किसानों के सड़कें जाम करने का विरोध,SC ने कहा- सरकार ज़िम्मेदारी लेने से पीछे ना हटे…

नई दिल्ली,

राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने सीमा पर बैठे किसानों को हटाने के लिए केंद्र सरकार से जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है. गुरुवार को कोर्ट में नोएडा निवासी एक महिला की याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें दिल्ली-नोएडा के यात्रियों को हुई असुविधा का मुद्दा उठाया गया था. मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को साफ कर दिया है कि मामले को लेकर अदालत ने पहले ही व्यवस्था कर दी है. ऐसे में सरकार हमसे ये न कहे कि हम नहीं कर पा रहे हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने तीन सदस्यीय कमेटी बनाकर किसान नेताओं को बुलाया था और अन्य स्थान पर धरने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इस पर कोर्ट ने कहा कि आप अदालत में आवेदन क्यों नहीं करते हैं. एपेक्स कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि कानून का पालन करवाना आपका काम है. अगस्त में सुनवाई के दौरान भी एपेक्स कोर्ट ने कहा था कि सड़के ब्लॉक नहीं की जानी चाहिए. जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा था, ‘उन्हें आंदोलन करने का अधिकार हो सकता है, लेकिन सड़कों को इस तरह रोका नहीं जा सकता.’ उस दौरान भी कोर्ट ने केंद्र सरकार और संबंधित राज्यों को हल निकालने के लिए कहा था. याचिकाकर्ता मोनिका अग्रवाल ने कहा था कि शीर्ष अदालत की तरफ से कई निर्देश जारी होने के बाद भी उनका पालन नहीं किया जा रहा है.

आगे कहा गया था कि याचिकाकर्ता एक सिंगल मदर हैं, जो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रही हैं. ऐसे में उनका नोएडा से दिल्ली सफर करना बहुत मुश्किल हो गया है. तब उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि सरकार किसानों को मनाने की कोशिश कर रही है कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले को मुताबिक सड़कें रोक कर विरोध करने की अनुमति नहीं है.

इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के सोनीपत के रहवासियों की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी. जस्टिस डीवाई चंद्रचूण की अगुआई वाली बेंच ने कहा था, ‘जब हाईकोर्ट स्थानीय हालात से पूरी तरह परिचित है और उन्हें पता है कि क्या हो रहा है, तो हमें इसमें दखल देने की जरूरत नहीं है. हमें उच्च न्यायालयों पर भरोसा करना चाहिए.

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