Poems : केशव शरण
उस कोमलांगी को भी
सौंदर्य छलकता है
प्रेम छलकता है
करुणा छलकती है
गरिमा छलकती है
पोर-पोर से
Poems : उद्दाम वासना
सम्पूर्ण नियंत्रित है
उस सुंदर देह में
जो तीन बजे भोर से
बिस्तर छोड़ देती है
और प्रभु के विधि-विधान से
स्वयं को जोड़ लेती है
Poems : मैं उस कोमलांगी को भी नमन करता हूं
जैसे प्रभु के पाषाण प्रतीक को
मार दिये जाते हैं
बदतर ज़िंदगी
बदतर तरीक़े से
जीते रहते हैं लोग
थोड़े-से लोगों के पास
बेहतर ज़िंदगी होती है
मगर वे भी उसे
बदतर तरीक़ों से ही
जीते रहते हैं
ज़िंदगी जैसी भी हो
गिनती के लोग हैं
जो जीते हैं उसे
बेहतर तरीक़ों से
इन्हीं का यह अभ्यास
पहुंचना चाहिए सबके पास
तो ये मार दिये जाते हैं
केशव शरण
सिकरौल
वाराणसी 221002