पंजाब
पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रधान सुनील जाखड़ के पार्टी को अलविदा कहने के साथ ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस दोराहे पर आ गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद पार्टी के सीनियर नेता का जाना संगठन को मजबूती देने के प्रयासों को जोरदार झटके के रूप में है। कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश इकाई की कमान राजा वड़िंग के रूप में युवा नेतृत्व को सौंपी है लेकिन यह नेतृत्व फिलहाल कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में व्यस्त है और सीनियर नेता प्रदेश इकाई से दूरी बनाकर चल रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस का पर्याय माने जाते कैप्टन अमरिंदर सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद सुनील जाखड़ के पार्टी से नाता तोड़ते ही साफ हो गया है कि पंजाब में पार्टी का किला अब दरकने लगा है।
जाखड़ के इस्तीफे के बाद पंजाब कांगेस के उन सभी सीनियर नेताओं, जो सार्वजनिक रूप से समय-समय पर हाईकमान के सामने अपनी बात रखते रहे हैं, ने चुप्पी साध ली है। दरअसल, जाखड़ ने जिस तरह अपने दिल की बात में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाई है, उसे देखते हुए सीनियर नेता हाईकमान से किसी तरह उलझने के मूड में नहीं हैं। इसके अलावा पार्टी में इन दिनों सुनील जाखड़ को हटाने की नहीं, बल्कि नवजोत सिद्धू को हटाने की मांग जोरशोर से उठाई जा रही है।
हाईकमान को नहीं थी उम्मीद…यूं पार्टी छोड़ेंगे जाखड़
जाखड़ को हाईकमान ने नोटिस थमाकर मामले को लटका दिया था लेकिन संभवत: हाईकमान को यह उम्मीद नहीं थी कि जाखड़ ऐसे मौके पर, जब पार्टी चिंतन शिविर में मंथन कर रही होगी, पार्टी नेतृत्व की कमजोरियां गिनाते और उसके फैसले पर सवाल उठाते हुए पार्टी को अलविदा कह देंगे। दूसरी ओर, पंजाब के सियासी गलियारों में यह सवाल भी उठने लगा है कि जाखड़ का अगला कदम क्या होगा? वह किसी पार्टी से जुड़ेंगे या कैप्टन के साथ जाएंगे?
पार्टी हाईकमान के वादा पूरा न करने से नाराज थे सुनील जाखड़
पार्टी सूत्रों का कहना है कि जाखड़ की पार्टी हाईकमान से नाराजगी केवल यह नहीं है कि नोटिस जारी किए जाने से पहले उनसे बातचीत क्यों नहीं की गई? बल्कि वह सोनिया और राहुल द्वारा उनसे किया वादा पूरा नहीं किए जाने से भी आहत हैं। विधानसभा चुनाव से पहले जब हाईकमान ने उन्हें प्रदेश प्रधान पद से हटाकर नवजोत सिद्धू को कमान सौंपी थी, तब उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का भरोसा दिलाया गया था। जाखड़ ने उस समय तो शांति से पद छोड़ दिया लेकिन उसके बाद नए मुख्यमंत्री की दौड़ से भी उन्हें बाहर कर दिया गया। विधानसभा चुनाव में पार्टी की जो हालत हुई, उसके बाद से जाखड़ खुद को हाशिए पर ही महसूस कर रहे थे।