REVIEW : आर माधवन का नया आयाम है ‘रॉकेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट

बॉलीवुड

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः सरिता माधवन, आर माधवन, वर्गीस मूलन और विजय मूलन

लेखक व निर्देशकः आर माधवन

कलाकारः आर माधवन,  सिमरन,  रजित कपूर, राजीव रवींद्रनाथन,  कार्तिक कुमार,  शाहरुख खान,  गुलशन ग्रोवर व अन्य

समय – दो घटे 37 मिनट

समीक्षा: शांतिस्वरूप त्रिपाठी

एनसीसी कैडेट के रूप में अच्छी प्रतिभा दिखाने के चलते चार वर्ष तक ब्रिटिश आर्मी से ट्रेनिंग लेकर फौजी बनकर लौटे आर माधवन को चार माह उम्र ज्यादा हो जाने के कारण भारतीय सेना का हिस्सा बनने से वंचित रह जाने के बाद आर माधन ने इंजीनियरिंरग की पढऋाई की. फिर वह स्पीकिंग स्किल व पर्सनालिटी डेवलवपेंट के प्रोफेसर बने. फिर टीवी सीरियलों में उन्हे अभिनय करने का अवसर मिला. टीवी पर 1800  एपीसोडों में अभिनय करने के बाद आर माधवन को मणि रत्नम ने तमिल फिल्म में रोमांटिक हीरो बना दिया और वह तमिल फिल्मों के सुपर स्टार बन गए. फिर कई तरह के किरदार निभाए. आनंद एल राय के निर्देशन में ‘तनु वेड्स मनु’ में अभिनय कर सिनेमा को एक नई दिशा देने का भी काम किया. फिर ‘साला खडूस’ का निर्माण किया और अब बतौर लेखक, निर्देशक व अभिनेता आर माधवन फिल्म ‘‘रॉकेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’’ लेकर आए हैं. आर माधवन हमेशा उन फिल्मों को हिस्सा बनने का प्रयास करते आए हैं, जो कि आम जीवन का प्रतिबिंब बने. आर माधवन की नई फिल्म ‘‘रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट’ बहुत ही अलग तरह की फिल्म है. बौलीवुड के फिल्मकार इस तरह की फिल्में बनाने से दूर रहना पसंद करते हैं. यह एक विज्ञान व इसरो वैज्ञानिक फिल्म होते हुए भी भावनाओ से ओतप्रोत है.  इसकी कहानी भावपूर्ण है. दर्शक फिल्म के माध्यम से त्रिवेंद्रम निवासी इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायण के जीवन व कृतित्व से रूबरू होते हुए उनके साथ हुए अन्याय को भी महसूस करते हैं. फिल्म ‘रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट’ न जुनूनी लोगों की दास्तां है, जो अपने घर व परिवार को हाशिए पर ढकेल कर काम में ही अपनी जिंदगी लगा देते हैं. मगर उनके अपने ही उनकी पीठ पर छूरा घोंप देते हैं.

इस फिल्म की गुणवत्ता का अहसास इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म को देखते हुए स्वयं महान वैज्ञानिक नंबी नारायण रो रहे थे.

कहानीः

फिल्म की कहानी इसरो के मशहूर वैज्ञानिक रहे नंबी नारायण की कहानी है. लिक्विड इंजन व क्रायजनिक इंजन बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है. वह विक्रम साराभाई के शिष्य रहे. बाद मंे अब्दुल कलाम आजाद व सतीश धवन के साथ भी काम किया. नारायणन ने नासा फैलोशिप अर्जित कर 1969 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया. वहां पर अपनी प्रतिभा के बल पर महज दस माह के रिकॉर्ड समय में प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपनी थीसिस पूरी की. उसके बाद उन्हे नासा में नौकरी करने का आफर भी मिला था. मगर वह क्रायजिनक इंजन पर भारत में ही काम करने के मकसद से नासा का आफर ठुकरा कर भारत आ गए. यहां  इसरो की नौकरी करते हुए नम्बी नारायण ने विज्ञान जगत में कई अनोखे प्रयोग किए. उन्हेाने ‘विकास’ रॉकेट का इजाद किया. यह विकास इंजन ही इसरो से भेजे जाने वाले सभी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जा रहा है. 1992 में भारत ने क्रायोजेनिक ईंधन-आधारित इंजन विकसित करने के मकसद से चार इंजनों की खरीद का सौदा रूस के साथ किया था. मगर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्लू बुश के दबाव में रूस ऐसा नही कर पा रहा था. तब नंबी नारायण के प्रयासों से  भारत ने दो मॉकअप के साथ चार क्रायोजेनिक इंजन बनाने के लिए रूस के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए. और अमरीकी सैनिकों की नजरों से बचाकर इन्हे भारत लाने में सफल हुए थे. मगर तभी 1994 में नंबी नारायण पर पाकिस्तान को रॉकेट साइंस तकनीक बेचने का आरोप लगा. उन्हे काफी यातनाएं दी गयीं. अंततः साल की अदालती लड़ाई के बाद उन्हे सारे आरोपों से बरी कर दिया गया. 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नंबी नारायण को पद्मभू षण से सम्मानित किया. 24 वर्षों बाद उनकी गरिमा वापस लौटी, लेकिन अगर उन्हें इसरो में यह समय काम करने को मिला होता, तो शायद भारत रॉकेट साइंस में किसी अन्य मुकाम पर होता.

मगर हमारे भारत देश में अक्सर जीनियस या यूं कहें कि अति बुद्धिमान लोगों के साथ राजनीति के तहत या अन्य वजहों से ऐसी बदसलूकी हो जाती है और ऐसे लोगों के बारे में कहीं कोई सुध नही लेता है और उन्हे लंबे वक्त तक निर्दोष होते हुए भी तमाम पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है. फिल्म के अंत में शाहरुख खान राष्ट् की तरफ से नंबी से माफी मांगते है, मगर माफी देने से इंकार करते हुए नंबी कहतेहैं-‘अगर मैं निर्दोष था, तो कोई तो दोषी था. आखिर वह दोषी कौन था. ’’

लेखन व निर्देशनः

आर माधवन एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं. वह पहले भी कुछ फिल्में लिख चुके हैं. कुछ फिल्मों के संवाद लिख चुके हैं. मगर निर्देशन में उनका यह पहला कदम है. उनकी माने तो पहले कोई दूसरा निर्देशक था, मगर ऐन वक्त पर उसके छोड़ देने पर आर माधवन को खुद ही निर्देशन की बागडोर भी संभालनी पड़ी. परिणामतः कुछ निर्देशकीय कमियां भी नजर आती हैं. आर माधवन ने इस कहानी को बयां करने के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान नंबी नारायण का इंटरव्यू लेते हैं और तब नंबी के मंुह से शाहरुख खान उनकी कहानी सुनते हैं. पर मूल कहानी शुरू होने से पहले नंबी नारायण की गिरफ्तारी व उनके परिवार के साथ पहले दिन जो कुछ हुआ था, उसके दृश्य आते हैं, इसकी जरुरत नही थी. इसके अलावा फिल्म में कई दृश्य अंग्रेजी भाषा में हैं. आर माधवन ने ऐसा फिल्म को पूरी तरह से वास्तविक बनाए रखने के लिए किया है. मगर वह उन दृश्यों में ‘हिंदी’ में ‘सब टाइटल्स’दे सकते थे. इससे दर्शक के लिए फिल्म से जुड़ना आसान हो जाता. इसके बावजूद इस विज्ञान फिल्म को जिस तरह से आर माधवन ने परदे पर उतारा है, वह एक भावनात्मक फिल्म के रूप मंे दर्शको के दिलो तक पहुंचती है. इंटरवल से पहले के हिस्से में वैज्ञानिक शब्दों का उपयोग जरुर दर्शकों को थोड़ा परेशान करता है. मगर इंटरवल के बाद कहानी काफी इमोशनल है और दर्शक नंबी के उस इमोशन को मकसूस करता है. फिल्म को वास्तविक बनाए रखने के लिए पूरी फिल्म वास्तविक लोकेशनों पर ही फिल्मायी गयी है. फिल्म का वीएफएक्स भी कमाल का है. 1969 से लेकर अब के माहौल को जीवंत करना एक निर्देशक के तौर पर उनकी सबसे बड़ी चुनौती रही है, जिसे  सफलता पूर्वक अंजाम देने में वह सफल रहे हैं. फिल्म में कई ऐसे दृश्य है जो कि बिना संवादों के भी काफी कुछ कह जाते हें. मसलन एक दृश्य है. अदालत से जमानत पर रिहा होने के बाद जब  नंबी अपनी पत्नी मीरा संग उसे अस्पातल में दिखाकर वापस लौट रहे होते हैं, तब भीषण बारिश हो रही है और पानी में भीग रहे तिरंगे के नीचे यह दंपति बेबस खड़ा है. क्योंकि कोई भी रिक्शावाला या गाड़ी वाला उन्हे बैठाने को तैयार नही है.

पता नही क्यों वास्तविकता गढ़ते हुए भी आर माधवन ने हाल ही में गिरफ्तार किए गए पूर्व आई बी अधिकारी आर बी श्रीकुमार का नाम नहीं लिया, जो कि 1994 में केरला में ही तैनात थे.

अभिनयः

नंबी नारायण के किरदार में आर माधवन ने शानदार अभिनय किया है.  आर माधवन ने अपने अभिनय के बल पर 29 वर्ष से लेकर 70 वर्ष तक की उम्र के नंबी नारायण को परदे पर जीवंतता प्रदान की है. इसके लिए आर माधवन ने प्रोस्थेटिक मेकअप का उपयोग नहीं किया है. उन्होने नंबी नारायण की ही तरह अपने दंातों को दिखाने के निए अपना जबड़ा तक टुड़वाया. बाल भी रंगे और बालो को असली नजर आने के ेलिए 18 घ्ंाटे कुर्सी पर बैठकर रंगवाते थे. पूरी फिल्म को अपने कंधो पर उठाकर आर माधवन ने अपनी अभिनय प्रतिभा के नए आयाम पेश किए हैं. नंबी नारायण की पत्नी मीरा के किरदार में तमिल अदाकारा सिमरन ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. उन्होने पति का घर में समय न दे पाने से लेकर देशभक्त पति के उपर झूठा इल्जाम लगने की पीड़ा को बाखूबी परदे पर दिखाया है.

नंबी नारायण से इंटरव्यू लेने वाले अभिनेता शाहरुख खान अपनी पहचान के साथ ही है. उन्होंने इंटरव्यू लेने वाले के किरदार को बहुत बेहतरीन तरीके से न सिर्फ निभाया है बल्कि अपने अभिनय से नंबी की पीड़ा का अहसास करते हुए भी नजर आते हैं. लंबे समय बाद शाहरुख खान ने छोटे किरदार में ही सही मगर बेहतरीन परफार्म किया है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here