प्राकृतिक प्रकोप- शीर्षक के द्वारा बल्लू-बलराम की रचना की प्रस्तुति

प्राकृतिक प्रकोप

मानवों के फेफड़े,अब जाल से होने लगे,
नींद लेकर साथ सब विषाणुएँ सोने लगे।

इस कदर पीड़ा प्रभो!मेरे हृदय में छा गया,
आरजू, आशा, प्रबल -उत्साह सब रोने लगे।

ज्ञान के औजार से विज्ञान को छलनी किया,
साथ में संहार के सब बीज हम बोने लगे।

नित्य सेवन कर रहे वो दोहरे व्यापार के,
भावनाओं के चिकित्सक रोटियाँ पोने लगे।

कत्ल जब से कर रहे हम मानवी आधार के,
आदमी के हाथ से ही आदमी खोने लगे।

प्रकृतियों को छेड़ने का हस्र देखो क्या हुआ,
बाल , बूढ़े, नौजवाँ के लाश हम ढोने लगे।

बल्लू-बलराम