‘गुरू घासीदास के संदेशो को जीवन में उतारने पर ही परिवर्तन संभव’’

 

रायपुर

गुरू घासीदास जी ने 1756 से 1850 के बीच छत्तीसगढ़ की धरा पर बहुत परिवर्तन का कार्य किये। सन् 1901 में उनके चार लाख से अधिक अनुयायी हो गये थे, परन्तु दुर्भाग्यवश आज 2022 में भी 1850 ईसवीं की समस्या जस का तस बना हुआ है।

इसका एकमात्र कारण समाज द्वारा महापुरूष की जयंती पर उन्हें याद करना, उनके आदर्शाें के नाम पर उनकी मूर्ति स्थापित कर देना तथा जयंती पर फूल-माला चढ़ा देना मात्र तक सीमित रह गया है। लगभग सभी समाज ने अपने धर्म-गुरूओं को सर्वाेपरी स्थान दिया है और यहीं कारण है कि गुरूनानक जी, स्वामी महावीर, स्वामी विवेकानन्द के आदर्श आज भी राष्ट्रीय स्तर पर मार्गदर्शन का कार्य कर रहे हैं। परन्तु हमने घासीदास के सन्देशों को छत्तीसगढ़ स्तर तक ही सीमित कर रखा है। सभी महापुरूषों के आदर्श एक परम सत्य पर ही आधारित रहा है। बाबाजी ने भी सतनाम का ही संदेश दिया है। आज आवश्यकता है कि गुरू घासीदास के संदेशों को जीवन में उतारकर प्रथमतः अपने जीवन में सुधार करें, तभी समाज में परिवर्तन संभव हो सकेगा।

उक्त बातें डॉ. शम्पा चौबे ने विवेकानन्द मानव प्रकर्ष संस्थान द्वारा विवेकानन्द विद्यापीठ के सभागार में आयोजित ‘गुरू घासीदास: जीवन एवं संदेश’ परिसंवाद में कही। इस अवसर पर प्रोफेसर बी. एल. सोनेकर ने गुरू घासीदास के जीवन परिचय के साथ ही उनके सप्त संदेशों पर प्रकाश डाला। डॉ. ओमप्रकाश वर्मा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि – जब-जब समाज दिशाहीन होकर पतन की ओर अग्रेषित होता है तब-तब महापुरूष इस धरा पर जन्म लेकर पतन से बचाते हैं। गुरू घासीदास जी का जन्म भी उसी समय में हुआ जब राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थल पर उथल-पुथल मची हुई थी।

न्याय व्यवस्था वर्ण व्यवस्था पर आधारित हो चुकी थी। न्याय के लिए संघर्ष करने की क्षमता समाप्त हो चुकी थी। समाज अस्त-व्यस्त हो चुका था। ऐसे समय में बाबा घासीदास ने जन्म लेकर समाज की दशा और दिशा को बदलने का कार्य किया। वे ऐसे विलक्षण संत थे जिन्होंने औपचारिक शिक्षा तक प्राप्त नहीं किया था, परन्तु उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से अनेक आदर्शाें का सूत्रपात किया। उनका जीवन सत्य से परिपूर्ण एवं कर्मज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित था।

भारतीय नवजागरण के पुरोधा बाबा घासीदास के गद्य संदेश अमृतवाणी के रूप में एवं उनके पद्य संदेश पंथीगीत के रूप में आज भी हमें परम सत्य की ओर प्रेरित कर रहा है। हमें उनके संदेशों को आत्मसात कर अपने भीतर के षठरिपु का वध करने की आवश्यकता है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. एल. एस. निगम, पूर्व कुलपति ने कहा कि सभी महापुरूषों का जीवन एक परम सत्य पर ही आधारित होता है जो समाज को दिशा दिखाते हैं।

कार्यक्रम का प्रारंभ गुरूघासीदास के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन से हुआ। श्रीमती मीनाक्षी तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा डॉ. समीर ठाकुर ने परिचय किया। विद्यापीठ के छात्रों द्वारा मनमोहक पंथीनृत्य का प्रदर्शन किया गया जिससे जनसमूह झूम उठे। इस अवसर पर वीरेन्द्र वर्मा, एच. डी. प्रसाद, रश्मि पटेल, मनोज यादव, प्रो. रविन्द्र ब्रह्मे सहित विद्यालय एवं महाविद्यालय के प्राध्यापक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।