अंशु मलिक ने ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीतकर रचा इतिहास

नई दिल्ली,

अंशु ने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी हेलन लूसी मारोली के खिलाफ दूसरे दौर के बाद 1-0 की बढ़त भी बना ली थी। पर हेलन ने टेकडाउन मूव के साथ 2-1 की बढ़त बनाने के बाद 4-1 अंकों से विजय पाकर अंशु का स्वर्ण पदक जीतने का सपना तोड़ दिया। इस मुकाबले में हेलन के हाथ मजबूती से पकड़ने के कारण उसमें दर्द हो गया और उन्हें मुकाबले के तत्काल बाद चिकित्सा सहायता लेनी पड़ी। अंशु इस साल अलमाटी में हुई एशियाई चैंयिनशिप में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। वे अपने मात्र छह साल के करिअर में आठ अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं।अंशु के फाइनल में हारने पर पिता धर्मवीर थोड़े हताश दिखे। उन्होंने कहा कि हम सभी उम्मीद कर रहे थे कि वे स्वर्ण पदक जीतेंगी। यह मेरा सपना भी है। पर कोई चिंता की बात नहीं , क्योंकि अभी यह उनके करिअर की शुरुआत ही है।

अंशु की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह जितना कुश्ती अभ्यास पर फोकस रखती हैं, उतना ही पढ़ाई पर भी ध्यान देती हैं। उन्होंने हायर सेकेंडरी परीक्षा में 82 फीसद अंक प्राप्त किए। अभी उनका ध्यान कुश्ती के साथ स्नातक करने पर है। तोक्यो ओलंपिक में भाग लेकर लौटने पर ही उन्हें सरकारी नौकरी का प्रस्ताव मिला था पर उन्होंने इसे इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे पहले स्नातक करना चाहती है। अंशु का पहलवान परिवार में जन्म हुआ है। हरियाणा के निदानी गांव में बसे इस परिवार में उनके पिता धर्मवीर मलिक और चाचा पवन दोनों अंतरराष्ट्रीय पहलवान रहे हैं।

चाचा पवन तो सैफ खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। धर्मवीर ने सीआइएसएफ में कार्य करते समय चोट लगने के कारण कुश्ती छोड़ने पर अंशु के छोटे भाई शुभम को पहलवान बनाने का फैसला किया और उसे अभ्यास के लिए नजदीक स्थित चौधरी भरत सिंह स्पोर्ट्स स्कूल ले जाने लगे। इस पर अंशु ने भी कुश्ती अभ्यास के लिए कहा। खेल प्रेमी परिवार ने उनकी इच्छा को मान लिया। पिता धर्मवीर बताते हैं तो शुरुआत में हमारा ध्यान बेटे पर था। लेकिन अंशु ने छह माह में जिस तरह से प्रगति की, उससे हमने बेटे के बजाय बेटी को पहलवान बनाने पर ध्यान देना शुरू कर दिया।

अंशु के पिता बताते हैं कि आमतौर पर खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए दूर जाना पड़ता है। पर हमारे यहां चौधरी भरत सिंह मेमोरियल स्पोर्ट्स स्कूल होने से हमें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। अंशु को 2014 से जगदीश प्रशिक्षण दे रहे हैं। पर शुरुआती दिनों में इस स्कूल में जॉर्जियाई पहलवान से प्रशिक्षण मिलने से अंशु के बेसिक्स बहुत मजबूत हो गए हैं। इस कोच ने उन्हें यह भी सिखाया कि हमेशा अपनी तुलना दुनिया के दिग्गज पहलवानों से करनी चाहिए। यही वजह है कि अंशु के आदर्श कोई भारतीय पहलवान ना होकर जापान की चार ओलंपिक पदक विजेता काओरी इचो हैं। वे इस पहलवान के यूट्यूब पर वीडियो देखकर तैयारी करती रही हैं। वे कहती हैं कि जापानी पहलवान हम लोगों जैसे शक्तिशाली नहीं होते हैं पर वह बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करके सफलताएं पाते हैं।

अंशु की एक खूबी यह भी है कि वह विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के दौरान काफी सीखती भी है। इस कारण उनके प्रदर्शन में हर साल सुधार आता जा रहा है।यही वजह है कि साल 2020 जनवरी में सीनियर वर्ग में भाग लेने की शुरुआत करते ही तोक्यो ओलंपिक का टिकट कटाने में सफल हो गई थीं। उन्होंने 2016 में पहली बार एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने से शुरुआत की और इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।