स्कंद पुराण में स्कंद अर्बुद खण्ड में भगवान गणेश के प्रादुर्भाव से जुड़ी कथा
Ganesha : इस कथा के अनुसार, भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेशजी ने अर्बुद पर्वत (माउंट आबू, जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है) पर जन्म लिया था। इसी वजह से माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है। गणपति के जन्म के बाद देवी-देवताओं ने इस पर्वत की परिक्रमा की थी। इसके साथ ही साधु-संतों ने गोबर से वहां भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित की थी। आज इस मंदिर को सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है।
भगवान शिव ने गणेशजी को पंचतत्वों से बनाया
Ganesha : वराहपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने गणेशजी को पंचतत्वों से बनाया है। इसके पीछे कथा यह है कि एकबार शिवजी गणेशजी को बना रहे थे तब देवताओं को खबर मिली कि भगवान शिव अत्यंत रुपवान और विशिष्ट गणेशजी का निर्माण कर रहे हैं। इससे देवताओं को डर सताने लगा कि गणेशजी सबके आकर्षण का केंद्र बन जाएंगे। देवताओं के इस डर को शिवजी जान गए और उन्होंने विनायक के पेट को बड़ा कर दिया और मुख हाथी का लगा दिया।
Ganesha : माता पार्वती ने गणेशजी को पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था
इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने गणेशजी को पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था। पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उनको यह वरदान दे दिया आपको बिना गर्भ धारण किए दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी। इससे चारो तरफ खुशी का माहौल हो गया।
सभी लोग कैलाश पर्वत पर बाल गणेश को देखने आए और भगवान शिव और माता पार्वती के उत्सव में शामिल हुए। उस उत्सव में शनि महाराज भी आए और तब माता पार्वती ने उनसे बालक को आशीर्वाद देने के लिए कहा लेकिन वह अपनी दृष्टि की वजह से बच्चे को देखने से बच रहे थे।
तभी पार्वतीजी ने कहा कि लगता है आपको बालक का आगमन पसंद नहीं आया। शनिदेव ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है फिर उन्होंने जैसे ही अपनी दृष्टि बालक पर डाली, उससे बालक का सिर आकाश में उड़ गया। चारो तरफ उत्सव के माहौल में हाहाकार मच गया। तब गरूड़जी से उत्तम सिर लाने को कहा और वह हाथी का सिर लेकर आए और उसको बच्चे के शरीर पर रख दिया। फिर शंकरजी ने बच्चे में प्राण डाल दिए। इस तरह गणेशजी को हाथी का सिर प्राप्त हुआ।
Ganesha : शिवपुराण में भी भगवान गणेश के जन्म लेकर एक कथा
इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने एक बार अपने शरीर पर मैल हटाने के लिए हल्दी लगाई थी। इसके बाद जब उन्होंने हल्दी उबटन उतारी तो उससे एक पुतला बना दिया और फिर उसमें प्राण डाल दिए।
इस तरह भगवान गणपति का जन्म हुआ। तब माता पार्वती ने गणपति को द्वार पर बैठने के लिए आदेश दिया कि कोई भी अंदर ना आ पाए। कुछ समय बाद भगवान शिव आए तो गणेशजी ने अंदर जाने नहीं दिया और विवाद शुरू हो गया।
इससे शिवजी को क्रोध आ गया और विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया। युद्ध में शिवजी ने गणेशजी का सिर काट दिया। पार्वती जब बाहर आईं तो यह देखकर रोने लगीं। तब भगवान शिव ने गरूड़जी से कहा कि उत्तर दिशा की तरफ जाओ और जो भी मां अपने बच्चे की तरफ से पीठ करते सोई हो, उस बच्चे का सिर ले आना।
तब गरूड़जी को हाथी के बच्चे का सिर दिखाई दिया और वह उसे ले जाकर शिवजी को दे दिया। शिवजी ने सिर को शरीर से जोड़ दिया और प्राण डाल दिए। इस तरह गणेश को हाथी का सिर लगा।
Ganesha : विभिन्न पुराणों में भगवान गणेश के जन्म को लेकर कई कथाएं हैं।
ऐसे ही कुछ लोग कहते हैं कि भगवान गणेश माता पार्वती और शिवजी के पुत्र हैं तो उन्होंने विवाह में गणेश पूजन कैसे किया। इसका उदाहरण –
Ganesha : मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि। कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।
अर्थात ब्रह्मवेत्ता मुनियों के निर्देश पर विवाह के समय शिव-पार्वती ने गणपति की पूजा पूरी की। कोई भी व्यक्ति इस बात का संशय बिल्कुल न करें, क्योंकि देवता (गणपति) अनादि होते हैं। तात्पर्य यह है कि भगवान गणेश किसी के भी पुत्र नही हैं। वह अनादि और अनंत हैं। वेदों में गणेश न होकर गणपति या फिर ब्रह्मणस्पति का नाम से जाना जाता है। ऋग्वेद एवं यजुर्वेद के मंत्रों में भी गणेशजी के उपर्युक्त नाम से जाना जाता है।
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