दिल्ली: 12 साल के बच्चे से गैंगरेप और बर्बर मारपीट, निर्भयाकांड के बाद भी नहीं बदली राजधानी

नई दिल्ली 

“दिल्ली में लड़की तो क्या लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं। एक12साल के लड़के के साथ चार लोगों ने बुरी तरह से रेप किया और डंडों से पीटकर अधमरी हालत में छोड़कर चले गए।…”

ये ट्वीट दिल्ली महिला आयोग प्रमुख स्वाति मालीवाल का है। स्वाति मालीवाल ने एक महिला की शिकायत पर फौरन इस घटना का संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करवाई जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने इस मामले में अब तक 1 आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है वहीं बाकी 3 अब भी गिरफ्त से दूर हैं। फिलहाल लड़के को अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां उसकी हालत गंभीर बताई जा रही है।

बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट भी देश में बच्चों के असुरक्षित होने की तस्दीक करती है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2021 में बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध के 1,49,404 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 53,874 मामले पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट के तहत दर्ज हुए हैं, जो कि कुल मामलों का करीब 36 प्रतिशत है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक ये घटना सीलमपुर थाना क्षेत्र की है। यहां 18 सितंबर की रात चार लोगों ने एक 12 वर्षीय किशोर के साथ पहले तो कथित तौर पर गैंगरेप किया और फिर उसे लाठियों से बेरहमी से पीटा। इसके बाद आरोपी उसे मृत समझकर सड़क किनारे छोड़कर फरार हो गए। इस दौरान राहगीरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। मामला तब संज्ञान में आया, जब बच्चे की मां ने दिल्ली महिला आयोग में इसकी शिकायत की और आयोग ने पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कड़ी कार्रवाई करने की मांग की।

इस पूरी घटना पर जानकारी साझा करते हुए मीडिया को बताया कि किशोर अपने घर के बाहर खेल रहा था। उसी दौरान वहां आए चार युवक उसे उठाकर अपने साथ ले गए और उसके साथ बारी-बारी से रेप किया। पुलिस ने बताया कि आरोपियों ने किशोर के साथ पहले तो लाठियों से मारपीट की और फिर उसके प्राइवेट पार्ट में रॉड डाल दी। इससे किशोर की बेहोश हो गया। बाद में आरोपी उसे मृत समझकर सड़क किनारे ही छोड़कर चले गए। पुलिस ने अब तक एक आरोपी को गिरफ्तार किया है।

दिल्ली महिला आयोग का क्या कहना है?

इस मामले को लेकर दिल्ली महिला आयोग की ओर से पुलिस को जारी किए गए नोटिस में 28 सितंबर तक एफआईआर की कॉपी के साथ की गई कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। नोटिस में कहा गया है कि पुलिस को घटना की जानकारी तक नहीं लगी। दिल्ली महिला आयोग की शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज हुई थी। राजधानी में बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए पुलिस की यह व्यवस्था ठीक नहीं है। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

गौरतलब है कि हाल ही में जारी एनसीआरबी की रिपोर्ट में प्रकाशित आँकड़ों को समझने के बारे में एक चेतावनी दी गई थी। इसमें कहा गया था कि ये धारणा भ्रामक है कि आँकड़ों का ऊपर की ओर बढ़ना अपराध में वृद्धि की तरफ इशारा करता है और ये दिखाता है कि पुलिस प्रभावी नहीं है। उधर, बाल अधिकार कार्यकर्ता लगातार कहते रहे हैं कि बच्चों को लेकर देश में क़ानून बहुत अच्छा है लेकिन इसके अमल और सज़ा दिलाने की दर में भारी अंतर है। जिसके चलते यह मामले अंजाम तक नहीं पहुंच पाते।

बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध का बढ़ता ग्राफ़

मालूम हो कि साल 2012 में भारत में बच्चों को यौन हिंसा से बचाने वाला क़ानून (पॉक्सो) बनाया गया ताकि बाल यौन शोषण के मामलों से निपटा जा सके लेकिन इसके तहत पहला मामला दर्ज होने में दो साल लग गए। साल 2014 में नए क़ानून के तहत 8904 मामले दर्ज किए गए लेकिन उसके अलावा इसी साल नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने बच्चों के बलात्कार के 13,766 मामले; बच्ची पर उसका शीलभंग करने के इरादे से हमला करने के 11,335 मामले; यौन शोषण के 4,593 मामले; बच्ची को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या शक्ति प्रयोग के 711 मामले; घूरने के 88 और पीछा करने के 1,091 मामले दर्ज किए गए। ये आंकड़े बताते हैं कि बाल यौन शोषण के अधिकतर मामलों में पॉक्सो लगाया ही नहीं गया।

बाल यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने साल 2019 में पॉक्सो कानून को और कड़ा करने के लिए इसमें संशोधनों को मंजूरी दी। संशोधनों में बच्चों का गंभीर यौन उत्पीड़न करने वालों को मृत्युदंड तथा नाबालिगों के खिलाफ अन्य अपराधों के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया। बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून में प्रस्तावित संशोधनों में बाल पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने के लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान किया गया। सरकार ने कहा कि कानून में बदलाव से देश में बढते बाल यौन शोषण के मामलों के खिलाफ कठोर उपाय और नई तरह के अपराधों से भी निपटने की जरूरत पूरी होगी।

सरकार ने तब ये भी कहा था कि कानून में शामिल किए गए मजबूत दंडात्मक प्रावधान निवारक का काम करेंगे। सरकार के अनुसार, ‘इसकी मंशा परेशानी में फंसे असुरक्षित बच्चों के हितों का संरक्षण करना तथा उनकी सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना है। संशोधन का उद्देश्य बाल उत्पीड़न के पहलुओं तथा इसकी सजा के संबंध में स्पष्टता प्रावधान लेकर आने का है।’ लेकिन अब तक ये बातें केवल बातें बन कर ही रह गईं और ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। सरकार ‘न्यू इंडिया’ का गुणगान करने में व्यस्त रही और अभिभावक ‘सब चंगा सी’ के भ्रम में।

वैसे 16 दिसंबर 2012, को जब राजधानी दिल्ली में निर्भया गैंगरेप का शिकार हुई, तो इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। दिल्ली समेत तामाम दूसरे राज्यों में लोग सड़कों पर उतर आए थे। और जगह-जगह मोमबत्तियाँ और प्लेकार्ड पकड़े हुए लोग इंसाफ और सुरक्षा के नारे लगा रहे थे। हालांकि तब से अब तक करीब एक दशक बीतने को है, लेकिन सुरक्षा के बड़े-बड़े वादों और दावों के इतर सिर्फ क़ानून में संशोधन हुए, दिल्लीवासियों की जिंदगी में कुछ नहीं बदला। आज भी यहां महिलाएं और बच्चे उतने ही असुरक्षित हैं, जितने कल थे।

न्यूज़ क्लिक रिपोर्ट

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