75वीं वर्षगांठ पर 24 कैदियों को मिला रिहाई का सर्टिफिकेट, जेल से बाहर आए तो भर आई आंखें

इंदौर
आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आज इंदौर सेंट्रल जेल से 24 कैदियों को रिहा किया गया. गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सेंट्रल जेल पहुंचकर कैदियों को रिहाई के सर्टिफिकेट दिए. इस दौरान अपने अतीत को याद कर कैदियों की आंखे नम हो गईं. आज रिहा किए गए कैदियों में 22 पुरुष और 2 महिला कैदी शामिल हैं. इंदौर सेंट्रल जेल से रिहा किए गए कैदियों ने बाहर आकर जब खुली हवा में सांस ली तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. अपने जीवन के 15 बसंत जेल में बिता चुके अधिकतर कैदिय़ों की अपने अतीत को याद कर आंखे नम हो गईं.

इन कैदियों की जुर्म की अलग अलग कहानियां है. जिन पर अब इन्हें पछतावा भी हो रहा है, लेकिन बुरहानपुर जिले के खातला गांव के निंबालाल अन सिंह की कहानी सुनकर आपका दिल सिहर जाएगा. 63 साल के निंबालाल बताते हैं कि उनके गांव में अज्ञात लाश मिली थी, लेकिन नेपानगर तहसील के निंबोला थाना पुलिस ने उनसे 5 हजार रुपए की मांग लेकिन गरीब हालत होने की वजह से पैसे नहीं दे पाया. 250 रुपये महीने पर मजदूरी करके जैसे तैसे वो अपने बच्चे पाल रहा था. ऐसे में पुलिस को देने के लिए पैसे ही नहीं थे. निंबालाल अपनी कहानी सुनाते हुए रो पड़ते हैं. उन्होने बताया कि उन्होने पुलिस से बहुत विनती की कि मैं गरीब आदमी हूं पैसा नहीं हैं. मैने कभी 5 हजार रुपए की नोटों की गड्डी तक नहीं देखी है, लेकिन थानेदार नहीं माना और उसने दूसरी पार्टी से 10 हजार रुपए लेकर मेरे खिलाफ केस बना दिया.

पुलिस ने मेरे साथ 12 दिनों तक जमकर मारपीट की. मेरी बेरहमी से पिटाई के दौरान पुलिस के तीन डंडे टूटे. पुलिस की प्रताडना यहीं नहीं रुकी. पुलिस ने कहा जैसा मैं बोलूंगा उसी तरह बोलना होगा और मेरी हत्या करने की धमकी देकर हां कहलवा लिया. कहा कि तुम मर्डर की बात कबूल कर लेना. हम लोग तुम्हें छोड़ देंगे, उसके बाद उसे जेल भिजवा दिया. पिछले 15 साल से जेल में बंद हूं. मेरे तीन बच्चे एक बेटी और दो बेटे थे, वो कभी मुझसे से नहीं मिले. मेरे बूढ़े पिताजी मुझसे मिलने जरूर दो बार जेल आए, लेकिन 2015 में उनकी मौत के बाद कोई मिलने नहीं आया.

गरीबी के कारण पिताजी ने मेरी बेटी किसी को दे दिया था. उन लोगो ने बेटी को भी मार दिया. अब बच्चे और बीबी कहां है, इसका पता नहीं हैं. जेल में भी मैने 15 साल तक कड़ी मेहनत की. सिलाई का काम सीखा, जिसका पारिश्रमिक 15 हजार रुपए हुआ था लेकिन जेल अधिकारियों ने उसमें से दो हजार रुपए काट लिए औऱ 13 हजार रुपए ही दिए हैं. इसमें मेरा क्या होगा. सोचा था सिलाई मशीन खरीदकर कपड़े सिलकर बच्चों का भरण पोषण करूंगा, लेकिऩ इतने कम पैसे में अब वो भी नहीं हो पाएगा, अब सरकार की तरफ से लोन मिल जाए तो कुछ धंधा पानी कर सकूं.

वहीं मर्डर के चार्ज में सजा काट चुके अशोक बाबूलाल रोते हुए बताते हैं कि उनसे 35 साल की उम्र में बड़ी गलती हो गई, उनका कहना है कि पैसे के लेनदेन में विवाद हुआ और मारपीट के दौरान भावावेश में मर्डर हो गया. ये 1991 की घटना थी. 1996 में कोर्ट ने सजा दी और जेल आ गए लेकिन जमानत मिल गई. उसके बाद 2006 में वापस जेल जाना पड़ा और तब से जेल में बंद थे. अब 2021 में जेल से आजादी मिली है. अब बहुत अच्छा लग रहा है कि अब मैं परिवार के साथ रह सकूंगा. मेरा पूरा जीवन ही जेल में चला गया. बच्चों की बहुत याद आती रही और बच्चे भी मुझे देखकर रोते रहते थे. अब जाकर बच्चों से अच्छे से मिल सकूंगा.

इंदौर के सेंट्रल जेल के अधीक्षक राकेश भांगरे ने बताया कि जिन 24 कैदियों का जेल में आचरण अच्छा रहा है, उनकी रिहाई की गई है, इनमें 22 पुरूष और 2 महिला कैदी शामिल हैं, इन 22 पुरूष कैदियों में से 20 कैदियों ने उनके परम्परागत व्यवसाय औऱ खेती करने की इच्छा जताई है. दो कैदियों के पास कोई रोजगार नहीं होने से उन्हें जेल द्वारा संचालित पेट्रोल पंप पर रोजगार का अवसर उपलब्ध कराया गया है, वे कल से काम पर आ जाएंगे. रिहा हुए सभी कैदियों को समाज में अच्छे आचार-व्यवहार का संकल्प दिलाया गया है. बहरहाल, जेल से रिहा हुए इन कैदियों से यही शिक्षा मिलती है कि एक क्षण की गलती लंबे समय तक पश्चाताप का कारण बनती है इसलिए हमे क्रोध पर नियंत्रण करने और सोच समझकर कार्य करना चाहिए. जिससे जीवन में पश्चाताप न करना पड़े.

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