

उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया और एक घोड़ा यज्ञ पशु के रूप में छोड़ा गया यह विश्व व्यापी अभियान था उस घोड़े को इंद्र चुरा कर पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिए कपिल मुनि जो सांख्य दर्शन के माध्यम से अनेक लोगों को मुक्ति दिलाए थे भगवान विष्णु के ही अवतार थे और सांख्य योग की चर्चा गीता में भगवान कृष्ण भी किए,कपिल जो भगवान विष्णु के अवतार थे ।


यह भी देखें: गंगा दशहरा (GangaDussehra)की पूर्व संध्या पर किया गया सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ….

राजा सगर के 60,000 पुत्र घोड़े के खोज में निकले और पूरे धरती पर घोड़े की खोज किए, समुद्र से भी खोदे गए जितने भी खुदाई किए पहाड़ के रूप में एकत्रित हो गए इस पार से उस पार तक जब खुदाई किए तो देखा कि उनका घोड़ा कपिल ऋषि के आश्रम में बंधे हैं और उन्हें चोर समझ बैठे उल्टा सीधा कहने लगे उपहास उड़ाना शुरू कर दिए,चोर कह कर संबोधित करने लगे, कपिल मुनि का नेत्र जब खुला राजा सगर के 60 हजार पुत्र वही राख हो गए,अस्थि में बदल गए उनके नेत्र ज्वाला से सब जलकर भस्म हो गए ।

राजा सगर के पौत्र अंशुमान प्रार्थना किए ,तब कपिल मुनि ने कहा कि यज्ञ की पशु ले जा सकते हो लेकिन जो मृत हो चुका उसको हम जीवित नहीं कर सकते अंत में प्रार्थना करने पर कपिल जी बताएं की गंगा जी के स्पर्श से ही इनको स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है  इनको मुक्ति हो सकती है ।

GangaDussehra: भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न हो प्रकट हुई मां गंगा

अंशुमानजी बहुत तपस्या किए और उसके बाद उसके पुत्र राजा दिलीप बहुत तपस्या की उन सब का प्रयास चलता ही रहा हम सब का भी यह प्रयास होना चाहिए कि अपनी पूर्वजों के लिए उनकी तृप्ति के लिए यथा संभव उपाय करना चाहिए।


यह भी देखें: Akshay Tritya: अक्षय तृतीया एक ऐसा पवित्र तिथि है जिसका पुण्य फल कभी समाप्त नहीं होता है


उनके पुत्र भागीरथ हुए जो मन ,वचन,कर्म, शरीर सब तरह से संयमी और तपस्वी रहे और अपने गुरु और ऋषि से सुना कि कैसे उनके पूर्वज भटक रहे हैं फिर प्रण किया कि हम माँ गंगा को धरती पर लायेंगे और अद्वितीय साधना किए गंगा जी प्रसन्न हुई और गंगा जी से धरती पर आने की प्रार्थना किए ।

GangaDussehra: माँ गंगा कहती है कि मैं इस धरती पर नहीं आऊंगी क्योंकि धरती पर सब प्राणी पापी है, पाप ही पाप है।  मैं कहां जाऊंगी मैं कैसे पवित्र रहूंगी जहां के सब लोग इतने जटिल हैं , भागीरथ जी कहे कि हमने इस संसार :सागर को तारने का संकल्प लिया है इसलिए आपको यदि हम पर प्रसन्न हो तब इस धरती पर आना होगा ।

GangaDussehra: गंगा जी कहती है तुम साधक हो तो तुम ही बताओ कि मैं कैसे पवित्र रहूंगी तब इस धरती पर जब ऋषि मुनि मंत्र के उच्चारण से स्पर्श करेंगे जल को तब वह फिर से तरंगाइत और पवित्र हो जाएगी इस तरह ऋषि मुनि माँ गंगा के किनारे साधना करते हैं जब तप करते हैं और मां गंगा फिर से तरंगायित हो जाती है माँ गंगा कहती है कि मेरा प्रवाह इतना तेज है की धरती फट जाएगी पाताल में चली जाऊंगी तो मुझे रोकने के लिए इसका क्या उपाय है ?

जब ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी ने कहा कि एकमात्र गंगा जी को शिव ही धारण कर सकते हैं क्योंकि नारायण के तो चरण से जल निकले तो सर पर धारण नहीं कर सकते मैं तो पहले ही कमंडल में कर चुका हूं लेकिन भगवान शिव में वह शक्ति है वह अपने जटा में इसको रोक सकते हैं भागीरथ जी शिव की तपस्या की है और उनको प्रसन्न किए और उनके तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव तथास्तु कह देते है।

GangaDussehra: भगवान शिव आशीर्वाद दिए फिर मां गंगा भगवान की जटाओं में रही ,एक बूंद निकाला गया जो हिमालय गंगोत्री में प्राकट्य हुआ हरिद्वार से बहती हुई तेज वेग से वायु के वेग से रास्ते में सब शहर नगर सबको जहां-जहां स्पर्श हुआ सबको स्वर्ग पहुंचते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची,सगर के 60,000 पुत्रों को स्वर्ग मिला और सगर के साथ मिलने के कारण गंगासागर बना।

तरण तारण मोक्षदायिनी यह गंगा देव नदी सबके अंदर भक्ति प्रदान करते हुए सबको भक्ति प्रदान करती है ,पवित्रता प्रदान करती है ,भक्ति रूपी गंगा स्वर्ग में विचरण कर रही है देव नदी गंगा जहां है वहां निर्मलता है,शुद्धता है क्योंकि वहां गंगा धरती पर आने तैयार नहीं है । यहां की धरती में सब जटिल है स्वर्ग के ऊपर ही ऊपर बहती है गंगोत्री से गंगासागर तक ।

पूजा-पाठ दान ,तर्पण भगवान के कीर्तन हो रहा है चारों ओर गंगा तरंगित होती है मृत्यु लोक का मनुष्य अपना पाप धोते हैं ऋषि – मुनि सब पवित्र करते हैं फिर भगवान का नाम लेकर संत शुद्ध हो जाते है,भक्ति रूपी गंगा ऊपर स्वर्ग लोक के देवताओं के पास बह रही है इसलिए वह शुद्ध है और हर कार्य में उन्हें बुलाया जाता है।

GangaDussehra: दस प्रवृत्तियां शुद्ध हो तब दशहरा होता है कुप्रवृत्तियां हार जाए दशहरा होता है

यह भक्ति की गंगा दसों इन्द्रियां में बहे, दसों इंद्रिया शुद्ध रहे, भक्ति की धारा को ही गंगा कहते है । केवल कर्म से ही हम गंगाजल में स्नान करते है, अंदर के पांच इंद्रियां वहां भी भक्ति होनी चाहिए कर्म इंद्रियां शुद्ध हो जाती है दस प्रवृत्तियां शुद्ध हो तब दशहरा होता है कुप्रवृत्तियां हार जाए दशहरा होता है फिर हरा – भरा हो जाता है।

भक्ति की गंगा हम सबके जीवन में प्रवेश करें, माध्यम गुरु होता है औरव ऋषि भी गुरु ही थे, गुरु ही मुक्ति करवाते हैं , राक्षस भी देवता भी सभी अपने गुरु के पास ही प्रश्न पूछते हैं और कल्याण कराया जाता है संसार का कल्याण करने के लिए गुरु रूपी महादेव के माध्यम से हम सब पवित्र हुए हैं, ज्ञान की गंगा संतों के शिविर में प्रवाहित होती है इसलिए जब हम अंतःकरण शुद्ध होता है स्नान करने से बाहर कथा सुनने से शुद्ध होता है।

इस दिन माँ गंगा का दर्शन, आरती,पूजा, और स्नान का महत्व बताया गया है यदि हम नहीं पहुंच पाए तो स्नान के जल में गंगाजल डालकर स्नान कर सकते हैं समस्त शिष्य, शिष्याओं और देश वासियों को परम पूज्य गुरुदेव द्वारा गंगा दशहरा(GangaDussehra) की शुभकामनायें दिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here