उगते सूर्य से सीखो – संकर्षण जी महाराज (गुरु जी)

सीखो

उगते सूर्य से सीखो – यदि जीवन आरम्भ हो तो ऊर्जा ,बल,प्रकाश और ज्ञान से भरा हो । दोपहर के सूर्य से सीखो सभी को जीवन देना प्रकाश और ज्ञान में तेज हो जिससे सभी लाभान्वित हों। डूबते सूर्य से सीखो- कि जीवन के अंतिम क्षण तक तुम्हारी ऊर्जा,ज्ञान,बल कम न हो।

चाँद से सीखो -जीवन मे कितना भी अंधेरा आ जाये किंतु धीरे -धीरे ग्रहण छँटेगा और ज्ञान का प्रकाश जीवन मे आकर अंधेरा दूर करेगा और उस समय तुम्हारे अंदर की दहकता समाप्त हो जायेगी और शीतलता, सरलता के साथ प्रकाश भरा रहेगा। तारों से सीखो-विश्व के किसी भी कोने में रहो ,अपने पास न हो तो किसी से ग्रहण कर के ही पर सदा चमकते रहो ज्ञान के प्रकाश से।

सबके जीवन मे अंधेरा भी हो तो भी तुम्हारे ज्ञान की ज्योति जगमगाते रहे और मन के आकाश की शोभा बढ़ाते रहे। बादलों से सीखो- हमेशा चाँद -सूर्य रुपी गुरु को शिष्य की तरह घेरे रहे और जो ग्रहण करे उसे अन्य क्षेत्रो में ज्ञान की बूंद बनकर टपकाते रहे ताकि जगत में जीवन बना रहे सबका भरण -पोषण होता रहे। जो भी गुरु से ग्रहण करो उसे चारो तरफ बिखेर दो,बचा कर मत रखो।

जितना फैलाओगे उससे ज्यादा पाओगे। और अपने गुरुवाणी को बादलों की तरह दहाड़-दहाड़ कर फैलाओ। मुहचोर मत बने रहना। बिजली से सीखो- जो गुरुवाणी को अपना लिया उसके अंदर करेंट पैदा हो गया वो ज्ञान के तेज से सम्भल जायेगा ,किन्तु जो सुनकर मूढ़ता किया वो उसी करेंट से बर्बाद भी हो जायेगा। ओला-वृष्टि से सीखो- यदि स्वार्थ के फसल ही केवल बोओगे जीवन मे गुरु की शीतलता से भी बर्बाद हो जाओगे,उसके लिये कोप की आवश्यकता नहीं है। शीतल और मधुर वाणी ही परेशान कर देगी।

शिक्षा :-आज के इस ज्ञान को अच्छे समझना ये पूरे जीवन काम आयेगा। प्रकृति क्या कह रही है। समझो गुरु से । आनंद में रहोगे जब जान लोगे।

जय माँ

संकर्षण जी महाराज (गुरु जी), प्रयागराज।