जब हिंदी के प्रति वैदिक की निष्ठा और आग्रह ने जेएनयू प्रशासन को झुकने पर मजबूर किया..

वैदिक
हिंदी भाषा के अग्रणी पत्रकारों में शामिल रहे डा. वेदप्रताप वैदिक को हमेशा याद किया जाएगा

नयी दिल्ली, (भाषा) हिंदी को अपना ओढ़ना-बिछौना बनाने वाले और दशकों तक हिंदी भाषा के अग्रणी पत्रकारों में शामिल रहे डा. वेदप्रताप वैदिक को हिंदी पत्रकारिता के लिए नए मानक गढ़ने और उसे अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले अधिक मजबूती से स्थापित करने के उनके जीवन पर्यंत प्रयासों के लिए हमेशा याद किया जाएगा।.

चार दशक से भी अधिक समय से लगातार लेखन कर रहे 78 वर्षीय डा. वैदिक मंगलवार सुबह गुड़गांव स्थित अपने घर में अचानक बेहोश हो गए जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

मध्य प्रदेश के इंदौर में 30 दिसंबर 1944 को जन्मे वैदिक के हिंदी भाषा के प्रति आग्रह की गहराई और निष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1957 में मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने हिंदी के लिए सत्याग्रह किया और पहली बार जेल गए ।

अपने हिंदी प्रेम के चलते अंतरराष्ट्रीय मामलों के जाने माने विशेषज्ञ वैदिक ने छात्र जीवन में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर अपना शोध ग्रंथ हिंदी में प्रस्तुत किया लेकिन इसकी सजा के तौर पर ‘स्कूल आफ इंटरनेशनल स्ट्डीज’ (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय) ने उनकी छात्रवृत्ति पर रोक लगाने के साथ ही उन्हें स्कूल से निकाल दिया।

इस मसले के तूल पकड़ने के बाद संसद में भी इस पर चर्चा हुई और उस समय डा.राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपलानी, हीरेन मुखर्जी, प्रकाशवीर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, भगवत झा आजाद, हेम बरूआ जैसे सदस्यों ने वैदिक का जोरदार समर्थन किया।

इस संघर्ष का नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी की पहल पर ‘स्कूल’ के संविधान में संशोधन किया किया गया और वैदिक को वापस लिया गया।

हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिए जाने के लिए होने वाले आंदोलनों की अगुवाई के चलते अमूमन चर्चा में रहने वाले वैदिक आखिरी बार 2014 में विवादों में घिरे थे जब उन्होंने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद से मुलाकात और उसका साक्षात्कार लिया था। इस साक्षात्कार और मुलाकात का खुलासा भी उन्होंने खुद ही किया था। जब तत्कालीन विपक्ष के कुछ नेताओं ने संसद में उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने और निंदा प्रस्ताव पारित करने की मांग की तो वैदिक की प्रतिक्रिया थी कि दो नहीं, सौ नहीं पूरे 543 सांसद ऐसा प्रस्ताव पास करें ‘मुझे फांसी पर चढ़ा दें, मैं उस संसद पर थूकता हूं।’ वैदिक का कहना था कि एक पत्रकार होने के नाते उन्होंने हाफिज का साक्षात्कार लिया था और यह उनका कर्तव्य था।

वैदिक ज्वलंत राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी बेबाकी के साथ विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्रों में स्तंभ लिख रहे थे । और एक दिन पहले 13 मार्च को भी उन्होंने हिंदी दैनिक ‘नया इंडिया’ के लिए लेख लिखा जो आज प्रकाशित हुआ है। ‘समलैंगिक विवाह : बर्बादी का रास्ता’ शीर्षक से प्रकाशित इस लेख में वैदिक ने लिखा है, ‘‘समलैंगिक विवाह को कानूनन सही ठहराना बहुत ही गलत होगा। यह सृष्टि के नियम के विरूद्ध होगा। मानव स्वभाव के विपरीत इस कानून से, परिवार नामक संस्था ही नष्ट हो जाएगी। यह व्यक्ति और समाज, दोनों की बर्बादी का मार्ग है।’’

वेद प्रताप वैदिक के घनिष्ठ मित्र और ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र के प्रधान संपादक हरिशंकर व्यास ने वेदप्रताप वैदिक के निधन को हिंदी पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति बताया । उन्होंने कहा कि वैदिक पत्रकारिता जगत में राजेन्द्र माथुर और प्रभाष जोशी की परंपरा के ऐसे गिने चुने संपादकों में से एक थे जिनकी लेखनी में ऊर्जा और विचारों का अद्भुत सामंजस्य था।

बतौर प्रशिक्षु पत्रकार 1958 में पत्रकारिता जगत में कदम रखने वाले वैदिक एक दशक से अधिक समय तक टाइम्स समूह के नवभारत टाइम्स समाचार में सह संपादक और बाद में संपादक (विचार) के पद पर रहे ।

प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) की हिंदी समाचार एजेंसी ‘भाषा’ के भी वह संस्थापक संपादक रहे ।

दर्शन और राजनीति में गहन रूचि रखने वाले वैदिक ने जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय मामलों में पीएचडी करने के बाद कुछ समय राजनीति शास्त्र का अध्यापन कार्य भी किया।

‘भारतीय विदेश नीति’, ‘अंग्रेजी हटाओ : क्यों और कैसे ?,’ ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमरीकी प्रतिस्पर्धा’, ‘हिन्दी का सम्पूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो?’ जैसी पुस्तकें लिखने वाले वेद प्रताप वैदिक अपने मौलिक चिंतन और ओजस्वी वाणी के कारण अपने मित्रों और पत्रकारिता जगत में बेहद लोकप्रिय थे ।

उन्होंने अफगानिस्तान पर शोध कार्य भी किया और उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय, लंदन के प्राच्य विद्या संस्थान , मास्को की विज्ञान अकादमी और काबुल में अध्ययन का विशेष अवसर प्राप्त हुआ। इसके साथ ही वह अनेक भारतीय एवं विदेशी शोध संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ रहे ।

उन्हें 1992 में प्रधानमन्त्री द्वारा रामधारी सिंह दिनकर शिखर सम्मान और मीडिया इंडिया सम्मान सहित विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया।

भाषा नरेश नरेश माधव एन. पाठक

नरेश

 

हिंदी भाषा के अग्रणी पत्रकारों में शामिल रहे डा. वेदप्रताप वैदिक जी को हिन्द मित्र समाचार पत्र और जनसुराज पत्रिका की ओर भाव पूर्ण श्रद्धांजलि।  

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