ब्रेन के हुनर की वजह से यात्रा के दौरान आती है मितली…

बस या कार में यात्रा करते हुए जी मचलना या उल्टी आना, ऐसी परेशानी बहुत लोगों को होती है। असल में ऐसा मस्तिष्क के जबरदस्त हुनर के चलते होता है। बस, कार, विमान या पानी के जहाज में यात्रा करने के दौरान शरीर और मस्तिष्क के बीच एक असमंजस की स्थिति बन जाती है। यात्रा के दौरान दिमाग को ऐसा लगता है जैसे शरीर में जहर फैल रहा है। जान बचाने के लिए मस्तिष्क हरकत में आता है। जी मचलने लगता है और उल्टी सी आने लगती है। इस तरह दिमाग शरीर से विषैले तत्वों को बाहर करने की कोशिश करता है। लेकिन दिमाग को ऐसे संकेत मिलते क्यों हैं? इसका कारण समझाते हुए डॉक्टर कहते हैं कि यात्रा के दौरान सीट पर बैठा इंसान स्थिर होता है लेकिन कान लगातार गति की आवाज मस्तिष्क तक पहुंचा रहे होते हैं। कान, दिमाग को बताते हैं कि हम गतिशील है। एक तरफ स्थिर शरीर होता है तो दूसरी तरफ गति से जुड़ी जानकारी। ऐसी परस्पर विरोधाभासी जानकारी मिलने पर मस्तिष्क को लगने लगता है कि कुछ गड़बड़ हो रही है।

कान के भीतर बैलेंस सेंसर
अगर आप पानी के जहाज में बैठे हैं और बाहर सब एक समान है तो आपकी आंखें गति की जानकारी नहीं देती हैं, लेकिन हमारे कानों में द्रवीय पदार्थ होते हैं जो भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों पर चलते हैं। गति के दौरान ये द्रवीय पदार्थ गतिमान होते हैं। ऐसी स्थिति में मस्तिष्क को कई तरह के सिग्नल मिलते हैं। मांसपेशियां और आंखें बता रही होती हैं कि हम स्थिर हैं और कान के बैलेंस सेंसर कह रहे होते हैं कि हम गतिमान हैं। ये दोनों विरोधाभासी संकेत सही नहीं हो सकते। दिमाग को पता चल जाता है कि कुछ गड़बड़ है। लाखों साल के क्रमिक विकास के दौरान दिमाग यह सीख चुका है कि ऐसी गड़बड़ तभी होती है जब शरीर के भीतर विषैले तत्व आ जाएं। उनसे निपटने के लिए ब्रेन तुरंत हरकत में आता है और मितली सी आने लगती है या उल्टी होने लगती है।

कैसे बचें
यात्रा के दौरान आगे तरफ देखते हुए अगर आंखें खुली रखी जाएं तो काफी आराम मिलता है। असल में ऐसा करने से दिमाग को पता चलता है कि हम गतिमान हैं और वह इस तथ्य को स्वीकार कर लेता है और बचाव की मुद्रा में नहीं आता है। आम तौर पर बच्चों या कम सफर करने वालों को ऐसी समस्या सबसे ज्यादा होती है। बच्चों का दिमाग विकास कर रहा होता है, वह यात्रा करने का आदी नहीं होता, इसीलिए बचपन में ऐसी तकलीफ ज्यादा होती है लेकिन धीरे धीरे उम्र बढऩे और यात्रा के बढ़ते अनुभव के साथ मस्तिष्क इसे समझ जाता है और तालमेल बैठा लेता है।