अध्यात्म,
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) ने कथा के माध्यम से यह बताएं कि संसार सागर एक मंच है सारा संसार ही मंच है इस मंच पर हर कोई आता है और अपना रूप धारण करता है पात्र बनता है फिर जीवन खत्म होता है फिर वह चला जाता है फिर दूसरे रूप में आता है भगवान भी यही बता रहे हैं यही मनुष्य का जीवन है।
जहां मनुष्य की असमर्थता होती है वहां सब कुछ भगवान पर छोड़ देता है यह भगवान की इच्छा थी और जब समर्थन होते हैं तब यह सोचते हैं कि मैं कर रहा हूं
शिव और सती की लीला के माध्यम से यह बताया गया कि जब माता सती को भ्रम होता है और भगवान की परीक्षा लेने चली जाती है भगवान शिव कहते हैं किए भगवान की ही इच्छा थी कि इसकी बुद्धि भ्रमित हो गई अब इसका कल्याण नहीं है यह लीला बताया गया मनुष्य के लिए मनुष्य की स्थिति यही होती है। भगवान शिव भी यही कहते हैं कि जो भी हो रहा है वह भगवान की प्रेरणा से हो रहा है होइहै जोई सोई जो राम रचि राखा….. भगवान की लीला को चरित्र के रूप में ना देखकर लीला के रूप में देखें क्योंकि भगवान हम मनुष्यों की ही लीला करते हैं हमारी स्थिति को समझाते हैं।मनुष्य के साथ भी यही घटना होती है।
सज्जन व्यक्ति के साथ रखकर दुर्जन भी सज्जनता को प्राप्त कर जाते हैं
दूध और जल का तालमेल देखिए जल दूध के साथ मिलकर दूध हो जाता है और दूध के भाव बिक जाता है लेकिन अगर उसी जल और दूध में खटाई डाल दिया जाए कपाट रूपी खटाई पड़ जाए खटाई मतलब संबंध को तोड़ देना अगर कपट पड़ जाए तो दूध को अलग और जल को अलग कर देता है छोड़ देता उसे जहां संबंधों के बीच में खटास आने लग जाए कपट की खटास आने लग जाए तो अलग हो जाता है विच्छेद हो जाता है संबंध में कभी कपाट का खटास नही आना चाहिए। एक महान एक बहुत मूल्यवान और एक साधारण दोनों मिलकर के मूल्यवान हो जाते हैं।
-: श्रीमती कल्पना शुक्ला