आईवीएफ क्या है?
इस प्रक्रिया में महिला की ओवरी से एग को इकट्ठा करके स्पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है। बाद में एम्ब्रियो को महिला के यूट्रस में इम्प्लांट किया जाता है। यही इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) है।
आईवीएफ का उपयोग स्थिति पर निर्भर करता है:
- महिला के एग
- पार्टनर के स्पर्म्स
- या फिर दोनों डोनर के ही इस्तेमाल किए जाते हैं।
जहां तक इनफर्टिलिटी की बात है तो इसके कई कारण हो सकते हैं, पर सबसे आम वजहें हैं-
- एंडोमेट्रियोसिस
- यूटेरिन फाइब्रॉएड्स
- ओवेरियन फंक्शन का कम हो जाना जैसे पीसीओएस।
- ज्यादा या 40 की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी प्लान करना।
- स्पर्म काउंट का कम होना या फिर डैमेज स्पर्म।
आईवीएफ की प्रक्रिया:
आईवीएफ को लेकर अपना मन बनाने से पहले आपको इसकी प्रक्रिया के बारे में जान लेना चाहिए। इससे जुड़े स्टेप्स हैं-
- ओवेरियन स्टिम्युलेशन- जहां ओवरीज को कई एग्स का उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
- एग रिट्रीवल- यहां पर मेच्योर एग्स को डोनर महिला के द्वारा इकट्ठा किया जाता है।
- सीमेन कलेक्शन- इसमें मेल पार्टनर से सीमेन के सैंपल्स इकट्ठा किए जाते हैं।
- एम्ब्रियो कल्चर- लैब में स्पर्म और एग का फ्यूजन करना।
- एम्ब्रियो डेवलपमेंट- जिसमें एम्ब्रियो की ग्रोथ और डेवलपमेंट पर निगरानी रखी जाती है।
- एम्ब्रियो ट्रांसफर- जहां विकसित एम्ब्रियो को यूट्रस में इम्प्लांट किया जाता है।
- अंत में प्रेग्नेंसी की पुष्टि के लिए 2 सप्ताह के बाद ब्लड टेस्ट किया जाता है।
अगर आपके मन में भी आईवीएफ को लेकर सवाल हों या आप इसे करवाना चाहती हों तो अपने डॉक्टर से बात करें और डिटेल में अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लें। डॉक्टर की सलाह से ये तय करें कि आपके लिए सबसे बेस्ट एक्शन क्या होगा। बिना डॉक्टरी सलाह के अपने मन से कुछ भी तय करना सही नहीं हो सकता है। किसी रिप्रोडक्टिव तकनीक के इस्तेमाल से पहले आपको अपनी हेल्थ का पूरा जायजा लेना चाहिए।
इनफर्टिलिटी पर क्या असर डालते हैं यूटेरिन फाइब्रॉएड, क्या हर महिला को इनके बारे में जानना है जरूरी
यूटेरिन फाइब्रॉएड्स अगर किसी महिला को हो रहे हैं तो उनका ट्रीटमेंट करवाना बहुत जरूरी है। ये समस्या बहुत विकराल रूप ले सकती है।
एक साल से अधिक समय तक असुरक्षित सेक्शुअल इंटरकोर्स करने के बाद भी कंसीव न कर पाने की स्थिति को इनफर्टिलिटी कहते हैं। यूटेरिन फाइब्रॉएड्स इनफर्टिलिटी के कई कारणों में से एक हो सकते हैं।
क्या होते हैं यूटेरिन फाइब्रॉएड्स?
यूटेरिन फाइब्रॉएड्स यूट्रस में मसल्स टिशू के सॉफ्ट या नॉन कैंसरस ट्यूमर्स हैं। फाइब्रॉएड्स तब बनते हैं जब यूट्रस की दीवार में एक सिंगल मसल सेल बढ़कर नॉन कैंसरस ट्यूमर बन जाता है। फाइब्रॉएड्स यूट्रस का शेप और साइज बदल सकते हैं और कई बार यूट्रस के निचले भाग यानि सर्विक्स में भी बदलाव लाते हैं।
महिलाओं में आमतौर पर एक से ज्यादा फाइब्रॉएड ट्यूमर होते हैं, लेकिन सिंगल फाइब्रॉएड भी मुमकिन है। फाइब्रॉएड का असली कारण क्या है ये अस्पष्ट है, लेकिन जेनेटिक, हार्मोनल और एंवायरमेंटल कारणों का मेल इस पर असर डाल सकता है। चाहे फाइब्रॉएड्स के लक्षण हों या फिर उनका इलाज, यह आकार, स्थान और संख्या पर निर्भर करता है।
फाइब्रॉएड्स अक्सर यूट्रस के आस-पास ही मिलते हैं, लेकिन कुछ मामलों में ये सर्विक्स में भी हो जाते हैं। आमतौर पर तीन तरह के फाइब्रॉएड्स होते हैं-
- सबसेरोसल यूट्रस की बाहरी दीवार में होते हैं (55%)
- इंट्राम्यूरल यूट्रस की मस्कुलर लेयर में पाए जाते हैं (40%)
- सबम्यूकोसल यूटेरिन कैविटी में बढ़ते हैं (5%)
फाइब्रॉएड्स यूट्रस से किसी नली के रूप में भी जुड़े हो सकते हैं, या फिर आस-पास के लिगामेंट्स या अंग जैसे ब्लैडर या आंतों से भी उनका जुड़ाव हो सकता है। हालांकि, ये बात जानने वाली है कि फाइब्रॉएड्स पेल्विक कैविटी के बाहर कम ही दिखते हैं।
फर्टिलिटी पर कैसे पड़ता है फाइब्रॉएड्स का असर?
- आमतौर पर 5-10 प्रतिशत इनफर्टाइल महिलाओं को फाइब्रॉएड्स होते हैं।
- फाइब्रॉएड्स कितने बड़े हैं और वो किस जगह पर हैं इस बात से फर्टिलिटी पर असर पड़ सकता है।
- बहुत बड़े यानि 6 सेंटिमीटर डायामीटर से बड़े फाइब्रॉइड्स जो यूट्रस की दीवार के अंदर होते हैं वो काफी ज्यादा असर डालते हैं।
- ये फाइब्रॉइड्स कई तरह से फर्टिलिटी पर असर डाल सकते हैं।
- सर्विक्स के आकार में बदलाव यूट्रस के अंदर जाने वाले स्पर्म की संख्या पर असर डालता है
- यूट्रस के शेप में बदलाव से स्पर्म या एम्ब्रियो के मूवमेंट में फर्क पड़ सकता है।
- फाइब्रॉएड्स के कारण फैलोपियन ट्यूब्स ब्लॉक हो जाती हैं।
- वो यूटेरिन कैविटी के अंदर मौजूद परत के आकार पर भी असर डाल सकते हैं।
- यूटेरिन कैविटी में ब्लड के फ्लो पर भी असर पड़ता है और इससे एम्ब्रियो के यूटेरिन वॉल में चिपकने (इम्प्लांट होने) या फिर विकसित होने की गुंजाइश कम हो जाती है।
ट्रीटमेंट
फाइब्रॉएड्स से पीड़ित कई महिलाएं इनफर्टाइल नहीं होती हैं। कई बार फाइब्रॉएड्स का ट्रीटमेंट ही फर्टिलिटी पर असर डाल सकता है ना कि फाइब्रॉएड्स खुद। इसलिए फाइब्रॉएड्स वाली महिलाओं और उनके पार्टनर्स को फाइब्रॉएड्स का इलाज करवाने से पहले फर्टिलिटी से जुड़ी अन्य समस्याओं का आंकलन करने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए।
कुछ मामलों में जहां फाइब्रॉएड्स के ऐसे लक्षण नहीं हैं जिनमें हेवी ब्लीडिंग या दर्दभरे पीरियड्स हो रहे हैं वहां किसी भी तरह के ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं होती है। पर फिर भी डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी होता है ताकि ये पता लगाया जा सके कि आगे चलकर कहीं महिला की नेचुरल प्रेग्नेंसी में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी। एक फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट इस बात का आंकलन कर सकता है कि फाएब्रॉइड्स कन्सेप्शन में बाधा डाल रहे हैं या नहीं।
क्या है IVF प्रोसेस का जरूरी हिस्सा Embryo Cryopreservation, ट्रीटमेंट लेने से पहले जान लें ये बातें
Embryo Cryopreservation एक ऐसा प्रोसेस होता है जिसमें एम्ब्रियो (भ्रूण) को फ्रीज़ करके स्टोर किया जाता है। ये IVF यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन का बहुत अहम हिस्सा है। IVF/ICSI एक ऐसा मेडिकल प्रोसेस है जिसमें महिला के एग सेल्स (oocyte) और पुरुष के एग (स्पर्म) को निकालकर लैब में एक खास द्रव्य (कल्चर मीडियम) में रखा जाता है। इस कल्चर मीडियम में ही एक नया सेल बनता है जिसे हम एम्ब्रियो कहते हैं। इसके बाद डॉक्टर एम्ब्रियो को महिला के यूट्रेस में इंसर्ट करता है। ये एम्ब्रियो यूट्रेस की दीवार से खुद को जोड़ लेता है इस प्रोसेस को इम्प्लांटेशन कहते हैं। यही एम्ब्रियो इम्प्लांटेशन के बाद बच्चे के रूप में बढ़ता है।
IVF प्रोसेस करवाते समय महिला को 8-10 दिन तक हार्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि उस महिला की ओवरी से बहुत सारे एग सेल्स निकलें। इसी के साथ, पुरुष को मास्टरबेशन के जरिए अपना वीर्य देना होता है। पुरुष के वीर्य में लाखों एग्स होते हैं जिन्हें स्पर्म कहा जाता है। कई सारे फीमेल एग और स्पर्म को एक साथ रख कई सारे एम्ब्रियो बनाए जाते हैं। एक साथ IVF प्रोसेस में कितने एम्ब्रियो महिला के यूट्रेस में इंसर्ट किए जाएंगे इसका फैसला डॉक्टर महिला की उम्र और इससे पहले कराए गए ट्रीटमेंट्स के आधार पर करता है। एक से लेकर तीन एम्ब्रियो तक एक बार में महिला के यूट्रेस में इंसर्ट किए जा सकते हैं। एक से ज्यादा एम्ब्रियो इसलिए इंसर्ट किए जाते हैं ताकि प्रेग्नेंसी का चांस बढ़ सके।
इस IVF/ICSI प्रोसेस में कई ऐसे एम्ब्रियो भी बच जाते हैं जो बहुत अच्छी क्वालिटी के होते हैं। इन एम्ब्रियो को फ्रीज़ कर स्टोर किया जाता है और इस प्रोसेस को कहते हैं एम्ब्रियो क्रायोप्रेजर्वेशन।
क्यों किया जाता है एम्ब्रियो क्रायोप्रिजर्वेशन?
ऐसे कई कारण हो सकते हैं जिनकी वजह से एक जोड़ा अपने एम्ब्रियो को फ्रीज़ करवाना चाहे-
– इस तरह से एम्ब्रियो स्टोर करने का फायदा ये हो सकता है कि अगर पहली बार में IVF प्रोसेस फेल हो गया तो उस जोड़े को दोबारा इंजेक्शन का कोर्स, कई सारी सोनोग्राफी, एग्स कलेक्ट करने की प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा।
– एक महिला अपने एम्ब्रियो को किसी खास ट्रीटमेंट की वजह से भी स्टोर करवा सकती है। जैसे कैंसर आदि के ट्रीटमेंट के बाद महिलाओं के प्रेग्नेंट होने की गुंजाइश कम हो जाती है क्योंकि कीमोथेरेपी और रेडिएशन के कारण सही क्वालिटी के एग्स नहीं बनते। ऐसे में एम्ब्रियो स्टोर करवाना लाभकारी साबित हो सकता है।
– अगर IVF करवाने वाले जोड़े ने पहली बार में ही कंसीव कर लिया और सक्सेसफुल डिलिवरी हो गई तो वो कुछ सालों बाद उसी स्टोर किए हुए एम्ब्रियो का इस्तेमाल कर दूसरा बच्चा भी प्लान कर सकते हैं।
एम्ब्रियो को बर्बाद करने से बेहतर ये भी हो सकता है कि किसी अन्य जोड़े को वो डोनेट कर दिया जाए। ये एक डोनर प्रोग्राम के तहत होता है।
– एम्ब्रियो को स्टोर कर उन्हें इंफर्टिलिटी के क्षेत्र में की जाने वाली रिसर्च के लिए डोनेट किया जा सकता है।
एग्स के हार्वेस्ट होने के बाद एम्ब्रियो को 1 से लेकर 6 दिन की ग्रोथ (कल्चर) में किसी भी स्टेज पर क्रायोप्रिजर्व किया जा सकता है। हालांकि, सभी एम्ब्रियो को क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए नहीं लिया जाता है क्योंकि इस प्रोसेस की सफलता एम्ब्रियो की क्वालिटी पर निर्भर करती है साथ ही ये देखना भी जरूरी है कि आखिर कितने एम्ब्रियो क्रायोप्रिजर्व किए जा सकते हैं।
एक बार एम्ब्रियो फ्रीज़ हो गया तो इसके अंदर होने वाली सभी गतिविधियां रुक जाती हैं। यानी न ही एम्ब्रियो में सेल ग्रोथ होगी और न ही ये खराब होगा।
जब भी एम्ब्रियो की दोबारा जरूरत होती है तो उन्हें खास तरह से फ्लूइड में रखा जाता है (thaw process) ताकि फिर से उनका विकास हो और वो फ्रीज़िंग स्टेज से बाहर आ सकें।
कब तक स्टोर किए जा सकते हैं एम्ब्रियो?
एम्ब्रियो को स्टोर करने के लिए लिक्विड नाइट्रोजन फ्रीज़र का प्रयोग किया जाता है। वो इसके अंदर ही सील कर दिए जाते हैं। इसके अंदर का तापमान माइनस 196 डिग्री के आस-पास होता है। इस तापमान में एम्ब्रियो कई सालों तक स्टोर किए जा सकते हैं। भले ही इन्हें कई सालों तक स्टोर कर लिया गया हो, लेकिन इससे एम्ब्रियो पर कोई खराब असर नहीं पड़ता। अगर आप लंबे समय के बाद भी एम्ब्रियो का इस्तेमाल करना चाहेंगे तो frozen thaw process (FET CYCLE) की मदद से जो बच्चे पैदा होंगे उनमें कोई दोष नहीं होगा।
कितना सुरक्षित है एम्ब्रियो क्रायोप्रिजर्वेशन?
रिसर्च में ये देखा जा सकता है कि एम्ब्रियो को फ्रीज़ कर थॉ (thaw) करने में बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। फ्रोजन एम्ब्रियो से पैदा होने वाले बच्चों में जन्म से जुड़े डिफेक्ट्स की दर उतनी ही होती है जितनी कि बिना फ्रीज़ किए एम्ब्रियो से पैदा होने वाले बच्चों में।
हर प्रेग्नेंसी के हिसाब से FET CYCLE का सक्सेस रेट 30-40 प्रतिशत ही होता है।
सार
1980 के दशक से ही एम्ब्रियो क्रायोप्रिजर्वेशन प्रोसेस की मदद से दुनिया भर में लाखों बच्चे पैदा हुए हैं और IVF/ICSI के दौरान इस प्रोसेस का बहुत इस्तेमाल होता है। ये एक बहुत ही उपयोगी प्रजनन तकनीक साबित हुई है।
इनफर्टिलिटी का इलाज करने के लिए क्यों किया जाता है इनसेमिनेशन? जानिए इस प्रोसेस के बारे में
इनफर्टिलिटी का इलाज करने का एक आसान विकल्प आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन है। इस प्रोसेस में पार्टनर या डोनर से इकट्ठा किए गए हेल्दी स्पर्म को यूट्रस में आर्टिफिशियल रूप से डाला जाता है। इस प्रक्रिया से प्रेग्नेंट होने की संभावना बढ़ जाती है। इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन में हेल्दी स्पर्म को फिल्टर और इकट्ठा करके यूट्रस में डाला जाता है। इससे प्रेग्नेंसी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन के प्रोसेस में हेल्दी स्पर्म को फिल्टर कर उसे इकट्ठा किया जाता है, उसे स्टोर कर फिर एग में इंजेक्ट किया जाता है ताकि फर्टिलाइजेशन हो सके। ये एक तरीका है जो प्रेग्नेंसी की गुंजाइश कई गुना बढ़ा देता है।
इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन की प्रक्रिया क्या है?
सीमेन युक्त स्पर्म को पार्टनर या फ्रोजन डोनर से इकट्ठा किया जाता है। सीमेन को स्पर्म से अलग करने के लिए इसे साफ करने के बाद फिल्टर किया जाता है ताकि हेल्दी स्पर्म अलग हो सके। स्पर्म में मौजूद अमीनो एसिड्स जो महिला के रिप्रोडक्टिव सिस्टम में एलर्जी का कारण बन सकते हैं उन्हें भी इस प्रोसेस में हटा दिया जाता है।
अत्यधिक कॉन्सन्ट्रेटिड हेल्दी स्पर्म को इसके बाद यूट्रस में डाला जाता है। सीमेन को ले जाने वाले उपकरण को वेजाइना और सर्विक्स के जरिए यूट्रस तक पहुंचाया जाता है। स्पर्म को तब यूट्रस में जमा किया जाता है। महिला के ओव्यूलेशन टाइम के अनुसार इस प्रोसेस को प्लान किया जाता है। ओव्यूलेटरी प्रोसेस के अनुसार या तो ओव्यूलेशन को शुरू किया जाता है या नेचुरल ओव्यूलेशन के समय इनसेमिनेशन किया जाता है। हेल्दी स्पर्म फर्टिलाइज होने के लिए एग की ओर तैरते हैं ताकि उनसे जुड़ सकें। फर्टिलाइज्ड एग इसके बाद नेचुरल प्रक्रिया के हिसाब से ही यूट्रस में इम्पांट हो जाता है।
इसके बाद ये टेस्ट करना होता है कि इनसेमिनेशन की प्रक्रिया ठीक से हुई या नहीं। इसके लिए दो हफ्ते बाद टेस्ट किए जाते हैं। अगर यूरिन में HCG मौजूद होता है तो ये मान लिया जाता है कि महिला की प्रेग्नेंसी पॉजिटिव है। अगर नहीं तो इस प्रक्रिया को एक बार और रिपीट किया जाता है। अगर दोबारा भी ये प्रक्रिया फेल होती है तो प्रेग्नेंसी के लिए अन्य तरीकों का सहारा लिया जाता है। आमतौर पर पॉजिटिव रिजल्ट्स पाने के लिए 3-6 महीनों में दो से तीन बार कोशिश करनी होती है।
इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन की जरूरत किसे होती है?
इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन से पॉजिटिव नतीजे मिल सकते हैं जिससे इनफर्टिलिटी की समस्या खत्म हो जाए। ऐसे में ये उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जो-
- अगर अज्ञात कारण से महिला इन्फर्टाइल है
- अगर महिला को ओव्यूलेशन में समस्या है
- अगर महिला एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित है
- अगर पार्टनर के स्पर्म की क्वालिटी खराब है
- अगर यूट्रस के अंदर स्पर्म के तैरने के लिए सर्वाइकल सीक्रेशन बहुत मोटा है
- अगर सर्विक्स खुद मोटा है जिससे स्पर्म को यूट्रस तक पहुंचने में दिक्कत होती है
- महिला को स्पर्म में मौजूद प्रोटीन से एलर्जी हो सकती है
सार:
अपनी हेल्थ कंडीशन और इनफर्टिलिटी के इलाज के संभावित विकल्पों के बारे में डॉक्टर से बात करें ताकि आपकी समस्या का हल हो सके। इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन इनफर्टिलिटी के इलाज का एक प्रभावी तरीका है।