जो राम को धारण करता है… वही समाज का विष भी पी सकता है -श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी)

पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी)

अध्यात्म/धर्म /कथा.

आज कथा के माध्यम से पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने यह बताएं कि जो भगवान राम को हृदय में धारण करता है वह समाज का विष भी पी सकता है सब कुछ सहन कर सकता है । साधारण मनुष्य के ऊपर यह जहर होगा लेकिन जो भगवान का नाम को धारण करता है वह अपने गले में रख सकता है समुद्र मंथन में भगवान भोलेनाथ विषपान करते हैं और गले में रखते हैं नीलकंठ कहलाते हैं। देवों के देव महादेव कहलाते हैं क्योंकि वह राम नाम धारण किए हैं मनुष्य जब भगवान की भक्ति में रहता है समाज के कड़वे वचन उस पर कोई प्रभाव नहीं करता है।

जब हम भगवान के दूत बनते हैं भगवान की सेवा में रहते हैं गंदे जगह पर भी जाते है तो भी सब स्वागत करते हैं
रावण की सभा में अंगद को सभी राक्षसों ने हाथ जोड़कर स्वागत किया यह देखकर रावण क्रोधित हुए।

जब हनुमान जी लंका जाते हैं तो विभीषण सहयोग करते हैं, माता सीता की पता बताते हैं ,लेकिन जब अंगद जी लंका जाते हैं पूरे राक्षस उनके सहयोग करने लगते हैं और अंगद जी को रावण के महल का मार्ग बताने लगते हैं पूरे राक्षस किनारे हो जाते हैं, अंगद जी को रावण काजल की पहाड़ की तरह दिखते हैं क्योंकि मोह में भरे हुए हैं रावण का शरीर पहाड़ के आकार का है । मोह,लोभ,अहंकार समस्त विकारों से पूर्ण है।

भगवान राम सब को बुला कर पूछते हैं अब क्या करना चाहिए ? ज्ञानी सब से सलाह लिया करते हैं , जबकि मूर्ख व्यक्ति स्वयं ही निर्णय लेते हैं जैसे रावण । किसी से कोई सलाह नहीं लिए , लेकिन भगवान सभी से पूछते हैं इस पर जामवंत जी कहते हैं दूत भेजना चाहिए । दूत हर कोई नहीं बन सकता क्योंकि उस पर राजा का और राज्य का दायित्व होता है, इसलिए अंगद जी का चयन करते हैं और भगवान राम अंगद जी से कहते हैं तुम बल बुद्धि और विवेक गुण के धाम हो , तुम मेरे कार्य के लिए है लंका जाओ ।

जब अपने आराध्य के लिए कोई जिम्मेदारी मिले ,अवसर मिले तो अपने आप को परम सौभाग्यशाली समझना चाहिए, ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे भगवान या गुरु नहीं कर सकते वह हमें सिर्फ माध्यम बनाते हैं |

भगवान राम सब को बुला कर पूछते हैं अब क्या करना चाहिए ? ज्ञानी सब से सलाह लिया करते हैं , जबकि मूर्ख व्यक्ति स्वयं ही निर्णय लेते हैं जैसे रावण । किसी से कोई सलाह नहीं लिए , लेकिन भगवान सभी से पूछते हैं इस पर जामवंत जी कहते हैं दूत भेजना चाहिए ।

अंगद जी को अवसर मिलने पर वह प्रभु के श्री चरणों की वंदना करते हैं और उनके आदेश को सिर में धारण कर सकते हैं पुलकित हिर्दय से प्रसन्न होकर भगवान के कार्य के लिए तैयार होते हैं ,अंगद जी कहते हैं- प्रभु आप हमें इतना सम्मान दिए यह आप की महानता है ,सत्य सत्य तो यह है कि ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे आप नहीं कर सकते आप किसी से कोई भी कार्य करवा सकते हैं ,सुख और सारंग दूत बनकर रावण के पास भगवान की प्रशंसा करते हैं , भगवान का दूत बन जाते हैं । मंदोदरी माता सीता की रक्षा करने के लिए तैयार हो जाती है, विभीषण माता सीता का पता बता देते हैं । तो भगवान कभी भी किसी से कोई भी कार्य करवा सकते हैं लेकिन यदि अवसर देते हैं तो यह हमारा परम सौभाग्य होता है कि वह हमें माध्यम बना देते हैं । भगवान कभी अपने ऊपर श्रेय नहीं लेते हमें दे देते हैं । सब कुछ प्रभु की इच्छा से ही संभव होता है ।

अहो मोह महिमा बलवाना ……
मोह की महिमा बहुत अपार है मोह में आकर मनुष्य कुछ भी कर लेता है धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह में आ जाते है जिसका परिणाम पूरा महाभारत ही हो गया ,और सब को नष्ट होना पड़ा ।रामचरितमानस में रावण को मोह बताया गया है और रावण ही कहते है –अहो मोह महिमा बलवाना….

रामचरितमानस में यह भी बताया गया कि मोह सकल व्याधिन कर मुला सभी विकारों की जड़ मोह ही होता है , इस मोह में आकर मनुष्य की बुद्धि भ्रमित होती है लोभ में आता है और सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
रावण सबसे ऊंची चोटी पर संगीत का आनंद ले रहे हैं और रावण का छत्र इतना बड़ा है कि काले बादल की तरह प्रतीत हो रही है , मंदोदरी भी उनके साथ है मंदोदरी की कर्णफूल की चमक बिजली की तरह चमक रही है या दृश्य मानो आकाश में बिजली चमक रही है ।

भगवान राम उसी समय एक बाण भेजते हैं रावण का मुकुट वही जमीन में गिर जाता है और मंदोदरी की कर्णफूल टूट जाती है पूरे राक्षस डर जाते हैं ।

मंदोदरी अपने कक्ष में रावण को समझाती है भगवान राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है अपितु स्वयं नारायण है और उनके विराट स्वरूप का वर्णन करती है लेकिन रावण को कुछ भी समझने तैयार नहीं है
नारी सुभाव संत सब कहहि … रावण ने नारी की निंदा की है ,दुष्ट लोग अपनी पत्नी को प्रताड़ित ही करते हैं उसे बाहर की सभी लोग अच्छे लग जाते है।

स्वयं माता सीता को हरण करके लाए और अपने नारी के प्रति बुराई कर रहे हैं रावण ने नारी जाति के लिए आठ प्रकार के दोष बताएं ।  साहस ,झूठ, चंचलता, माया, भय, अविवेकी, अपवित्रता और निर्दयता

स्वयं अवगुण से भरे हुए हैं लेकिन अपने पत्नी में दोष देखते हैं, दोस्त लोगों का यही काम होता है दूसरों में अवगुण देखना और सज्जन व्यक्ति सब में गुण ही देखते हैं ।

जबकि भगवान राम माता सीता के लिए और समस्त नारी जाति का सम्मान किए, माता शवरी, अहिल्या, सब का सम्मान किए । सज्जन व्यक्ति हमेशा सम्मान ही देते हैं शक्ति के रूप में देखते हैं ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here