छबील शहीदी दिवस- श्री गुरु अर्जुन देव जी की याद में बंटती है मीठी लस्सी

रायपुर,

रायपुर शहर के कुछ स्थानों में आज दोने में चने और ठंडी मीठी लस्सी बांटी गई। कल शहर के कुछ और भागों में सिक्ख धर्म के मानने वाले आपको चने और ठंडी मीठी लस्सी बांटते मिलेगें। दरअसल ये सिक्खों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत की याद में बांटे जाते हैं। इसे “छबील” कहा जाता है। इस तरह यह “छबील” क्यों लगाई जाती है तथा इसका क्या धार्मिक संदेश है।

दरअसल यह बात सन् मई 1606 ईस्वी में लाहौर की है। उस समय भारत में मुगल बादशाह जहांगीर का शासन था। सिक्ख धर्म के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने उस समय भाई गुरदास जी मदद से सन् 1604 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया था। यह ग्रंथ आज सिक्ख धर्म में एक जीवित गुरु की तरह से पूजा जाता है। उन दिनों बादशाह जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुन देव जी से कहा कि वे ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में लिखीं बातें जिसे वह इस्लाम धर्म के विरुध्द मानता था उसे हटा दें। और इसमें मोहम्मद साहब की स्तुति लिखें। इस पर गुरु जी ने जहांगीर की बातों के मानने से इंकार कर दिया। जहांगीर के बार-बार कहने सुनने और दबाब बनाए रखने के बावजूद गुरु जी ने इससे स्पष्ट इंकार कर दिया। इसके बाद बादशाह जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुन देव जी को सख्त पहरे में रखते हुए कैद कर लिया और उन्हें मृत्युदंड का आदेश सुना दिया। लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान “यासा व सियासत” कानून के तहत जिसे प्रताडित करना होते है उसे लोहे के गर्म तवे पर बैठा कर यातना दी जाती है। गुरु अर्जुन देव जी को बादशाह जहांगीर के आदेश पर खौलते हुए पानी में बैठाया गया और सिह के ऊपर से गर्म रेत उनके पूरे शरीर में डाला उनकी हत्या कर दी गई। “यासा व सियासत” के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है। इसी प्रकार से गुरु अर्जुन देव जी को यातनाएं दे कर मारा गया। सन् 1563 में तरनतारन जिले के गोइंदवाल में जन्में गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे जिसे  मुगल सम्राट जहांगीर ने मृत्युदंड दिया।

जब गुरु अर्जुन देव को गर्म लोहे की कढ़ाई में बैठाकर उन पर गर्म रेत डलवाई गई तब उन्हें पानी की एक-एक बूंद तक के लिए तरसाया गया। गुरु जी उस समय ईश्वर का नाम वाहेगुरु – वाहेगुरु का सिमरन करते रहे। गुरुजी की सहनशीलता के आगे मुगल भी हार गए, पर गुरु जी विचलित नहीं हुए। गुरु साहिब ने उस यातनाओँ के दौरान कहा कि हे परमात्मा ‘तेरा भाणा मीठा लगे, हर नाम पदार्थ नानक मांगे। श्री गुरु अर्जुन देव जी बादशाह के आगे नहीं झुके और अपनी शहादत दे दी। गुरुजी की इस यातना भरी शहादत की याद में सिक्ख धर्म के मानने वालों ने उनके शहीदी दिवस पर ठंडे पानी की छबील लगाई जाती है ताकि जो यातना गुरु अर्जुन देव ने सहन की वैसी यातना किसी और को भी न मिले। दरअसल ठंड़े और मीठा पानी का शर्बत ठंड़क का प्रतीक है ताकि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को प्यासा न रहने दे। प्यास की वजह से किसी की आत्मा को कष्ट न हो। गुरु साहिब कहते थे हे परमात्मा ‘तेरा भाणा मीठा लगे, हर नाम पदार्थ नानक मांगे।’ आज उनके इसी शब्द के कारण पूरे विश्व में सिक्ख धर्म के मानने वाले ठंडे मीठे जल का शर्बत पिलाते हैं। यह परंपरा आज भी जारी है।

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