अपना व्यवहार इस तरह हो की लोग उससे प्रभावित हो…

बिहार,

पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने कथा के माध्यम से यह बताएं कि जब हम गुरु के सानिध्य में होते हैं ,शिष्य होते है, तो हमें अपना आचरण भी उसके अनुसार करना चाहिए जो स्वयं में और लोगों को भी अच्छा लगे ।
कथा मे भगवान राम के माध्यम से गुरुदेव ने यह बताए कि जब रावण सुख और सारंग को गुप्तचर बनाकर वानर रूप में भगवान राम के शिविर में भेजते हैं, तब हनुमान जी उसे पहचान लेते हैं सारे वानर एकत्रित हो जाते हैं लेकिन गुप्तचर भगवान राम के सौगंध दे देते हैं और उसी समय लक्ष्मण जी वहा पर आते हैं और उन्हें छोड़ देने को कहते हैं ।
भगवान राम वहां पर नहीं होते हैं लेकिन सभी ने भगवान राम के मर्यादा का पालन किए । जब हम शिष्य बन जाते है गुरु चरणों की सान्निध्य में होते हैं तो उसी तरह हमें अपने गुरु के बताए मार्ग में चलना चाहिए , मर्यादा का पालन करना चाहिए , और हमारी आचरण , व्यवहार इस तरह हो कि लोग उससे प्रभावित हो ।
जब हम कर्म में लीन होते हैं ,लीन होकर कर्म करते है भगवान तुरंत फल देते हैं…..
सुग्रीव जी जब बाली का वध करने जाते हैं तब उसे लगता है कि भगवान सब कुछ कर देंगे , हमको सिर्फ युद्ध स्थल पर जाना है और पराजित हो जाते हैं । लेकिन जब फिर से जाते हैं तब सोचते है कि मुझे ही युद्ध करना है ,और कर्म में लीन होते हैं जैसे ही कर्म में लीन होते हैं भगवान तत्काल फल दे देते हैं बाली का वध कर देते हैं, कोई भी कार्य में हम असफल होते हैं तब इसका मतलब होता है कि हमने अपना कार्य अच्छे से नहीं किया, हमारी कमजोरी होती है कहीं हमसे चूक होती हैं उसी पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है l


आंख खोलकर हम बाहर को देखते हैं संसार को देखते हैं लेकिन जब अपने अंदर परमात्मा को देखना हो आंख बंद करके देखते हैं…….
विवेक की दृष्टि से देखे तब शांति और भक्ति दिखाई देती है, हनुमान जी और पूरे वानर सेना जब स्वयं प्रभा के पास जाते हैं सबको आंख बंद करने को कहती हैं , जामवंत जी तुरंत बता देते हैं कि माता सीता कहां पर है , बुजुर्गों को सब कुछ दिखाई देता है इसलिए उसके बात माननी चाहिए ,जामवंत जी देख लेते हैं
गुरु ही है जिसे शांति और भक्ति दिखाई देती है, जिस चीज को हम कभी नहीं समझ पाते वह गुरु तुरंत बता देते हैं हमारे जीवन की शांति ,भक्ति कैसे प्राप्त होगी सब कुछ गुरु को पता होता है जामवन्त जी भी गुरु का कार्य करते हैं और हनुमान जी को मार्गदर्शन देते हैं। लेकिन हनुमान जी जब अपनी प्रशंसा सुनते हैं तो शांत होते हैं लेकिन जब यह कह देते हैं कि उनका जन्म ही राम के कार्य के लिए हुआ है वह तुरंत उठ खड़े होते हैं। अपने आराध्य के कार्य के लिए उसी तरह हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
108 जड़ी बूटी के द्वारा भव्य हवन के साथ आज कथा को विराम दी गई।

-:कल्पना शुक्ला

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