”विजा पंडुम” बीज बोने का उत्सव….बस्तर की माडिया और मुरिया जनजातियों से जुड़ी प्रथा

fb image Src Jagdalpur
विशेष। 

सामुदायिक शिकार प्रथा बस्तर की माडिया और मुरिया जनजातियों (गोंड जनजाति के उप-ग्रुप) के बीच ‘विजा पंडुम’ (बीज बोने का उत्सव) से जुड़ी महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक है।

मुरिया जनजाति की दैनिक दिनचर्या

मुरिया जनजाति की दैनिक दिनचर्या कैसे बिताते है किस तरह के कार्य करते है इन के संबंध में चर्चा करने पर ज्ञात हुआ कि एक सामान्य मुरिया जनजाति प्रमुख चार प्रकार के पारंपरिक गतिविधि है, जिसमें पूरे वर्ष भर की समय अवधि में  कार्य को गति प्रदान करते है, जिसमें उन्होंने बताया कि कृषि कार्य, वनोपज संग्रहण, तीज-त्यौहार एवं सांस्कृतिक क्रियाकर्म प्रमुख बताया गया है। 285864267 1473112753109212 6123955661298644472 n 287532205 1475636122856875 5885347253323998880 n

कर्मकांड में महिलाओं का दर्जा ऊँचा है

महिलायें ग्राम देवताओं के वार्षिक उत्सव में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। बस्तर में कुछ कर्मकांड में महिलाओं का दर्जा इतना ऊँचा माना जाता है। सुख के लिए लोग ग्राम देवताओ पर निर्भर होते है। आमंत्रित देवताओं को माला और पुष्प अर्पित कर पूजा करती हैं महिलाएं ।

मुरिया जनजाति कृषि कार्यः

मुरिया जनजाति अपने दैनिक दिचर्या कृषि एवं वनोपज संग्रहण के द्वारा सामान्यतः जीविका करती रही है। कृषि एवं आर्थिक क्रिया कलापों में तत्वदृष्टि एवं जीवन दृष्टि को यहां देखने का प्रयास किया गया है।

फसल बोई का अनुष्ठान ”विजा पंडुम”

मुरिया जनजाति को लोगों द्वारा मई माह के अतिम सप्ताह और जून माह में वर्षा आने की सूचना तितली के उड़ान से अनुमान लगा लेते है। अगर तितली किसी एक ही दिशा में तेजी उड़ रहा हो । दूसरा यह बताया गया कि एक प्रकार का किट ( दिमक का परिवर्तित रूप ) उपर बड़ी तादाद् में उड़ने पर जल्द ही बारिस होने का अनुमान लगाया जाता है तथा फसल बुवाई की तैयारी प्रारंभ की जाती है । तैयारी के इन अवसरों पर माटी पूजा और फसल बोई का अनुष्ठान ”विजा पंडुम” किया जाता है । पूजा में बली चढ़ायी जाती है। पूजा का उद्वेश्य बीज से स्वस्थ पौधा का रोपण हो और अच्छी  फसल की पैदावर एवं लाभकारी हो।

वृक्षों का सम्मान करना

जनजाति प्रकृति प्रेमी और प्रकृति को देव तूल्य मानते है लोगों से ज्ञात हुआ कि मुरिया जनजाति के गोत्र का संबंध 750 वृक्षों से है जिसका संबंध उनके गोत्र से है,  इनके गोत्र के पीछे एक वृक्ष का नाम आता है जैसे कच्छुआ गोत्र के लोग कस वृक्ष की पूजा और सम्मान करते है, और इसको हानी नहीं पहुंचाते हैै।  इनका जीविकोपार्जन का प्रमुख श्रोत वृक्षों में निहित है।  सल्फी, ताड़, महुआ, आम, साजा, धांवरा, साल, चार,  डूमर, कुसूम, कुल्लू, नींबू, नीम, केला, अमरूद, गूलर, तेंदू इत्यादि है। इसके अतिरिक्त जड़ी-बूटि संकलित करके आय से जीविका चलाते है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here