छह ‘एम’ एक ‘वाई’ से भाजपा का बिगड़ा खेल

नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद हुई हिंसा को लेकर भाजपा आक्रामक जरूर है, लेकिन पार्टी में परिणामों को लेकर भी मंथन हो रहा है। चुनाव में भाजपा को महिलाओं और युवाओं (एम-वाई समीकरण) पर सबसे ज्यादा भरोसा था, लेकिन पार्टी को दोनों वर्गों का उतना समर्थन नहीं मिला, जिससे कि वह सरकार बनाने के करीब पहुंच सके। इसके विपरीत ममता बनर्जी बड़ी संख्या में महिलाओं और युवाओं को अपने साथ जोड़ने में सफल रहीं।

भाजपा की उम्मीदों के विपरीत आए नतीजों को लेकर पार्टी के भीतर नेताओं का अपना-अपना आकलन है। उत्तर भारत में आमतौर पर एम-वाई समीकरण का मतलब मुस्लिम और यादव माना जाता है, जो अधिकांश भाजपा के खिलाफ रहा है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में एम-वाई का यह अर्थ नहीं है। राज्य में जो नतीजे सामने आए हैं, उसमें महिला (एम) और युवा (वाई) समीकरण भाजपा के गणित के अनुरूप नहीं रहे। भाजपा ने इन दोनों वर्गों पर सबसे ज्यादा दांव लगा रखा था।

दरअसल, बंगाल चुनाव में छह ‘एम’ और एक ‘वाई’ फैक्टर हावी रहा। पूरा चुनाव इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। ये फैक्टर मोदी, ममता, मुस्लिम, महिला, मध्यम वर्ग, मतुआ और युवा रहे। ममता और मोदी के बीच तो व्यक्तित्व व वर्चस्व का टकराव रहा था, जो चुनाव के बाद खत्म हो गया है। उसी तरह मतुआ फैक्टर भी दूसरे राज्यों में नहीं होगा। मुस्लिम समुदाय वैसे ही भाजपा के खिलाफ रहता है और मध्यम वर्ग हर राज्य में अपने हिसाब से भूमिका तय करता है। लेकिन महिला और युवा ऐसा वर्ग है, जिसने 2014 के बाद से अधिकांश मौकों पर भाजपा का साथ दिया और केंद्र से लेकर कई राज्यों तक में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई है।

 

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