भगवान राम ने मनुष्य के रूप में जीवन जीने की कला बताएं – पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी)

आध्यात्म

गुरु शिष्य सेवा संस्थान के द्वारा सुंदर नगर रायपुर में एक दिवसीय महा सत्संग का आयोजन किया गया, पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) के द्वारा कथा के माध्यम से जीवन जीने की कला बताया गया |

मनुष्य दुखी क्यों है ? क्योंकि जीवन को सही ढंग से जी नहीं पाते जीवन का सही अर्थ समझ ही नहीं पाते मानस रामचरितमानस के माध्यम से मानसिक रोग के बारे में बताया गया कि मनुष्य किन-किन स्वभाव के कारण मानसिक रोगों से ग्रसित होता है ।

हम बाहर की सुंदरता को देखते हैं बाहर की सफाई करते हैं, लेकिन हमारे अंदर भी सुंदरता होनी चाहिए अंदर भी विकार मुक्त होना चाहिए और इसी के कारण हम अनेक प्रकार के वात, पित्त, कफ अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित होते हैं। विकार मुक्त होने की बात कही गई निर्माण होने की बात कही गई अंदर से और बाहर दोनों तरफ से जब हम निर्मल होते हैं,  रोगों से भी मुक्त होते हैं, लोभ मोह क्रोध अहंकार यह सब अनेक प्रकार के रोगों का कारण होता है, भगवान ने तो एक ही इंसान बनाए थे, हम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तो बाद में हैं, सबसे पहले हम इंसान हैं | हम आडंबर में बंधे होते हैं , मानव जीवन से जुड़े अनेक प्रकार से जीवन जीने की कला पूज्य गुरुदेव के द्वारा बताया गया काफी संख्या में लोग उपस्थित रहे |

जो अपने तन को नहीं संभाल सकता वह वतन को क्या संभालेगा? रामचरितमानस में जब भगवान राम को लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न नहलाने की इच्छा करते है , भगवान मना कर देते हैं स्वयं अपना कार्य करने की बात कहते हैं , कथा के माध्यम से गुरु जी यह बताएं कि भगवान अपना कार्य स्वयं करते हैं जब हम अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करते तो फिर राज्य कैसे चलाएंगे परिवार कैसे चलाएंगे ? भगवान राम ने मनुष्य के रूप में जीवन जीने की कला बताएं ।

जब हम प्रकृति के ऊपर हावी होना शुरु करते हैं वास्तविकता से परे होते हैं हम दुखी होते हैं परमात्मा से दूर हो जाते हैं वह लोग विकार के अधीन हो जाते हैं फिर प्रकृति में परिवर्तन होने लगता है प्रलय आने लगती है भूकंप आने लगता है । कारण कोई और नहीं स्वयं मनुष्य ही होता है हम सब को प्रकृति के साथ तालमेल करके रहने की आवश्यकता है प्रकृति के में परिवर्तन का कारण स्वयं मनुष्य ही होता है । बहुत सुंदर कथा पूज्य गुरुदेव के द्वारा सुनने को मिली सभी मंत्रमुग्ध रहे साथ में दीनदयाल उपाध्याय नगर में आशा राजेश शर्मा के यहां भव्य हवन के साथ कथा को विराम दी गई ।

संगति और स्वभाव
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी कथा के माध्यम से बताए कि संगति का दोष परिवर्तन हो जाता है, लेकिन स्वभाव का दोष जल्दी से नहीं बदलता है, कुसंगति से सुसंगति में।
निर्वाण मोह जीत संग दोषा….. संगति का दोष समाप्त हो जाता है, जब हरि कथा सुने,संतो से मेल होता है, लेकिन स्वभाव का दोष जल्दी से नहीं बदलता है और दोनों प्रकार के दोष मनुष्यों में पाए जाते हैं ।

स्वभाव का दोष हमारे पूर्व जन्म से ही होता है। इसी दोष के कारण मनुष्य इधर-उधर भटकता है, 4 लाख 84,000 हजार योनि में भटकते रहता है। जीवन का आनंद नहीं ले पाता है ,जन्म लेता है मृत्यु के लिए, और मृत्यु होता है जन्म के लिए, दीपक जलती है बुझने के लिए, सूरज दिखाई देती है उगने के लिए,

जब भी कल आया आज भी आता है ,अपना वर्तमान कल बन जाता है आज हो जाता है । सब यह शरीर ही है सदुपयोग भी दुरुपयोग भी । पशुओं के लिए देवताओं के लिए दुर्लभ होते हैं लेकिन मनुष्य के लिए सुलभ है भवसागर से पार होने के लिए यह एक बहुत बड़ा जहाज है।

कर्णधार सद्गुरु दृढ़ नावा … जब सतगुरु मिल जाए वही जहाज को लेकर चलता है समस्त दुर्लभ को सुलभ बना देता है।जब हम गुरु के अनुसार चलते हैं सब कुछ उसी को सौप देते हैं तो हमारी जीवन रूपी जहाज को कभी डूबने नहीं देता है भवसागर से पार कर देता है गुरु ही मार गए गुरु ही मंजिल होते हैं ।

काक भूसुंडी और गरुड़ जी की कथा साथ में भगवान शिव और गुरु का महत्व हम सब शिष्यों के लिए काफी प्रेरणादायक रहा पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी के मुखारविंद से यह कथा बताई गई । मनुष्य धरती पर होता है अर्थात अपने स्तर नहीं होता है लेकिन जब उसे गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है गुरु का वरद हस्त उसके सिर में होता है वह उड़ने लगता है और यह कई बार बहुत सारे शिष्यों के साथ हुआ गुरु जी का ही आशीर्वाद है कि हम सब अपने जीवन में व्यवस्थित है समय आने पर सभी कार्य अपने आप पूरा हो जाना यह गुरु जी का ही आशीर्वाद है ।

जब हम उनके लिए समर्पित होते हैं तब वह हमें संभाले होते हैं मानस में कथा के माध्यम से बहुत सारी ऐसी प्रेरणादायक बातें गुरु जी द्वारा बताई गई काग भुसुंडी मनुष्य के रुप में पता नहीं कब दर्शन कर पाता लेकिन जब श्राप मिला तब वह प्रतिदिन भगवान का दर्शन करने लगा गुरु का श्राप भी उसके लिए वरदान बन जाता है कृपा इसी तरह हो जाती है । अपने स्थिति में संतुष्ट रहना वह काग रूप को ही स्वीकार किया ,

जब हम जाने अनजाने में अपने गुरुदेव का सम्मान नहीं कर पाते गुरु तो हमें क्षमा कर देते हैं लेकिन भगवान कभी क्षमा नहीं करते । क्योकि गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है । मनुष्य के शरीर में आकर ही हम कुछ कर पाते हैं और अपने लिए तो प्रतिदिन करते हैं लेकिन जब अवसर मिले हरि कथा में भी आ जाए जो हमारा बैंक बैलेंस होता है मानव जीवन का सही अर्थ और उपयोग प्रतिदिन कथा के माध्यम से गुरु जी के द्वारा बताया जा रहा है।

कल्पना शुक्ला 

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