साहित्य,
नेता जब मारे रावण को,
मार के अद्भुत ढोंग रचाय।
खुद के रावण को छिपा ले,
पुतले को रख के वो जलाय।।
भरे बुराई खुद में उसके,
पर रावण को बुरा बताय ।
भ्र्ष्टाचार मे लीपा पूता के,
खुद को सज्जन दिखाय।।
बन बैठे है खुद रावण देखो,
जो अपने को नेता कहाय ।
सब कथनी करनी खुद करे,
जनता को श्री राम हूँ बताय ।।
भाषण वो फेके लंबी लंबी,
बुराई को सबके वो गिनाय।
मैल भरे है खुद के मन देखो,
और ज्ञान को सबको चिपकाय।।
जला के रावण खुद रावण को,
धनुष पकड़ श्री राम बन जाय।
रावण बने फिरे जो साल भर,
दशहरे के दिन श्री राम हो जाय।।
-:सोमेश देवांगन