शिव समान प्रिय मोही न दूजा

अध्यात्म ।। कल्पना शुक्ला ।। आज कथा के अंतिम दिन परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी(गुरु जी) ने सेतु निर्माण की कथा में यह बताए कि भगवान राम कहते है,भगवान शिव के अलावा मुझे और कुछ प्रिय नहीं है, शिव हम सब के जीवन का विश्वास है जब हम अपने विश्वास को अपने अंदर रखे रहेंगे हमारा कार्य सिद्ध होता जाएगा ,जब अंदर में विश्वास रहेगा नहीं तो वह कार्य पूर्ण होगा नहीं, मन लगेगा नहीं ,विश्वास रहेगा नहीं, आत्मविश्वास की कमी हो जाए, जिस कार्य में आत्मविश्वास की कमी होगी उसमें बधाएं आएगी इसलिए आत्म विश्वास भरकर के काम करना चाहिए कोई भी कार्य करें विश्वास में त्रुटि ना हो डाउट ना हो,इस तरह कार्य करने से सफलता मिलती है, जो शिव से द्रोह रखता है वह भगवान की भक्ति नहीं प्राप्त कर सकता है।

रामेश्वर जी का वर्णन करते हुए भगवान राम कहते हैं जो भी भगवान रामेश्वरम का दर्शन करेगा वह मेरे लोक को जाएगा, मेरे धाम को जाएगा, और जो उसमें गंगाजल चढ़ाएगा वहां मेरे तुल्य हो जाएगा, मेरे में लीन हो जाएगा , इसलिए रामेश्वर में गंगाजल लेकर जाते हैं।

आगे सेतु निर्माण की कथा बताते हुए परम पूज्य गुरुदेव बताएं कि जलमार्ग, थल मार्ग और स्थल मार्ग तीनों मार्ग से वानर जाते हैं अर्थात ज्ञान ,भक्ति और कर्म, इन तीनों में से कोई एक मार्ग अपनाएंगे तो भगवान की प्राप्ति हो सकती है संसार रूपी भवसागर से पार हो सकते हैं, भगवान के कार्य में यथाशक्ति सहयोग जरुर करना चाहिए गिलहरी भी अपने सामर्थ्य के अनुसार पत्थर डालती हैं ,भगवान उसे स्वीकार करते हैं हम सबको शिक्षा देती है कि भगवान के कार्य में असमर्थता नहीं बताना चाहिए सामर्थ्य के अनुसार सहयोग करना चाहिए। अंगद जी रावण की सभा में अकेले जाते है निडर होकर और सकुशल वापस भी आते हैं इतना ही नहीं जब धरती पर पांव रख देते हैं तो कोई उसके पांव को हिला तक नहीं पाते,अगर अपने अंदर कुप्रवृत्तियां अशुभ शक्तियां, बुराई हावी रहेगी तो हमेशा डरे हुए रहेंगे और अगर सुप्रवृत्ति, अच्छाई हावी रहेगी भगवान का नाम रहेगा तब हमेशा निडर रहेंगे ,इसलिए अपने अंदर की बुराइयां छोड़कर अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए ,अंगद जी यह शिक्षा देते हैं। रावण अपनी सैनिक को डरा कर रखते हैं और भगवान हमेशा निडर रखते हैं।साम ,दाम ,दंड और भेद ,चार गुण राजा के होते हैं और यह चारों गुण रावण के पास नहीं है रावण राजा बनने के अधिकारी नहीं है क्योंकि चारों गुण रावण के पास नहीं है इसलिए भगवान राम के पास रावण के चार मुकुट अंगद जी फेंक देते हैं। आगे की कथा में यह बताए कि जब रावण कुंभकरण को जगाते हैं तो कुंभकरण भी रावण को समझते हैं कि माता जगदंबा को हरण करके ले आए हो वापस कर दो अन्यथा तुम्हारा कल्याण नहीं है।विजातीय तत्वों को कभी अंदर ना जाने दे ,धर्म के विरुद्ध मन हो जाता है, व्यभिचार जन्म ले लेता है ,भगवान को शत्रु समझ जाते हैं कुंभकरण भी मद्यपान करने लगता है और मति बदल जाती है राम के साथ युद्ध करता है।

भगवान राम का जीवन हम सबके लिए जीवन जीने की कला है, प्रेरणा स्रोत है, किस तरह भगवान राम सबको स्वीकार करके धर्म के मार्ग पर चलकर और वह रावण जो त्रिलोक क विजयी था,सब उसके आधीन थे, उससे विजय प्राप्त करते हैं हम सबको शिक्षा देते हैं की एक दिन सत्य की जीत होती है, बुराई चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो अच्छाई की जीत जरूर होती है । भगवान राम रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त करते हैं और विभीषण को लंका का राज्य देते हैं। जय जय श्री राम की घोष से पूरे पंडाल गूंजती रही।