श्रद्धा भक्ति पूर्वक मनाया जा रहा है मोहिनी एकादशी का पर्व, संत महात्माओं ने रघुनाथ जी का दर्शन कर राजेश्री महन्त जी से किया भेंट

रायपुर,

वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहनी एकादशी के रूप में बड़े ही श्रद्धा भक्ति पूर्वक मनाया जा रहा है। श्री दूधाधारी मठ मंदिर में संत महात्मा, पुजारी गण, एवं विद्यार्थी जन भगवान के भजन कीर्तन में लगे हुए हैं। उन्हें मोहिनी एकादशी की महात्मय का श्रवण भी कराया गया! प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर समुद्र मंथन से प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरित कर दिया था, जिसे पीकर देवता अमर हो गए। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है।

राजधानी रायपुर स्थित श्री दूधाधारी मठ में भगवान रघुनाथ जी एवं श्री बालाजी की विशेष पूजा अर्चना किया गया। श्री दूधाधारी मठ पीठाधीश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज ने अपने संदेश में कहा कि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की एकादश तिथि को एकादशी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप का दर्शन पूजन करने से मनुष्य के जीवन के सभी दुख: दर्द समाप्त हो जाते हैं! इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है!

भगवान विष्णु संसार के पालनहार हैं। उनकी सेवा से बढ़कर तीनो लोक में कोई भी सेवा नहीं है! एकादशी के दिन व्रत धारण करने वालों को भगवान विष्णु की प्रतिमा या तैल चित्र स्थापित करके या किसी विष्णु, राम चंद्र जी या कृष्ण जी के मंदिर में जाकर के भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए। साथ ही ओम क्लीं बृहस्पतये नमः या ओम विष्णु, विष्णु, विष्णु, विष्णवे नमः बीज मंत्र का जाप करनी चाहिए। इससे साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मोहिनी एकादशी के पावन अवसर पर श्री राम शिरोमणि दास जी महाराज एवं उनके गुरु भाई जी प्रयाग राज निवासी तथा गिरजा शंकर तिवारी सहित अन्य शुभचिंतकों ने श्री दूधाधारी मठ पहुंचकर भगवान रघुनाथ जी का दर्शन पूजन किया एवं राजेश्री महन्त जी महाराज से विशेष मुलाकात कर मोहिनी एकादशी की शुभकामनाएं एवं बधाई दी। समाचार लिखे जाने तक मठ मंदिरों में भगवान के दर्शन पूजन करने वाले दर्शनार्थियों का आना-जाना निरंतर लगा हुआ था।

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