जीवन को देखने के लिए सही दृष्टि होने की आवश्यकता होती है…..

अध्यात्म,

आज कथा के माध्यम से पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी ) ने बहुत बड़ी बात बताए कि जब हमारे परम पूज्य गुरुदेव साक्षात हमारे बीच मौजूद हैं तो हम कभी अनाथ नहीं हो सकते
भगवान ने अपने अनेक रूपों में जीवन को बड़ा ही संतुलित और आनंदित रहने के लिए संकेत किया है, हर तरह की बातें बताई है ।

जिस समय भगवान राम चित्रकूट में विराजमान है और उस समय भरत जी चतुरंगी सेना लेकर कर के निषाद रात के नेतृत्व में जब पहुंचते हैं ,जिस समय भगवान राम को सूचना दी जाती है कि आपके पिताजी अब नहीं रहे तो भगवान राम को चक्कर आने लगता है ,सुनकर के लक्ष्मण उनके गले लग कर कहते हैं भैया अब हम लोग अनाथ हो गए । भगवान राम कहते हैं कि हां .. लक्ष्मण ऐसा ही है। किंतु जब वही भगवान माताओं को प्रणाम करते हैं और माताये बोलती है कि राम महाराज के जाने के बाद अब हम लोग अनाथ हो गए तो भगवान कहते कि – नहीं मां , अनाथ आप लोग नहीं आनाथ तो केवल मैं हुआ हूँ जितने छोटे भाई हैं उनके लिए मैं, आप सबके लिए हम लोग, मेरे लिए ? क्योंकि मैं अनाथ हूं । जो नाथों का भी नाथ है वह अपने आप को अनाथ कह रहे हैं , अचानक से सबका ध्यान जाता है गुरुदेव वशिष्ठ जी के पास। और भगवान राम तुरंत परिभाषा बदल देते हैं कहते हैं कि जब हमारे परम पूज्य गुरुदेव साक्षात हमारे बीच मौजूद हैं तो हम कभी अनाथ नहीं हो सकते हम सब सनाथ हैं ,यह दृष्टि होती है जीवन को देखने की । हम किस समय किस चीज को किस अर्थ में देखते हैं , क्या खोते हैं? क्या पा लेते हैं ? कैसे परिभाषित करते हैं ?यह निर्भर करता है।

-: श्रीमती कल्पना शुक्ला

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