“बी अवेयर,शेयर,एंड केअर” थीम पर मनाया जाएगा थैलसीमिया दिवस

, यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जागरूकता है बचाव का उपाय

जगदलपुर,

थैलेसीमिया ,बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है । इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है और रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये प्रतिवर्ष 8 मई को अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है।

इस बारे में सीएमएचओ डॉ.आर.के चतुर्वेदी ने बताया,” थैलेसीमिया एक जेनेटिक रोग है, जो बच्चों को माता-पिता से मिलता है। इस रोग से शरीर में हीमोग्लोबीन बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। अगर सही तरीके से इसका इलाज नहीं हो तो बच्चे की मौत भी हो सकती है। थैलिसिमिया के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलिसिमिया दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष वर्ल्ड थैलेसीमिया डे 2022 का थीम “बी अवेयर,शेयर, एंड केअर” है। यह थीम प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत स्तर पर, थैलेसीमिया के खिलाफ लड़ाई में योगदान करने और इस बीमारी के रोगियों के बेहतर स्वास्थ्य देखभाल करने और आवश्यक जानकारी साझा करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करता है।”

मेडिकल कॉलेज जगदलपुर ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ सचिन बड़गे ने बताया, “सामान्यतया लाल रक्त कोशिकाओं की आयु 120 दिनों की होती है लेकिन इस बीमारी के कारण आयु घटकर 20 दिन रह जाती है जिसका सीधा प्रभाव हीमोग्लोबिन पर पड़ता है । हीमोग्लोबिन के मात्रा कम हो जाने से शरीर कमजोर हो जाता है व उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है परिणाम स्वरूप उसे कोई न कोई बीमारी घेर लेती है। यह एक आनुवंशिक बीमारी है, माता -पिता इसके वाहक होते हैं। इस रोग के प्रति जागरूकता बचाव का सबसे बड़ा उपाय है।“

उन्होंने आगे बताया, “थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थैलेसिमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। किंतु पालकों में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के 25 प्रतिशत आशंका है।“

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं। कुछ बच्चों में 5 से 10 साल में भी लक्षण दिखाई देते हैं। त्वचा, आंखें, जीभ और नाखून पीले पड़ने लगते हैं। दांतों को उगने में कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है। बीमारी की शुरुआत में इसके प्रमुख लक्षण कमजोरी व सांस लेने में दिक्कत है। थैलेसीमिया की गंभीर अवस्था में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है। कम गंभीर अवस्था में पौष्टिक भोजन और व्यायाम बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित रखने में मदद करता है।

रोग से बचने के उपाय
• खून की जांच करवाकर रोग की पहचान करना।
• शादी से पहले लड़के व लड़की के खून की जांच करवाना।
• नजदीकी रिश्ते में विवाह करने से बचना।
• गर्भधारण से 4 महीने के अन्दर भ्रूण की जाँच करवाना।

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