भगवान विष्णु को कुबेर जी से कर्ज क्यों लेना पड़ा …..

धन लक्ष्मी यंत्र श्री यंत्र

श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी), प्रयागराज
श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी), प्रयागराज
अध्यात्म,

भगवान विष्णु को कुबेर जी से कर्ज लेना क्यों पड़ा ? परम् पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने यह बताए कि पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भृगु ऋषि को यह निर्णय लेना था कि सबसे बड़ा कौन है?
भृगु ऋषि भगवान शिव के पास जाते हैं लेकिन प्रेत गण मना कर देते हैं कि अभी भगवान नहीं मिल सकते , माता पार्वती के साथ है वह नाराज होकर श्राप दे देते हैं कि आज से आपकी सशरीर पूजा नहीं होगी केवल लिंग के रूप में ही पूजा होगी, उसके बाद भगवान विष्णु के पास आते हैं भगवान विष्णु शेष नाग की सैया में शयन कर रहे थे, ऋषि को देख नहीं थे, ऋषि नाराज होकर भगवान विष्णु की छाती में लात से प्रहार करते है, अचानक भगवान देखते है,
भगवान विष्णु तुरंत ऋषि से क्षमा मांगते हैं और कहते हैं कि मेरी कठोर छाती में प्रहार करते समय आपके पांव में चोट तो नहीं आई ? पैर दबा देता हूं क्योंकि मेरी छाती कठोर है मैं आपको देख नहीं पाया , उसके इस विनम्रता पूर्ण व्यवहार से ऋषि प्रभावित होते हैं और उसको सबसे बड़ा मान लेते हैं , लेकिन माता लक्ष्मी नाराज होती है कि आप छाती पर लात मारने के बावजूद आप कुछ नहीं किए आपके हृदय में मेरा निवास है और यह चोट मुझे लगी है फिर भी आप उसको कुछ नहीं किए । माता नाराज होकर चली जाती है ,आप माता पृथ्वी लोक में आती है और एक राजा के घर जन्म लेती है जो माता पद्मावती के नाम से प्रसिद्ध होती है ,भगवान विष्णु चारों तरफ देखते है,खोजते हैं , माता कहीं नहीं मिलती तो पृथ्वीलोक आते है, पृथ्वी लोक में एक आश्रम में गुरु माता जी के पास भगवान रूप बदल कर रहते हैं । वह गुरु मां पूर्व जन्म की यशोदा माता थी भगवान ने उनको वचन दिया था कि आप अगले जन्म में हमारा विवाह करेंगे । जब माता यशोदा यह कहती है कि मैं बचपन से आपका पालन पोषण की लेकिन आपका विवाह नहीं देख पाई ,कृष्ण ने माता को वचन दिए थे कि अगले जन्म में आप हमारा विवाह कराएंगे।
एक बार हम जंगल में भगवान एक ऐसी जगह चले जाते हैं जहां केवल राजकुमारी ही जा सकती हैं बाकी लोगों के लिए प्रतिबंधित होता है, राजकुमारी उसको घेर कर खड़ी हो जाती है, उसी समय रानी पद्मावती आती है और भगवान उसको पहचान लेते हैं , आश्रम आकर माता से कहते हैं कि हमारी विवाह राजा की पुत्री पद्मावती से करा दीजिए और कुछ नहीं चाहिए ।जब माता मना करती है तो अपना असली रूप दिखाते हैं, कि हम कोई और नही स्वयं भगवान है,नारायण है,गुरु मां राजा के पास प्रस्ताव लेकर जाती है राजा कुछ समय मांगते हैं ,जब अपने देव गुरु बृहस्पति जी से पूछते हैं वह भी यही बोलते हैं कि उस आश्रम से जो प्रस्ताव आया है उसे स्वीकार कर लीजिए , इस तरह विवाह तय हो जाता है लेकिन उसके पास धन नहीं था विवाह करने के लिए । गुरुमां तुरंत ब्रह्मा विष्णु महेश का आवाहन करती है भगवान प्रकट होते हैं और उन सब को साक्षी मानकर कुबेर जी से विवाह के लिए उधार धन लेते हैं ।
कुबेर जी ब्रह्मा विष्णु महेश को साक्षी मानकर धन उधार देते हैं लेकिन यह पूछते हैं कि आप इस धन को कब तक चुका पाओगे ? भगवान कहते हैं कि कलयुग के अंत तक का आपको चुका पाऊंगा । कलयुग में जब मेरे भक्त गण जो भी धन दान पुण्य और यज्ञ कार्य में करेंगे उससे आपका कर्ज चुका दूंगा।तब माता लक्ष्मी कहती है इससे भक्त लोग को क्या मिलेगा ? भगवान कहते हैं आप करुणा मयी है ,आप ही दे दीजिए, तब मां धनलक्ष्मी के रूप में प्रकट होती है और जो भी भक्त भगवान के कार्य में सहयोग के लिए धन लगाते हैं उसको माता धनलक्ष्मी कई गुना वापस करती हैं । इसलिए हमेशा कथा भागवत या दान पुण्य,सत्संग ,यज्ञ कोई भी जगह मिले वहां दान जरूर करना चाहिए , माता कई गुना फल दे देती है।
इस तरह भगवान कुबेर से कर्ज लेकर विवाह करते हैं और जितने भी धार्मिक लोग जो मंदिर में चढ़ावा चढ़ाते हैं यज्ञ ,दान ,हवन ,पूजा कार्य में धन लगाते है , सब भगवान के कर्ज चुकाने का काम आता है और माता लक्ष्मी उसको कई गुना वापस कर देती है , अभी तिरुपति बालाजी में भगवान विष्णु वेंकटेश और माता लक्ष्मी के पद्मावती के रूप में दर्शन मिलता है।

धन लक्ष्मी यंत्र श्री यंत्र

श्री यंत्र के विषय में परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) बताएं कि यंत्र ,मंत्र और तंत्र तीनों में देवी देवताओं का निवास होता है ,श्री यंत्र में समस्त ब्रह्मांड के देवी देबताओ का वास होता है । एक श्री यंत्र की पूजा करने पर सभी देवी देवताओं की पूजा हो जाती है , श्रीयंत्र के ऊपरी भाग में माता त्रिपुर सुंदरी औऱ नीचे भाग में ललिता देवी का निवास होता है । जिस देवी देवताओं को स्मरण करके यंत्र की पूजा की जाती है उसका पूजा हो जाता है साथ ही दरिद्रता का अंत होता है । यंत्र कई प्रकार के होते हैं ,कागज का यंत्र 1 दिन में समाप्त हो जाता है ,और चांदी का यंत्र,तांबे का यंत्र 1 वर्ष में समाप्त होता है, स्फटिक और सोना का यंत्र लंबे समय तक आजीवन जागृत होता है । लक्ष्मी,इंद्र, कुबेर योग में मंत्र की साधना की जाती है तब श्री यंत्र की स्थापना की जाती है तो शुभ होता है। समय -समय पर यंत्र को जागृत करना चाहिए , समस्त वास्तु दोष इससे दूर होते हैं, और इसके रहने पर हमारे पास कोई भी विपत्ति नहीं आती है ,हमारी रक्षा करती है जब भी घर के किसी बड़े सदस्य पर विपत्ति आने वाली होती है यह अपने ऊपर ले लेती है यंत्र फट जाता है या काला पड़ने लग जाता है, इस तरह यंत्र हमारी रक्षा करती है। लाल फूल और रक्त चंदन से इसकी पूजा करनी चाहिए और लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए महालक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करना चाहिए, अपने घर में सुख -शांति की कामना के लिए इस यंत्र को अवश्य रखना चाहिए। व्यापार वृद्धि के लिए भी यह यंत्र बहुत अच्छा होता है ।

– श्रीमती कल्पना शुक्ला 

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