Lord Shiva : भगवान शिव 11 बच्चों के पिता 3 पुत्री 8 पुत्र जाने रोचक कथा

भगवान शिव
भगवान शिव 11 बच्चों के पिता 3 पुत्री 8 पुत्र जाने रोचक कथा

अध्यात्म | पौराणिक कथाओं और शिव पुराण , श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार,न जाने कितनी ऐसी अनसुनी बाते हैं । ऐसी ही बातों में से एक है भगवान् शिव और पार्वती की संतानों से जुड़े कुछ ऐसे रोचक कथा जो आपमें से न जाने कितने ही लोगों से अनसुने होंगे। आमतौर पर जब भी शिव और पार्वती के बच्चों का जिक्र होता है जेहन में दो ही नाम आते हैं भगवान् गणेश और कार्तिकेय। गणेश यानी कि प्रथम पूजनीय गणपति भगवान् और कार्तिकेय जिनकी पूजा दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में पूरे श्रद्धा भाव से की जाती है।  जब हम संतान की बात करते हैं तो उनमें से कुछ गोद ली हुई और कुछ की उत्पत्ति चमत्कारिक तरीके से हुई बताई जाती है। आओ जानते हैं उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी।

लेकिन क्या आप जानते हैं गणेश और कार्तिकेय के अलावा  शिव पार्वती के और भी बच्चे थे जिनसे आप भले ही अंजान क्यों न हों लेकिन कई मायनों में उनकी उपस्थिति उल्ल्खनीय है। पौराणिक कथाओं और शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव कुल 11 बच्चों के पिता ,भगवान शिव की 3 बेटियां अशोक सुंदरी,ज्योति ,मनसा देवी और भगवान शिव के 8 पुत्र थे, जैसे गणेश, कार्तिकेय,अयप्पा, सुकेश, जलंधर, भौम, आदि। गणेश और कार्तिकेय के बारे में तो आप सभी जानते ही हैं, लेकिन हम उनके और संतानों के बारे में बताने जा रहे हैं।

पार्वती जी के ही दो पुत्र और एक पुत्री हुई। पहले पुत्र का नाम कार्तिकेय और दूसरे का नाम गणेश रखा गया। पुत्री का नाम अशोक सुंदरी रखा गया। इनकी पुत्री का नाम अशोक सुंदरी था। कहते हैं माता पार्वती ने अपने अकेलेपन को खत्म करने के लिए ही इस पुत्री का निर्माण किया था। भगवान शिवा के इन पुत्र और पुत्रियों को गणेश,कार्तिकेय,अयप्पा,अशोक सुंदरी,ज्योति,मनसा देवी आज भी पूजा जाता है |

कार्तिकेय

कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

गणेश

पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था। इन गणेश की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के उबटन मिश्रण से की थी।

अशोक सुंदरी

अशोक सुंदरी का जन्म कार्तिकेय के जन्म के बाद हुआ था। गुजरात और उसके आस-पास के इलाकों की व्रत कथाओं में अशोक सुंदरी की चर्चा होती आई है और उनकी कथा पद्मपुराण में अंकित है। शिव पुराण में भी अशोक सुंदरी का व्याख्यान किया गया है। अशोक सुंदरी का जिक्र पद्म पुराण में भी किया गया है। अशोक सुंदरी को माता  पार्वती के अकेलेपन की सहेली बताया जाता है। कथाओं के अनुसार पार्वती जी ने अपना अकेलापन दूर करने के लिए कल्प वृक्ष जिसे लोगों की इच्छाओं को पूरा करने वाला पेड़ कहा जाता है से वरदान के रूप में अशोक सुंदरी को प्राप्त किया था।

अशोक सुंदरी यह एक हिन्दू देवकन्या हैं, जिनका वर्णन भगवान शिव और पार्वती की बेटी के रूप में किया गया है। वह आम तौर पर मुख्य शास्त्रों में शिव के पुत्री के रूप में वर्णित नहीं हैं, उनकी कथा पद्मपुराण में अंकित है। माता पार्वती के अकेलेपन को दूर करने हेतु नामक पेड़ के द्वारा ही अशोक सुंदरी की रचना हुई थी। अ+शोक अर्थात् सुख, माता पार्वती को सुखी करने हेतु ही उनका निर्माण हुआ था और वह अत्यंत सुंदर थीं इसी कारण इन्हें सुंदरी कहा गया।

ज्योति

शिव जी की दूसरी पुत्री का नाम ज्‍योति है , दक्षिण में शिव के साथ ज्योति को भी पूजा जाता है। ज्योति के जन्म से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। पुराणों के अनुसार शिव के तेज से ज्योति का जन्म हुआ था। ज्योती के जन्म को पार्वती से भी जोड़कर देखा जाता है और कहा जाता है कि पार्वती के माथे से निकली एक चिंगारी से ज्योति का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि ज्योति शिव के तेज को भी सह सकती थीं। देवी ज्‍योति का दूसरा नाम ज्‍वालामुखी भी है और खास तौर पर दक्षिण भारत में ज्योति की आज भी पूजा की जाती है और लोग उन्हें देवी स्वरूपा मानते हैं।

मनसा देवी

मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारतके अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति मुनि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं।  इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ हरिद्वार में स्थापित है। इन्हें शिव की मानस पुत्री माना जाता है परंतु कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ हैं, ऐसा भी बताया गया है।कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें इसी कन्या का भेंट दिया और वासुकि इस कन्या के तेज को न सह सका और नागलोक में जाकर पोषण के लिये तपस्वी हलाहल को दे दिया। इसी मनसा नामक कन्या की रक्षा के लिये हलाहल नें प्राण त्यागा।
शिव पुराण में मनसा देवी को पार्वती की ईर्ष्या से जोड़कर देखा जाता है। मनसा देवी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार में बनाया गया है। ऐसी मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म शिव के वीर्य से हुआ था, लेकिन वो पार्वती की बेटी नहीं थी इसलिए पारवती जी उनसे ईर्ष्या रखती थीं। पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि काद्रु जो कि सर्पों की मां थीं उन्होंने एक मूर्ति बनाई थी और किसी तरह से शिव का वीर्य उस मूर्ती को छू गया था और उसी से मनसा देवी का जन्म हुआ था। मनसा के बारे में प्रसिद्ध है कि वो सांपों के विश का असर भी बेअसर कर सकती हैं और मंदिरों में उन्हें सांप के काटे और छोटी माता जैसी बीमारियों को ठीक करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।

अयप्पा

पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव और विष्णु जी की संतान के रूप में अयप्पा का जन्म हुआ था। विष्णु जी ने जब देवताओं को अमृत बांटने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था तब शिव जी और मोहिनी के बेटे के रूप में अयप्पा का जन्म हुआ था। इन्हें केरल और तमिलनाडु में पूजा जाता है। अयप्पा कुछ सबसे बलशाली देवों में से एक हैं। कहा जाता है कि अयप्पा ने परशुराम से लड़ना सीखा था। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको ‘हरिहरपुत्र’ कहा जाता है। धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया। इस दौरान राजा राजशेखरा ने उन्हें 12 सालों तक पाला। बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया। केरल के सबरीमाला में भगवान अयप्पा स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है जहां लाखों लोग उनके दर्शन करने के लिए आते हैं।

जालंधर

शिवजी का पुत्र जिसका नाम था जालंधर । जालंधर  को शिव जी ने ही जन्म दिया लेकिन बाद में वह शिव का सबसे बड़ा दुश्मन बना। श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार जालंधर असुर के रूप में शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था। जालंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जालंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जालंधर  उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जालंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जालंधर  को पराजित नहीं कर पा रहे थे। परन्तु जालंधर के अभिमान को नष्ट करने के लिए शिव जी ने उसे मार दिया।

सुकेश 

सुकेश को भी शिव पुत्र के रूप में जाना जाता है। राक्षसों का प्रतिनिधित्व दोनों लोगों को सौंपा गया- ‘हेति’ और ‘प्रहेति’। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी। राक्षसराज हेति ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु ‘काल’ की पुत्री ‘भया’ से विवाह किया। भया से उसके विद्युत्केश नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। विद्युत्केश का विवाह संध्या की पुत्री ‘सालकटंकटा’ से हुआ। माना जाता है कि ‘सालकटंकटा’ व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की।

भूमा 
एक समय जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में ध्यान लगाये बैठे थे, उस समय उनके ललाट से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया, जिसके चार भुजाएं थीं और वय रक्त वर्ण का था। इस पुत्र को पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया।
अंधक
अंधक नामक भी एक पुत्र बताया जाता है लेकिन उसके उल्लेख कम ही मिलता है। भगवान शिव ने पसीने से उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पुत्र बताया. अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से उसका नाम अंधक रखा गया. कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष के पुत्र प्राप्ति का वर मागंने पर भगवान शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया. अंधक असुरों के बीच ही पला बढ़ा और आगे चलकर असुरों का राजा बना.
खुजा
पौराणिक वर्णन के अनुसार खुजा धरती से तेज किरणों की तरह निकले थे और सीधा आकाश की ओर निकल गए थे।

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