संस्कार, संस्कृति एवं समभाव की ध्वजवाहक – हमारी भाँवां काकी

स्मृति शेष
“संस्कार, संस्कृति एवं समभाव की ध्वजवाहक – हमारी भाँवां काकी”
अपने जीवन में हम अनेक लोगों से मिलते हैं। उनके व्यक्तित्व एवं व्यवहार से प्रभावित या अप्रभावित होकर हमारे मन में उनके लिए क्रमशः अच्छी या बुरी धारणाएं बनती-बिगड़ती रहती हैं। इनमें से कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने सदाचरण के कारण सदा के लिए हमारे मन-मानस का हिस्सा बन जाते हैं, हमारे लिए प्रेरणा बन जाते हैं। मेरे जीवन में बिल्कुल यही स्थान है ‘भाँवां काकी’ का। मुझको गढ़ने एवं संवारने में जितना योगदान मेरे माता-पिता का है, उतना ही स्थान ‘भाँवां काकी’ का भी है। मुझे याद है, हम तीनों भाइयों का यज्ञोपवीत संस्कार उन्होंने ही करवाया था। आज भी जब मैं कहीं “यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहज पुरस्तात्” का मंत्र सुनता हूँ, तो गर्व मिश्रित मुस्कान के साथ मेरे सिर पर आँचल रखे ‘भाँवां काकी’ का चेहरा साकार हो जाता है। इसी रूप में वे आज भी मेरे प्रत्येक दिन की प्रार्थना में शामिल रहती हैं। मेरे रामायण प्रवचनों की वे सर्वश्रेष्ठ श्रोता एवं प्रशसंक रही हैं। उनके द्वारा प्राप्त प्रेम, प्रशस्ति एवं प्रोत्साहन आज भी मेरा संबल है।
उनका वास्तविक नाम सत्यभामा शुक्ला था, मगर पूरे परिवार में वे ‘भाँवां काकी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। मैं जब भी उनसे मिला, उनके मुखमुद्रा, बात, व्यवहार एवं अंग-प्रत्यंग से वात्सलय छलकता पाया। इस प्रेम को परिवार के सभी सदस्यों ने भी समान रूप से अनुभव किया है। सौंदर्यबोध एवं उत्सवधर्मिता उनके दिनचर्या में शामिल था। हमारे कुटुंब में सबसे सुंदर एवं सुव्यवस्थित घर व परिवार उन्हीं का है। किसी न किसी बहाने परिवार के सभी सदस्यों को आमंत्रित कर उन्हें सुस्वादु भोजन कराने में वे अन्नपूर्णा जैसी थीं। वे टेमरी शुकुल परिवार में संस्कार, संस्कृति एवं समभाव की ध्वजवाहक रही हैं। हमारे परिवार में सर्वाधिक सक्रिय, कर्मशील एवं यशस्विनी महिला के रूप में उनका स्थान पहला है। पति के सामाजिक कार्यों में सहभागिनी बनने तथा अपने संतानों को योग्य बनाने में उनकी भूमिका अनुकरणीय है।
किसी सामान्य महिला की तरह उनका भी प्रारंभिक जीवन कष्टमय एवं यातनामय रहा। इसके अतिरिक्त उन्हें सामाजिक यंत्रणा की पराकाष्ठा भी झेलनी पड़ी। लेकिन जीवन के प्रति आशावान दृष्टिकोण के साथ स्वयं को समाजोपयोगी बनाने के लिए उन्होंने गायत्री परिवार के युग निमार्ण योजना को माध्यम चुना तथा पति के साथ निष्काम भाव से आजीवन उसी में समर्पित रहीं। जीवन में अभाव एवं तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी एक व्यक्ति के रूप में सार्थक, सफल एवं उपयोगी जीवन जीने वालों की सूची में कका एवं काकी, दोनों का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। “यातना को यश में तथा संघर्ष को हर्ष में” बदलने वाले योद्धा के रूप में हमारा परिवार सदैव गर्व से उन्हें याद करेगा।
काकी! मैं आपके महाप्रयाण पर आज अत्यंत दुःखी हूँ तथा कृतज्ञ भाव से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
मुझे विश्वास है कि आप भगवती गायत्री की गोद में स्थान प्राप्त करेंगी। आपके सत्कर्मों से प्रेरणा लेकर हमारी भावी पीढ़ी प्रज्ञावान बनें, देवलोक से पूरे परिवार को इसी आशीष से समृद्ध करते रहिएगा।
डॉ.आदित्य शुक्ल

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